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Friday, March 25, 2016

...तुम जो बोलेगे तुम्हे मिलेगा पाक में हुस्न की कमीं नहीं है!!

 सौरभ चन्द्र द्विवेदी (Writer at Freelancer Content Writer and distric president at Social Worker)


भारत की जीत की खुशी सभी भारतीयों के दिल में गिटार की तरह बज रही है। मेरे दिल में एक मीठा सा दर्द भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश को लेकर है। जिस प्रकार से क्रिकेट का खुमार चढा रहता है और हमारी भक्ति की आसक्ति जीत और सिर्फ जीत पर टिकी होती है वरना हमारी तपस्या भंग होने के पूर्ण आसार रहते है। भारत पाकिस्तान के मैच से पहले और बाद में एक पाकिस्तानी माॅडल कंदील बलोच की सुरमयी आवाज पहले तो तन मन में असुरक्षा की भावना को जन्म दे देती है। वे कहतीं है कि "अफरीदी मेरी जान देखो आज का दिन है न, बहुत बडा दिन है। तुम भूल जाओ कि तुम्हारे आसपास कैटरीना, ऐश्वर्या, सनी लियोन है। तुम जो बोलेगे तुम्हे मिलेगा पाक में हुस्न की कमीं नहीं है, तुम जो चाहोगे तुम्हे मिलेगा।"
मतलब की प्रगतिशीलता मे पाकिस्तान भी कम आगे नहीं है और हुस्न के पुजारी हैं। एक माॅडल एक मैच जीतने के लिये खुलेआम अपना जिस्म समर्पित करने का आफर तो करती ही है साथ ही स्ट्रिप डांस करने का वादा भी बस दरकार थी सिर्फ एक जीत की और अफरीदी की बल्ले बल्ले हो सकती थी लेकिन निर्भर अफरीदी पर करता था कि खुलेआम दिये गये आफर को खुले मन से स्वीकार करते थे या नहीं वैसे अफरीदी जैसे हाई प्रोफाइल आदमी खुलेआम तो नहीं लेकिन चोरी चोरी चुपके चुपके इस दुनिया मे कुछ भी संभव है।
भारत पाकिस्तान के मैच मे बात यहीं आकर खत्म नहीं होती है। पाकिस्तानी प्रशंसकों ने अपनी ही टीम की अर्थी निकाल दी। कमोवेश पाकिस्तान से हारने पर भारत में भी खिलाडियों के साथ कुछ ऐसे ही हालात देखने को मिलते। कुल मिलाकर के क्रिकेट के बहाने ही सही भारत पाकिस्तान के रिश्तों की हकीकत का मुआयना हो जाना चाहिए। ध्रतराष्ट्र की तरह सरकार आंखों में पट्टी बांधकर शांति शांति का अभियान चला तो सकती है लेकिन भारत पाक की जनता के दिलों में ही एक दूसरे को लेकर शांति नहीं है।
अगर शांति होती तो पाकिस्तान में टीवी नहीं टूट जाती। ये मान सकते है कि कंदील बलोच ने चर्चा मे बने रहने के लिए अपनी मादक आवाज में और मादक तन को दिखाकर भारतीय प्लेयर के लिये भी डांस किया लेकिन मैच हारने के बाद ये भी कहना कि तुम वापस पाकिस्तान मत आना, आई हेट यू अफरीदी, आई हेट यू।
ये है जन जन के दिलों की आग भारत पाक के रिश्तों को लेकर। मैने जब से होश संभाला और इतिहास में पढा कि भारत पाक का बंटवारा 1947 में हुआ था और कारण महज राजनीतिक महत्वाकांक्षा। जिन्ना शायद आज 72 हूरों के पास होगें और नेहरू गांधी की आत्मा अजर अमर होगी लेकिन भारत पाकिस्तान आज भी बंटवारे की आग में झुलस रहे है। जम्मू कश्मीर तो महज एक बहाना ही है क्यूंकि ये किसी से छिपा नही है कि जो पाकिस्तान है वही भारत है। जमीन के कुछ हिस्से के लिए आखिर और कितनी जाने गंवायेगें ? मौत का मंजर दोनों तरफ बिछ जाता है लेकिन अफसोस कि ये नफरत मुहब्बत मे नहीं बदल रही है।
