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Sunday, December 5, 2010

सेन के खिलाफ महाभियोग मौजूदा सत्र में नहीं!

नई दिल्ली। संसद का लगभग पूरा शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट चढ़ जाने के कारण कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग चलाना इस सत्र में असंभव सा है। अब अगामी बजट सत्र में ही यह संभव हो पाएगा। न्यायमूर्ति सेन पर सार्वजनिक धन के बेजा इस्तेमाल का आरोप है।
नियमों का हवाला देते हुए संसद के सूत्रों ने बताया कि महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कर दिए जाने के बाद लोकसभा और राज्यसभा को एक ही सत्र में संबंधित मुद्दे को लेना होगा। संसद में जारी गतिरोध के चलते अब इसकी संभावना नहीं दिखती। संसद का वर्तमान शीतकालीन सत्र नौ नवंबर से शुरू हुआ था और उसके दूसरे दिन से ही टू जी स्पेक्ट्रम मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति से कराने की विपक्ष की मांग को लेकर हो रहे हंगामे के कारण उसकी कार्यवाही ठप पड़ी है। इस सत्र के समापन में मुश्किल से एक हफ्ता रह गया है, ऐसे में सेन के खिलाफ महाभियोग को इस सत्र में चलाने की संभावना न न के बराबर है। इससे पहले माकपा नेता सीताराम येचुरी सहित राज्यसभा के 58 सदस्यों ने सेन के खिलाफ महाभियोग चलाने का प्रस्ताव पेश किया था। येचुरी का कहना था कि महाभियोग इसी सत्र में शुरू होगा लेकिन जेपीसी के गठन को लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष के अपने अपने रुख पर अड़े रहने के कारण संसद में दस नवंबर से जारी गतिरोध के समाप्त होने की संभावना नहीं है। गतिरोध समाप्त हुए बिना यह सत्र संभवत: 13 दिसंबर को संपन्न हो जाएगा। सूत्रों ने कहा कि ऐसे में न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ महाभियोग अब बजट सत्र में ही संभव हो पाएगा।
राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी द्वारा गठित तीन सदस्ईय समिति ने पिछले महीने न्यायमूर्ति सेन को सार्वजनिक धन की बड़ी रकम का बेजा इस्तेमाल करने, गलत बयानी करने और तथ्यों को गलत ढंग से रखने का दोषी पाया था। उन पर आरोप है कि कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा रिसीवर नियुक्त किए जाने पर उन्होंने 33 लाख रुपयों की बड़ी रकम का बेजा इस्तेमाल किया। न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ अगर महाभियोग की कार्यवाही शुरू होती है तो वह देश में पहले न्यायाधीश होंगे जिन्हें संसद में महाभियोग के जरिए हटाया जाएगा, बशर्ते उन्हें हटाने के पक्ष में बहुमत जुटाया जा सके। महाभियोग की पहली प्रक्रिया 1993 में न्यायमूर्ति वी रामास्वामी के खिलाफ शुरू की गई थी लेकिन कांग्रेस के पीछे हट जाने से लोकसभा में प्रस्ताव के पक्ष में बहुमत नहीं जुट पाया और वह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी।

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Sunday, December 5, 2010

सेन के खिलाफ महाभियोग मौजूदा सत्र में नहीं!

नई दिल्ली। संसद का लगभग पूरा शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट चढ़ जाने के कारण कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग चलाना इस सत्र में असंभव सा है। अब अगामी बजट सत्र में ही यह संभव हो पाएगा। न्यायमूर्ति सेन पर सार्वजनिक धन के बेजा इस्तेमाल का आरोप है।
नियमों का हवाला देते हुए संसद के सूत्रों ने बताया कि महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कर दिए जाने के बाद लोकसभा और राज्यसभा को एक ही सत्र में संबंधित मुद्दे को लेना होगा। संसद में जारी गतिरोध के चलते अब इसकी संभावना नहीं दिखती। संसद का वर्तमान शीतकालीन सत्र नौ नवंबर से शुरू हुआ था और उसके दूसरे दिन से ही टू जी स्पेक्ट्रम मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति से कराने की विपक्ष की मांग को लेकर हो रहे हंगामे के कारण उसकी कार्यवाही ठप पड़ी है। इस सत्र के समापन में मुश्किल से एक हफ्ता रह गया है, ऐसे में सेन के खिलाफ महाभियोग को इस सत्र में चलाने की संभावना न न के बराबर है। इससे पहले माकपा नेता सीताराम येचुरी सहित राज्यसभा के 58 सदस्यों ने सेन के खिलाफ महाभियोग चलाने का प्रस्ताव पेश किया था। येचुरी का कहना था कि महाभियोग इसी सत्र में शुरू होगा लेकिन जेपीसी के गठन को लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष के अपने अपने रुख पर अड़े रहने के कारण संसद में दस नवंबर से जारी गतिरोध के समाप्त होने की संभावना नहीं है। गतिरोध समाप्त हुए बिना यह सत्र संभवत: 13 दिसंबर को संपन्न हो जाएगा। सूत्रों ने कहा कि ऐसे में न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ महाभियोग अब बजट सत्र में ही संभव हो पाएगा।
राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी द्वारा गठित तीन सदस्ईय समिति ने पिछले महीने न्यायमूर्ति सेन को सार्वजनिक धन की बड़ी रकम का बेजा इस्तेमाल करने, गलत बयानी करने और तथ्यों को गलत ढंग से रखने का दोषी पाया था। उन पर आरोप है कि कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा रिसीवर नियुक्त किए जाने पर उन्होंने 33 लाख रुपयों की बड़ी रकम का बेजा इस्तेमाल किया। न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ अगर महाभियोग की कार्यवाही शुरू होती है तो वह देश में पहले न्यायाधीश होंगे जिन्हें संसद में महाभियोग के जरिए हटाया जाएगा, बशर्ते उन्हें हटाने के पक्ष में बहुमत जुटाया जा सके। महाभियोग की पहली प्रक्रिया 1993 में न्यायमूर्ति वी रामास्वामी के खिलाफ शुरू की गई थी लेकिन कांग्रेस के पीछे हट जाने से लोकसभा में प्रस्ताव के पक्ष में बहुमत नहीं जुट पाया और वह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी।

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