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Saturday, December 4, 2010

विकी खुलासा: नाक बचाने में जुटा शर्मसार अमेरिका

नई दिल्‍ली. विकीलीक्स के खुलासों से शर्मसार अमेरिका ने अपनी नाक बचाने और भारत को मनाने की पहल तेज कर दी है। विकीलीक्‍स ने ऐसे खुलासे किए हैं, जिनके बाद भारत-अमेरिका संबंधों पर बुरा असर पड़ने की आशंका बढ़ गई है। इसके मद्देनजर अमेरिका ने सफाई दी है कि वह संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्‍थायी सदस्‍यता के भारत के दावे को अहमियत देता है और उसका समर्थन करता है। खुलासे से बेपर्दा हो गए अमेरिका ने दुनिया के कई देशों से इस बारे में अफसोस भी जताया है।
शुक्रवार को विकीलीक्स द्वारा सामने लाए गए गोपनीय दस्तावेज में कहा गया था कि भारत सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य बनने के लिए 'खुद-ब-खुद दावेदार' बन गया है। अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के हवाले से कहा गया था कि भारत अपने तीन साझेदारों- ब्राजील, जर्मनी और जापान के साथ सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट का स्वयंभू दावेदार बन गया है। भारत इस समय सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है। यही नहीं, विकीलीक्‍स के खुलासे से यह बात भी सामने आई कि मुंबई हमलों के बाद अमेरिका पाकिस्‍तान और आईएसआई की मदद करते दिखा था।
इस खुलासे के बाद चेन्‍नई में अमेरिकन इंटरनेशनल स्कूल के एक कार्यक्रम के दौरान मीडिया से मुखातिब टिमोथी जे. रोमर (भारत में अमेरिकी राजदूत) ने कहा कि आप जो कहते हैं वह ज्यादा मायने नहीं रखता है, आप जो करते हैं वह मायने रखता है। उन्होंने कहा, सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के मुद्दे पर भारत की दावेदारी को समर्थन देने के राष्ट्रपति ओबामा के फैसले से पता चलता है कि अमेरिका इस मुद्दे पर कितना गंभीर है।
रोमर ने अमेरिका की नज़र में भारत की अहमियत जताने के लिए आगे कहा, ओबामा ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपतियों बिल क्लिंटन, जॉर्ज बुश की नकल नहीं की जो भारत यात्रा के बाद पाकिस्तान जाते थे। रोमर ने यह भी कहा कि ओबामा ने अपने कार्यकाल के दौरान विदेश में सबसे लंबा वक्त भारत में गुजारा है, जिससे भारत के साथ अमेरिका की लंबे समय तक चलने वाली रणनीतिक साझेदारी के प्रति अमेरिकी गंभीरता साफ हो जाती है।
सीटीबीटी, एनपीटी पर दस्तखत का दावे से संबंध नहीं
उधर, वाशिंगटन में भी अमेरिकी विदेश विभाग की ओर से जारी बयान में कहा गया कि अमेरिका अब भी चाहता है कि भारत परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) और कॉम्प्रीहेंसिव टेस्ट बैन ट्रीटी (सीटीबीटी) पर हस्ताक्षर करे, लेकिन अगर भारत इससे इनकार करता है तो भी सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की राह में कोई अड़चन नहीं आएगी।
भारत ने इन दोनों संधियों को भेदभाव भरा बताया है। भारत एनपीटी पर हस्ताक्षर करना चाहता है, लेकिन उसकी शर्त है कि भारत को परमाणु हथियार संपन्न देश के तौर पर मान्यता दी जाए। दरअसल, अंतरराष्ट्रीय समझौते के मुताबिक परमाणु हथियार संपन्न देश परमाणु हथियार बना और उसे रख सकता है लेकिन गैर परमाणु हथियार संपन्न देश को इसकी इजाजत नहीं है। ऐसे देश अगर परमाणु हथियार लेना चाहते हैं तो उन्हें अपनी योजना की पूरी जानकारी देनी होगी। हालांकि उत्तरी कोरिया इसका अपवाद रहा है।
आपकी राय
दुनिया के देशों की जासूसी और उनके प्रति अमेरिका की सोच एक-एक कर सामने आ रही है। भारत इस पूरे मसले पर फूंक-फूंक कर कदम उठा रहा है जबकि अमेरिका इस कोशिश में जुटा है कि उसके 'साथी' देश नाराज न हो जाएं। इतना कुछ होने के बाद क्‍या भारत को आंख मूंदकर यकीन कर लेना चाहिए कि अमेरिका भारत का हितैषी है? इस बारे में आप क्‍या सोचते हैं? khabrilal4u.blogspot.com के दुनियाभर के पाठकों से अपनी बात साझा करने के लिए नीचे कमेंट बॉक्‍स में अपनी राय लिखकर सबमिट कीजिए।