आतंकवाद अपना काम करता है और सेना के जवान अपना कर्तव्य निभाते हुए शहीद हो जाते है। कल जब बांग्लादेश से क्रिकेट खेल रहे थे तब भी यही याद आया कि ये भारत और पाकिस्तान के नफरत की पैदाइश बांग्लादेश है। कल शायद भारत मैच हार जाता तो उतना बुरा नहीं लगता जितना कि पाकिस्तान से हारकर भारतीयों की भी नींद उड जाती है। लेकिन बेहद ही रोमांचकारी तरीके से भारत ने बांग्लादेश टीम को परास्त कर दिया। ट्वेंटी ट्वेंटी विश्व कप के अनुसार हर एक मैच जितना उतना ही आवश्यक है जैसे सेना ने करगिल का युद्ध जीता था। कारगिल युद्ध घुसपैठ का अंजाम था और ट्वेंटी ट्वेंटी विश्व कप भी वनडे के मध्य घुसपैठ का अंजाम है। जो आतंकवाद और सेना की जंग की तरह ही बेहद रोमांचकारी होता है।
भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश ये तीनो मूलस्वरूप हैं और हिंदू मुस्लिम की नफरत की पैदाइश पाकिस्तान, बांग्लादेश हैं और इसी नफरत मे भारत अंदर ही अंदर जल रहा है। ये नफरत भी मामूली नहीं है बल्कि शायद ही इस नफरत का कभी अंत होगा। शांति वार्ता कितनी भी हो जाये बडा मुश्किल ही प्रतीत होता है कि भारत पाकिस्तान के कभी मधुर संबंध होगे क्यूंकि दोनो देश की जनता एक खेल को खेल की भावना से नहीं देख पाती है और यहां राष्ट्रीय अस्मिता तथा गौरव की बात है। इसलिये तो बहुत पहले ही कह दिया गया है कि कश्मीर भारत का हृदय है। तब इसका हल यही है कि भारत पाक को बेपनाह मुहब्बत हो जाये किंतु परंतु यही है कि पाकिस्तान में बैठे हाफिज जैसे लोग भारत से मधुर संबंध चाहते ही नही है और ना ही दोनों देश की जनता समझौता कर सकती है। मेरी समझ से परे है कि सरकार की अपनी क्या मजबूरी होती है कि वो असलियत जानते हुए भी शांति वार्ता की अपील करती रहती है।
एक दिन सरकार के रिश्ते मधुर हो सकते हैं, अब की तरह क्रिकेट हमेशा खेला जायेगा, सीमा पार से व्यापार बढ सकता है लेकिन यकीन मानिये आतंकवाद कभी खत्म नहीं होगा। इसलिये अपने देश की सीमा सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि परिंदा भी पर न मार सके क्यूंकि एक बार विश्वास टूट गया है तो मुझे नहीं लगता कि अब अथक प्रयासों के बाद भी शराफत से पाकिस्तान हमसे रिश्ता निभायेगा। अपनी नफरत की आग में पाकिस्तान स्वयं जल जायेगा बस भारत सरकार दोनों देश की जन भावनाओ को क्रिकेट के बहाने ही महसूस कर ले और उसी प्रकार अपनी राष्ट्रनीति बना ले। पाकिस्तान को बिल्कुल अलग थलग कर देना चाहिए और आतंकवाद के खात्मे के लिए अंतर्राष्ट्रीय जगत मे प्रयास करने चाहिए फिर पाकिस्तान स्वयं औकात मे आ जायेगा, अगर बरसाती मेढक से आप शांति की अपील करेगें तो असंभव ही है और पाकिस्तान एक खतरनाक बरसाती मेढक है। इसलिये पाकिस्तान का इलाज करना ही आवश्यक है फिर शांति तो अपने आप कायम हो जायेगी।

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Friday, March 25, 2016

...तुम जो बोलेगे तुम्हे मिलेगा पाक में हुस्न की कमीं नहीं है!!

