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Monday, December 6, 2010

8 साल के बेटे से जानवरों जैसा सलूक

जालंधर/ होशियारपुर. आठ साल के मासूम की मां का पांच साल पहले देहांत हो गया है। पढ़ने, खेलने की उम्र में जो अत्याचार इस मासूम के साथ हो रहा है। उसे सुन, देख कर किसी की भी आंखें नम हो जाएंगी और दिल रो उठेगा। यह अत्याचार कोई और नहीं बल्कि उसका पिता ही उस पर ढा रहा है।
फगवाड़ा रोड पर स्थित गांव मरुली ब्राम्हणां निवासी सुरेश कुमार जब भी काम पर जाता है। वह अपने मासूम बेटे को अंधेरे घर में जानवरों की तरह बांध जाता है। मासूम चीखता चिल्लाता रहता है लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। यह क्रम काफी समय से चल रहा है।
गांव वाले भी सुरेश की इस करतूत से वाकिफ थे। उन्होंने उसे ऐसा करने से रोका लेकिन वह नहीं माना। रविवार को गांव वालों ने मासूम को अंधेरी कोठरी से मुक्त कराया। मासूम के हाथ और पैर पर रस्सी के निशान साफ दिखाई दे रहे थे। गांव वालों ने आरोप लगाया कि रोजाना इस घर से बच्चे की चीख पुकार सुनाई देती है। उन्होंने कई बार सुरेश को समझाया लेकिन वह बाज नहीं आया।
पिता ने कहा, मैं मजबूर हूं, शाम पांच बजे मासूम का पिता सुरेश भी घर आ गया। घर के बाहर लोगों की भीड़ देख उसने कहा कि मैं विकलांग हूं और मंडी में एक दुकान पर काम करता हूं। मेरा बेटा करण काफी नटखट है। उसे डर रहता है कि कहीं वह भाग ना जाए। बस इसी डर के चलते वह उसे कमरे में बंद करके चला जाता हूं। आज भी वह उसके लिए रोटी लेने गया था। सुरेश ने कहा कि पेट भरने लायक भी वह मुश्किल से कमा पाता है तो बच्चे को स्कूल कहां से भेजूं।
- भास्कर से




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Monday, December 6, 2010

8 साल के बेटे से जानवरों जैसा सलूक

जालंधर/ होशियारपुर. आठ साल के मासूम की मां का पांच साल पहले देहांत हो गया है। पढ़ने, खेलने की उम्र में जो अत्याचार इस मासूम के साथ हो रहा है। उसे सुन, देख कर किसी की भी आंखें नम हो जाएंगी और दिल रो उठेगा। यह अत्याचार कोई और नहीं बल्कि उसका पिता ही उस पर ढा रहा है।
फगवाड़ा रोड पर स्थित गांव मरुली ब्राम्हणां निवासी सुरेश कुमार जब भी काम पर जाता है। वह अपने मासूम बेटे को अंधेरे घर में जानवरों की तरह बांध जाता है। मासूम चीखता चिल्लाता रहता है लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। यह क्रम काफी समय से चल रहा है।
गांव वाले भी सुरेश की इस करतूत से वाकिफ थे। उन्होंने उसे ऐसा करने से रोका लेकिन वह नहीं माना। रविवार को गांव वालों ने मासूम को अंधेरी कोठरी से मुक्त कराया। मासूम के हाथ और पैर पर रस्सी के निशान साफ दिखाई दे रहे थे। गांव वालों ने आरोप लगाया कि रोजाना इस घर से बच्चे की चीख पुकार सुनाई देती है। उन्होंने कई बार सुरेश को समझाया लेकिन वह बाज नहीं आया।
पिता ने कहा, मैं मजबूर हूं, शाम पांच बजे मासूम का पिता सुरेश भी घर आ गया। घर के बाहर लोगों की भीड़ देख उसने कहा कि मैं विकलांग हूं और मंडी में एक दुकान पर काम करता हूं। मेरा बेटा करण काफी नटखट है। उसे डर रहता है कि कहीं वह भाग ना जाए। बस इसी डर के चलते वह उसे कमरे में बंद करके चला जाता हूं। आज भी वह उसके लिए रोटी लेने गया था। सुरेश ने कहा कि पेट भरने लायक भी वह मुश्किल से कमा पाता है तो बच्चे को स्कूल कहां से भेजूं।
- भास्कर से




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