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Sunday, December 5, 2010

वाराणसी में लोककला के जरिये मानव व्यापार पर अंकुश लगाने की कोशिश

वाराणसी-वाराणसी में गंगा के घाट पर इन दिनों बिलकुल अलग किस्म की पहल हो रही है. ये पहल लोककला की है जिसे लेकर समाज आज अपना मुह फेरे बैठा है. इसका मकसद मानव व्यापार पर लगाम कसना है. खासतौर पर बच्चों के मानव व्यापार पर अंकुश लगाना. अलग अलग राज्यों के लोक संगीत और लोक नृत्य की यहाँ प्रस्तुति हो रही है. जिसमे ‘‘ढाई आखर प्रेम का’’ का सन्देश शामिल है। मगर इसमें शामिल होने वाली कई कलाकार ख़ास हैं. जो कभी अँधेरी दुनिया का छुपा नाम थीं. आज लोक कलाकार के रूप में समाज में अलग पहचान की जद्दोजेहद में जुटी हैं. मानव व्यापार पर अंकुश लगाने की लड़ाई लड़ रही हैं. कभी अँधेरी डगर पर इनके कदम डगमगाते थे. मगर आज उस राह से आगे निकाल ये महिलाएं लोगों के बीच‘‘ढाई आखर प्रेम का’’ का सन्देश बाँट रही हैं. मंच पर सधे कदमो से नृत्य कर रही है. समाज की मुख्य धारा से जुड़ रहे ये गुमनाम कलाकार गंगा की गोद में सजी महफ़िल में शामिल है. उमीद है गंगा इनकी तारनहार बनेंगी. आज ये लोक कलाकार बदलाव की लहर पैदा कर रही हैं. इसके लिये इन्होने चुना है संगीत और लोक नृत्य का माध्यम जिससे समाज में बदलाव आता है. ये वाराणसी में आकर अपने सपने सच कर रही हैं तो मानव व्यापार के खिलाफ आवाज भी मुखर कर रही हैं. संगीत और इश्वर में खुद को रमा, जिन्दगी बदल चुकि इन कलाकारों की आस है की मानव व्यापार के धंधे पर लगाम लगे. बच्चों को इस दलदल में फंसने से रोका जा सके. गुडिया संस्था जो इस आयोजन को करा रही है उसकी माने तो भले ही इसे चुनिन्दा लोग देखें मगर एक सन्देश तो समाज में बदलाव का जा ही रहा है. आज ये कलाकार गुमनाम जरूर हैं. मगर अपनी लोक कला को नया आयाम देने में जुट गए हैं. इनकी अलग पहचान दुनिया में बनने लगी है. भले ही ये संगीत और नृत्य पूरी तरह से भारतीय परिवेश में रंग था. लेकिन इसे देखने और पसंद करने वालों में विदेशी मेहमानों की संख्या ज्यादा थी. सभी ने इस अनोखे संगीत का ज़मकर लुफ्त लिया ! वाराणसी में गंगा की लहरियों के बीच ये संगीत की वो गूंज है जिस पर वक्त का धुल जमी है. पारंपरिक लोक संगीत और नृत्य के जरिये बदलाव के कई नए आयाम यहाँ गढ़े जा रहे हैं. दम तोड़ती, भूली बिसरी कला को पुनर्जीवित किया जा रहा है. तो उन कलाकारों के लिये भी एक कोशिश है जो सूरज के उजाले के साथ जिन्दगी की नई शुरुआत कर चुके हैं. एक नेक नियत के साथ शुरू इस समारोह में ये सन्देश भी है की समाज से उपेक्षित इन लोगों पर थोड़ा सा भी ध्यान संविधान में समानता से जीने के अधिकार को सही मायनों में साकार करेगा

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Sunday, December 5, 2010

वाराणसी में लोककला के जरिये मानव व्यापार पर अंकुश लगाने की कोशिश

वाराणसी-वाराणसी में गंगा के घाट पर इन दिनों बिलकुल अलग किस्म की पहल हो रही है. ये पहल लोककला की है जिसे लेकर समाज आज अपना मुह फेरे बैठा है. इसका मकसद मानव व्यापार पर लगाम कसना है. खासतौर पर बच्चों के मानव व्यापार पर अंकुश लगाना. अलग अलग राज्यों के लोक संगीत और लोक नृत्य की यहाँ प्रस्तुति हो रही है. जिसमे ‘‘ढाई आखर प्रेम का’’ का सन्देश शामिल है। मगर इसमें शामिल होने वाली कई कलाकार ख़ास हैं. जो कभी अँधेरी दुनिया का छुपा नाम थीं. आज लोक कलाकार के रूप में समाज में अलग पहचान की जद्दोजेहद में जुटी हैं. मानव व्यापार पर अंकुश लगाने की लड़ाई लड़ रही हैं. कभी अँधेरी डगर पर इनके कदम डगमगाते थे. मगर आज उस राह से आगे निकाल ये महिलाएं लोगों के बीच‘‘ढाई आखर प्रेम का’’ का सन्देश बाँट रही हैं. मंच पर सधे कदमो से नृत्य कर रही है. समाज की मुख्य धारा से जुड़ रहे ये गुमनाम कलाकार गंगा की गोद में सजी महफ़िल में शामिल है. उमीद है गंगा इनकी तारनहार बनेंगी. आज ये लोक कलाकार बदलाव की लहर पैदा कर रही हैं. इसके लिये इन्होने चुना है संगीत और लोक नृत्य का माध्यम जिससे समाज में बदलाव आता है. ये वाराणसी में आकर अपने सपने सच कर रही हैं तो मानव व्यापार के खिलाफ आवाज भी मुखर कर रही हैं. संगीत और इश्वर में खुद को रमा, जिन्दगी बदल चुकि इन कलाकारों की आस है की मानव व्यापार के धंधे पर लगाम लगे. बच्चों को इस दलदल में फंसने से रोका जा सके. गुडिया संस्था जो इस आयोजन को करा रही है उसकी माने तो भले ही इसे चुनिन्दा लोग देखें मगर एक सन्देश तो समाज में बदलाव का जा ही रहा है. आज ये कलाकार गुमनाम जरूर हैं. मगर अपनी लोक कला को नया आयाम देने में जुट गए हैं. इनकी अलग पहचान दुनिया में बनने लगी है. भले ही ये संगीत और नृत्य पूरी तरह से भारतीय परिवेश में रंग था. लेकिन इसे देखने और पसंद करने वालों में विदेशी मेहमानों की संख्या ज्यादा थी. सभी ने इस अनोखे संगीत का ज़मकर लुफ्त लिया ! वाराणसी में गंगा की लहरियों के बीच ये संगीत की वो गूंज है जिस पर वक्त का धुल जमी है. पारंपरिक लोक संगीत और नृत्य के जरिये बदलाव के कई नए आयाम यहाँ गढ़े जा रहे हैं. दम तोड़ती, भूली बिसरी कला को पुनर्जीवित किया जा रहा है. तो उन कलाकारों के लिये भी एक कोशिश है जो सूरज के उजाले के साथ जिन्दगी की नई शुरुआत कर चुके हैं. एक नेक नियत के साथ शुरू इस समारोह में ये सन्देश भी है की समाज से उपेक्षित इन लोगों पर थोड़ा सा भी ध्यान संविधान में समानता से जीने के अधिकार को सही मायनों में साकार करेगा

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