 सौरभ चन्द्र द्विवेदी (Writer at Freelancer Content Writer and distric president at Social Worker)


भारत की जीत की खुशी सभी भारतीयों के दिल में गिटार की तरह बज रही है। मेरे दिल में एक मीठा सा दर्द भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश को लेकर है। जिस प्रकार से क्रिकेट का खुमार चढा रहता है और हमारी भक्ति की आसक्ति जीत और सिर्फ जीत पर टिकी होती है वरना हमारी तपस्या भंग होने के पूर्ण आसार रहते है। भारत पाकिस्तान के मैच से पहले और बाद में एक पाकिस्तानी माॅडल कंदील बलोच की सुरमयी आवाज पहले तो तन मन में असुरक्षा की भावना को जन्म दे देती है। वे कहतीं है कि "अफरीदी मेरी जान देखो आज का दिन है न, बहुत बडा दिन है। तुम भूल जाओ कि तुम्हारे आसपास कैटरीना, ऐश्वर्या, सनी लियोन है। तुम जो बोलेगे तुम्हे मिलेगा पाक में हुस्न की कमीं नहीं है, तुम जो चाहोगे तुम्हे मिलेगा।"
मतलब की प्रगतिशीलता मे पाकिस्तान भी कम आगे नहीं है और हुस्न के पुजारी हैं। एक माॅडल एक मैच जीतने के लिये खुलेआम अपना जिस्म समर्पित करने का आफर तो करती ही है साथ ही स्ट्रिप डांस करने का वादा भी बस दरकार थी सिर्फ एक जीत की और अफरीदी की बल्ले बल्ले हो सकती थी लेकिन निर्भर अफरीदी पर करता था कि खुलेआम दिये गये आफर को खुले मन से स्वीकार करते थे या नहीं वैसे अफरीदी जैसे हाई प्रोफाइल आदमी खुलेआम तो नहीं लेकिन चोरी चोरी चुपके चुपके इस दुनिया मे कुछ भी संभव है।
भारत पाकिस्तान के मैच मे बात यहीं आकर खत्म नहीं होती है। पाकिस्तानी प्रशंसकों ने अपनी ही टीम की अर्थी निकाल दी। कमोवेश पाकिस्तान से हारने पर भारत में भी खिलाडियों के साथ कुछ ऐसे ही हालात देखने को मिलते। कुल मिलाकर के क्रिकेट के बहाने ही सही भारत पाकिस्तान के रिश्तों की हकीकत का मुआयना हो जाना चाहिए। ध्रतराष्ट्र की तरह सरकार आंखों में पट्टी बांधकर शांति शांति का अभियान चला तो सकती है लेकिन भारत पाक की जनता के दिलों में ही एक दूसरे को लेकर शांति नहीं है।
अगर शांति होती तो पाकिस्तान में टीवी नहीं टूट जाती। ये मान सकते है कि कंदील बलोच ने चर्चा मे बने रहने के लिए अपनी मादक आवाज में और मादक तन को दिखाकर भारतीय प्लेयर के लिये भी डांस किया लेकिन मैच हारने के बाद ये भी कहना कि तुम वापस पाकिस्तान मत आना, आई हेट यू अफरीदी, आई हेट यू।
ये है जन जन के दिलों की आग भारत पाक के रिश्तों को लेकर। मैने जब से होश संभाला और इतिहास में पढा कि भारत पाक का बंटवारा 1947 में हुआ था और कारण महज राजनीतिक महत्वाकांक्षा। जिन्ना शायद आज 72 हूरों के पास होगें और नेहरू गांधी की आत्मा अजर अमर होगी लेकिन भारत पाकिस्तान आज भी बंटवारे की आग में झुलस रहे है। जम्मू कश्मीर तो महज एक बहाना ही है क्यूंकि ये किसी से छिपा नही है कि जो पाकिस्तान है वही भारत है। जमीन के कुछ हिस्से के लिए आखिर और कितनी जाने गंवायेगें ? मौत का मंजर दोनों तरफ बिछ जाता है लेकिन अफसोस कि ये नफरत मुहब्बत मे नहीं बदल रही है।
