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Friday, July 27, 2012

आज़ाद देश का गुलाम


आज भले ही देश को आज़ादी मिले 65 बरस बीत चुके हो लेकिन पिछले 15 बरसो से लोहे की बेडियों में जकड़े उमेश उर्फ़ काका को भी अपनी आज़ादी का इंतजार है की कब उसके पैरो की बेडियों को खोलकर उसे आज़ादी दिलाई जाएगी | लोहे की बेडियों में कैद उमेश को किसी अंग्रेजी हुकूमत ने कैद नहीं किया बल्कि उसके खुद अपने परिजनों की कैद में है | सड़क किनारे पर बनी इस झोपडी में ही दिन की शुरुआत करने वाले उमेश की रात भी इसी में गुजर जाती है जिसका उसे पता ही नहीं चलता | बूढ़े हो चुके माँ बाप भी अपने जिगर के इस टुकड़े से तंग आ चुके है | 
सवस्थ व्यक्ति के लिए मानसिक संतुलन का ठीक होना आवश्यक है | यदि किसी व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगड़ जाये तों उसका जीवन नर्क के सामान हो जाता है |कभी कभी ज्यादा तनाव या फिर ज्यादा ख़ुशी मिलने से भी व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है | ऐसा ही हुआ  मुजफ़्फ़र नगर के फलोदा गाँव में पिछले 10 बरसो से उमेश उर्फ़ काका का मानसिक संतुलन ऐसा बिगड़ा की उलटी सीधी हरकते करने लगा जिससे गाँव के लोग ही नहीं बल्कि परिजन भी उसकी हरकतों से तंग आ गये जिसके चलते 15 सालो से उसे लोहे की जंजीरों में बांध कर रखा जाता है | दरअसल जंजीरों में जकड़ा उमेश 12 साल पहले स्वस्थ था और अपनी पत्नी चन्द्र किरण  व दो  बच्चो के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहा था |लेकिन उसके भाँग का नशा करने के शोक ने उसका जीवन नर्क कर दिया और उलटी सीधी हरकते करने लगा जिससे परेशान होकर पत्नी भी अपने बच्चो को लेकर उमेश को छोड़कर चली गयी | बूढ़े माँ बाप ने काफी इलाज कराया लेकिन सब व्यर्थ था | 
धीरे धीरे उमेश की उदंडता बढती गयी जिसपर परिजनों ने उसके पैरो में लोहे की बेडिया डाल दी | हाथो  में  लाठी और चेहरे पर झुर्रियों का जाल लिए ये बूढ़ा व्यक्ति बुधराम उमेश का पिता है जिसकी झील सी इन गहरी आँखों में गम के सिवा कुछ भी नहीं है ये रोना तों चाहता है शायद वक़्त के थपेड़ो और मुफलिसी ने इसके आँसुओ को सोख लिया है | हमेशा अपने बेटे के ठीक हो जाने के लिए इश्वर से प्रार्थना करता है वंही इस बात को भी स्वीकार करता है की अपने जिगर के इस टुकड़े को बरसो से जंजीरों में कैद कर रखा है | उमेश की माँ प्रेमो भी अपने इस लाल से तंग आ चुकी है उसका कहना है की जिस उम्र में उनकी सेवा बेटे को करनी चाहिए थी लेकिन आज इन बुधो को अपने जवान बेटे के सभी काम काज करने पड़ते है,आज उनके पास अपने बेटे के इलाज करने के पैसे भी नहीं है मुश्किल से दो वक़्त की रोटी गाँव से चलती है | गाँव वालो को नुकसान न पंहुचा दे इसी लिए उमेश को जंजीरों में जकड़ा गया है | अपने दुखी मान से उमेश की माँ भी अब अपने बेटे से अपना पीछा छुड़ाना चाहती है | वो  चाहती है की कोई भी इसे ऐसी जगह भर्ती करा दे जंहा उनका बेटा इलाज से सही हो सके |
ग्रामीण भी काका को जंजीरों में जकड़े रहने को गलत मानते है मगर मदद के लिए कोई सामने आने को तैयार नहीं है \ ग्राम प्रधान का कहना है की कई बार इनकी मदद के लिए आवाज उठाई  मगर उनकी लाचारी ओर गरीबी के चलते प्रशासन के कानो पर भी जू नहीं रेंगी | 
जिला चिकित्सा अधिकारी से जब इस युवक के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जानकारी ना होने के साथ साथ हर संभव मदद की बात कही | खुद जिला चिकित्सा अधिकारी भी लम्बे समय से जंजीरों में जकड़े रहने के कारण कई गंभीर बिमारी हो जाने की संभावना जाता रहे है | साथ ही चिकित्सको द्वारा उमेश का मेडिकल जाँच कराकर आगे की कार्यवाही की बात कहते है | मुख्य चिकित्सा अधिकारी भी जंजीरों में इस तरह से किसी भी युवक को कैद में रखने को गैर कानूनी भी मानते है | 
आज भारत देश को आज़ाद हुये भले ही ६२ बरस हो चुके हो लेकिन उमेश के पैरो में पड़ी इन लोहे की बेडियों को देखकर लगता है की उमेश आज भी  आज़ाद देश का गुलाम है | हालाकि यह सिर्फ उसके मानसिक संतुलन ठीक न होने के कारण जिन बूढ़े माँ बाप को बुढ़ापे में अपने बेटे से सेवा करने का सहारा होता है आज वही माँ बाप अपने जवान बेटे का सहारा बने है और उसकी मन से सेवा कर रहे है | उन्हें इंतजार है उस फ़रिश्ते की जो उनके बेटे को सही जगह भर्ती कराकर उसका इलाज करा सके | 