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Saturday, December 4, 2010

विकी खुलासा: नाक बचाने में जुटा शर्मसार अमेरिका

नई दिल्‍ली. विकीलीक्स के खुलासों से शर्मसार अमेरिका ने अपनी नाक बचाने और भारत को मनाने की पहल तेज कर दी है। विकीलीक्‍स ने ऐसे खुलासे किए हैं, जिनके बाद भारत-अमेरिका संबंधों पर बुरा असर पड़ने की आशंका बढ़ गई है। इसके मद्देनजर अमेरिका ने सफाई दी है कि वह संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्‍थायी सदस्‍यता के भारत के दावे को अहमियत देता है और उसका समर्थन करता है। खुलासे से बेपर्दा हो गए अमेरिका ने दुनिया के कई देशों से इस बारे में अफसोस भी जताया है।
शुक्रवार को विकीलीक्स द्वारा सामने लाए गए गोपनीय दस्तावेज में कहा गया था कि भारत सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य बनने के लिए 'खुद-ब-खुद दावेदार' बन गया है। अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के हवाले से कहा गया था कि भारत अपने तीन साझेदारों- ब्राजील, जर्मनी और जापान के साथ सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट का स्वयंभू दावेदार बन गया है। भारत इस समय सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है। यही नहीं, विकीलीक्‍स के खुलासे से यह बात भी सामने आई कि मुंबई हमलों के बाद अमेरिका पाकिस्‍तान और आईएसआई की मदद करते दिखा था।
इस खुलासे के बाद चेन्‍नई में अमेरिकन इंटरनेशनल स्कूल के एक कार्यक्रम के दौरान मीडिया से मुखातिब टिमोथी जे. रोमर (भारत में अमेरिकी राजदूत) ने कहा कि आप जो कहते हैं वह ज्यादा मायने नहीं रखता है, आप जो करते हैं वह मायने रखता है। उन्होंने कहा, सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के मुद्दे पर भारत की दावेदारी को समर्थन देने के राष्ट्रपति ओबामा के फैसले से पता चलता है कि अमेरिका इस मुद्दे पर कितना गंभीर है।
रोमर ने अमेरिका की नज़र में भारत की अहमियत जताने के लिए आगे कहा, ओबामा ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपतियों बिल क्लिंटन, जॉर्ज बुश की नकल नहीं की जो भारत यात्रा के बाद पाकिस्तान जाते थे। रोमर ने यह भी कहा कि ओबामा ने अपने कार्यकाल के दौरान विदेश में सबसे लंबा वक्त भारत में गुजारा है, जिससे भारत के साथ अमेरिका की लंबे समय तक चलने वाली रणनीतिक साझेदारी के प्रति अमेरिकी गंभीरता साफ हो जाती है।
सीटीबीटी, एनपीटी पर दस्तखत का दावे से संबंध नहीं
उधर, वाशिंगटन में भी अमेरिकी विदेश विभाग की ओर से जारी बयान में कहा गया कि अमेरिका अब भी चाहता है कि भारत परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) और कॉम्प्रीहेंसिव टेस्ट बैन ट्रीटी (सीटीबीटी) पर हस्ताक्षर करे, लेकिन अगर भारत इससे इनकार करता है तो भी सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की राह में कोई अड़चन नहीं आएगी।
भारत ने इन दोनों संधियों को भेदभाव भरा बताया है। भारत एनपीटी पर हस्ताक्षर करना चाहता है, लेकिन उसकी शर्त है कि भारत को परमाणु हथियार संपन्न देश के तौर पर मान्यता दी जाए। दरअसल, अंतरराष्ट्रीय समझौते के मुताबिक परमाणु हथियार संपन्न देश परमाणु हथियार बना और उसे रख सकता है लेकिन गैर परमाणु हथियार संपन्न देश को इसकी इजाजत नहीं है। ऐसे देश अगर परमाणु हथियार लेना चाहते हैं तो उन्हें अपनी योजना की पूरी जानकारी देनी होगी। हालांकि उत्तरी कोरिया इसका अपवाद रहा है।
आपकी राय
दुनिया के देशों की जासूसी और उनके प्रति अमेरिका की सोच एक-एक कर सामने आ रही है। भारत इस पूरे मसले पर फूंक-फूंक कर कदम उठा रहा है जबकि अमेरिका इस कोशिश में जुटा है कि उसके 'साथी' देश नाराज न हो जाएं। इतना कुछ होने के बाद क्‍या भारत को आंख मूंदकर यकीन कर लेना चाहिए कि अमेरिका भारत का हितैषी है? इस बारे में आप क्‍या सोचते हैं? khabrilal4u.blogspot.com के दुनियाभर के पाठकों से अपनी बात साझा करने के लिए नीचे कमेंट बॉक्‍स में अपनी राय लिखकर सबमिट कीजिए।





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