आतंकवाद अपना काम करता है और सेना के जवान अपना कर्तव्य निभाते हुए शहीद हो जाते है। कल जब बांग्लादेश से क्रिकेट खेल रहे थे तब भी यही याद आया कि ये भारत और पाकिस्तान के नफरत की पैदाइश बांग्लादेश है। कल शायद भारत मैच हार जाता तो उतना बुरा नहीं लगता जितना कि पाकिस्तान से हारकर भारतीयों की भी नींद उड जाती है। लेकिन बेहद ही रोमांचकारी तरीके से भारत ने बांग्लादेश टीम को परास्त कर दिया। ट्वेंटी ट्वेंटी विश्व कप के अनुसार हर एक मैच जितना उतना ही आवश्यक है जैसे सेना ने करगिल का युद्ध जीता था। कारगिल युद्ध घुसपैठ का अंजाम था और ट्वेंटी ट्वेंटी विश्व कप भी वनडे के मध्य घुसपैठ का अंजाम है। जो आतंकवाद और सेना की जंग की तरह ही बेहद रोमांचकारी होता है।
भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश ये तीनो मूलस्वरूप हैं और हिंदू मुस्लिम की नफरत की पैदाइश पाकिस्तान, बांग्लादेश हैं और इसी नफरत मे भारत अंदर ही अंदर जल रहा है। ये नफरत भी मामूली नहीं है बल्कि शायद ही इस नफरत का कभी अंत होगा। शांति वार्ता कितनी भी हो जाये बडा मुश्किल ही प्रतीत होता है कि भारत पाकिस्तान के कभी मधुर संबंध होगे क्यूंकि दोनो देश की जनता एक खेल को खेल की भावना से नहीं देख पाती है और यहां राष्ट्रीय अस्मिता तथा गौरव की बात है। इसलिये तो बहुत पहले ही कह दिया गया है कि कश्मीर भारत का हृदय है। तब इसका हल यही है कि भारत पाक को बेपनाह मुहब्बत हो जाये किंतु परंतु यही है कि पाकिस्तान में बैठे हाफिज जैसे लोग भारत से मधुर संबंध चाहते ही नही है और ना ही दोनों देश की जनता समझौता कर सकती है। मेरी समझ से परे है कि सरकार की अपनी क्या मजबूरी होती है कि वो असलियत जानते हुए भी शांति वार्ता की अपील करती रहती है।
एक दिन सरकार के रिश्ते मधुर हो सकते हैं, अब की तरह क्रिकेट हमेशा खेला जायेगा, सीमा पार से व्यापार बढ सकता है लेकिन यकीन मानिये आतंकवाद कभी खत्म नहीं होगा। इसलिये अपने देश की सीमा सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि परिंदा भी पर न मार सके क्यूंकि एक बार विश्वास टूट गया है तो मुझे नहीं लगता कि अब अथक प्रयासों के बाद भी शराफत से पाकिस्तान हमसे रिश्ता निभायेगा। अपनी नफरत की आग में पाकिस्तान स्वयं जल जायेगा बस भारत सरकार दोनों देश की जन भावनाओ को क्रिकेट के बहाने ही महसूस कर ले और उसी प्रकार अपनी राष्ट्रनीति बना ले। पाकिस्तान को बिल्कुल अलग थलग कर देना चाहिए और आतंकवाद के खात्मे के लिए अंतर्राष्ट्रीय जगत मे प्रयास करने चाहिए फिर पाकिस्तान स्वयं औकात मे आ जायेगा, अगर बरसाती मेढक से आप शांति की अपील करेगें तो असंभव ही है और पाकिस्तान एक खतरनाक बरसाती मेढक है। इसलिये पाकिस्तान का इलाज करना ही आवश्यक है फिर शांति तो अपने आप कायम हो जायेगी।

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