- Amit Saini

Friday, July 27, 2012

आज़ाद देश का गुलाम


आज भले ही देश को आज़ादी मिले 65 बरस बीत चुके हो लेकिन पिछले 15 बरसो से लोहे की बेडियों में जकड़े उमेश उर्फ़ काका को भी अपनी आज़ादी का इंतजार है की कब उसके पैरो की बेडियों को खोलकर उसे आज़ादी दिलाई जाएगी | लोहे की बेडियों में कैद उमेश को किसी अंग्रेजी हुकूमत ने कैद नहीं किया बल्कि उसके खुद अपने परिजनों की कैद में है | सड़क किनारे पर बनी इस झोपडी में ही दिन की शुरुआत करने वाले उमेश की रात भी इसी में गुजर जाती है जिसका उसे पता ही नहीं चलता | बूढ़े हो चुके माँ बाप भी अपने जिगर के इस टुकड़े से तंग आ चुके है | 
सवस्थ व्यक्ति के लिए मानसिक संतुलन का ठीक होना आवश्यक है | यदि किसी व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगड़ जाये तों उसका जीवन नर्क के सामान हो जाता है |कभी कभी ज्यादा तनाव या फिर ज्यादा ख़ुशी मिलने से भी व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है | ऐसा ही हुआ  मुजफ़्फ़र नगर के फलोदा गाँव में पिछले 10 बरसो से उमेश उर्फ़ काका का मानसिक संतुलन ऐसा बिगड़ा की उलटी सीधी हरकते करने लगा जिससे गाँव के लोग ही नहीं बल्कि परिजन भी उसकी हरकतों से तंग आ गये जिसके चलते 15 सालो से उसे लोहे की जंजीरों में बांध कर रखा जाता है | दरअसल जंजीरों में जकड़ा उमेश 12 साल पहले स्वस्थ था और अपनी पत्नी चन्द्र किरण  व दो  बच्चो के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहा था |लेकिन उसके भाँग का नशा करने के शोक ने उसका जीवन नर्क कर दिया और उलटी सीधी हरकते करने लगा जिससे परेशान होकर पत्नी भी अपने बच्चो को लेकर उमेश को छोड़कर चली गयी | बूढ़े माँ बाप ने काफी इलाज कराया लेकिन सब व्यर्थ था | 
धीरे धीरे उमेश की उदंडता बढती गयी जिसपर परिजनों ने उसके पैरो में लोहे की बेडिया डाल दी | हाथो  में  लाठी और चेहरे पर झुर्रियों का जाल लिए ये बूढ़ा व्यक्ति बुधराम उमेश का पिता है जिसकी झील सी इन गहरी आँखों में गम के सिवा कुछ भी नहीं है ये रोना तों चाहता है शायद वक़्त के थपेड़ो और मुफलिसी ने इसके आँसुओ को सोख लिया है | हमेशा अपने बेटे के ठीक हो जाने के लिए इश्वर से प्रार्थना करता है वंही इस बात को भी स्वीकार करता है की अपने जिगर के इस टुकड़े को बरसो से जंजीरों में कैद कर रखा है | उमेश की माँ प्रेमो भी अपने इस लाल से तंग आ चुकी है उसका कहना है की जिस उम्र में उनकी सेवा बेटे को करनी चाहिए थी लेकिन आज इन बुधो को अपने जवान बेटे के सभी काम काज करने पड़ते है,आज उनके पास अपने बेटे के इलाज करने के पैसे भी नहीं है मुश्किल से दो वक़्त की रोटी गाँव से चलती है | गाँव वालो को नुकसान न पंहुचा दे इसी लिए उमेश को जंजीरों में जकड़ा गया है | अपने दुखी मान से उमेश की माँ भी अब अपने बेटे से अपना पीछा छुड़ाना चाहती है | वो  चाहती है की कोई भी इसे ऐसी जगह भर्ती करा दे जंहा उनका बेटा इलाज से सही हो सके |
ग्रामीण भी काका को जंजीरों में जकड़े रहने को गलत मानते है मगर मदद के लिए कोई सामने आने को तैयार नहीं है \ ग्राम प्रधान का कहना है की कई बार इनकी मदद के लिए आवाज उठाई  मगर उनकी लाचारी ओर गरीबी के चलते प्रशासन के कानो पर भी जू नहीं रेंगी | 
जिला चिकित्सा अधिकारी से जब इस युवक के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जानकारी ना होने के साथ साथ हर संभव मदद की बात कही | खुद जिला चिकित्सा अधिकारी भी लम्बे समय से जंजीरों में जकड़े रहने के कारण कई गंभीर बिमारी हो जाने की संभावना जाता रहे है | साथ ही चिकित्सको द्वारा उमेश का मेडिकल जाँच कराकर आगे की कार्यवाही की बात कहते है | मुख्य चिकित्सा अधिकारी भी जंजीरों में इस तरह से किसी भी युवक को कैद में रखने को गैर कानूनी भी मानते है | 
आज भारत देश को आज़ाद हुये भले ही ६२ बरस हो चुके हो लेकिन उमेश के पैरो में पड़ी इन लोहे की बेडियों को देखकर लगता है की उमेश आज भी  आज़ाद देश का गुलाम है | हालाकि यह सिर्फ उसके मानसिक संतुलन ठीक न होने के कारण जिन बूढ़े माँ बाप को बुढ़ापे में अपने बेटे से सेवा करने का सहारा होता है आज वही माँ बाप अपने जवान बेटे का सहारा बने है और उसकी मन से सेवा कर रहे है | उन्हें इंतजार है उस फ़रिश्ते की जो उनके बेटे को सही जगह भर्ती कराकर उसका इलाज करा सके | 

- Amit Saini