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Monday, November 10, 2014

आखिर ठगों को क्यों नटवरलाल की संज्ञा दी जाती है??

नटवरलाल की गिनती भारत के प्रमुख ठगों में से होती है। बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गाँव में जन्में नटवरलाल ने बहुत से ठगी की घटनाओं से बिहारउत्तर प्रदेशमध्य प्रदेश और दिल्ली की सरकारों को वर्षों परेशान रखा।

     मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव नाम से आपको कोई चेहरा शायद याद नहीं आए लेकिन नटवर लाल नाम लिया जाए तो आप लगभग मुहावरा बन चुके इस नाम को भूल नहीं पाएंगे। चालाकी और ठगी को ललित कला बना देने वाला यह शख्स अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उस पर बहुत सारी किताबें लिखी गई और एक फिल्म बनी–‘मिस्टर नटवर लालजिसमें अमिताभ बच्चन हीरो थे। नटवर लाल मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव के 52 से ज्यादा ज्ञात नामों में से एक था। उसे ठगी के जिन मामलों में सजा हो चुकी थी, वह अगर पूरी काटता तो 117 साल की थी। 30 मामलों में तो सजा हो ही नहीं पाई थी। आठ राज्यों की पुलिस ने उस पर इनाम घोषित किया था। बिहार का सिवान जिले में नटवर लाल का भी जन्म हुआ था। 
नटवर लाल हमेशा बहुत नाटकीय तरीके से अपराध करता था। उससे भी ज्यादा नाटकीय तरीके से पकड़ा जाता था और उससे भी ज्यादा नाटकीय तरीके से फरार होता था। लगभग 75 साल की उम्र में दिल्ली की तिहाड़ जेल से कानपुर के एक मामले में पेशी के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के दो जवान और एक हवलदार उसे लेने आए थे। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से लखनऊ मेल में उन्हें बैठना था। स्टेशन पर खासी भीड़़। पहरेदार मौजूद और नटवर लाल बैंच पर बैठा हाफ रहा था। उसने सिपाही से कहा कि बेटा बाहर से दवाई की गोली ला दो। मेरे पास पैसा नहीं हैं लेकिन जब रिश्तेदार मिलने आएंगे तो दे दूंगा। यह बात अलग है कि उसके परिवार और रिश्तेदारों के बारे में सिर्फ इतना पता है कि परिवार ने उसे कुटुंब से निकाल दिया था, पत्नी की बहुत पहले मृत्यु हो गई थी और संतान कोई थी नहीं। सिपाही दवाई लेने गया, आखिर दो पहरेदार मौजूद थे। इनमें से एक को नटवर लाल ने पानी लेने के लिए भेज दिया। हवलदार बचा तो उसे कहा कि भैया तुम वर्दी में हो और मुझे बाथरूम जाना है। तुम रस्सी पकड़े रहोगे तो मुझे जल्दी अंदर जाने देंगे क्योंकि मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा। उस भीड़ भाड़ में नटवर लाल ने कब हाथ से रस्सी निकाली, कब भीड़ में शामिल हुआ और कब गायब हो गया, यह किसी को पता नहीं। तीनों पुलिस वाले निलंबित हुए और नटवर लाल साठवीं बार फरार हो गया। 
नटवर लाल को अपने किए पर कोई शर्म नहीं थी। वह अपने आपको रॉबिन हुड मानता था, कहता था कि मैं अमीरों से लूट कर गरीबों को देता हूं। उसने कहा कि मैंने कभी हथियार का इस्तेमाल नहंीं किया। लोगों से बहाने बनाकर पैसे मांगे और लोग पैसे दे गए। इसमें मेरा क्या कसूर है
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आखिरी बार नटवर लाल बिहार के दरभंगा रेलवे स्टेशन पर देखा गया था। पुलिस में पुराने थानेदार ने जो सिपाही के जमाने से नटवर लाल को जानता था, उसे पहचान लिया। नटवर लाल ने भी देख लिया कि उसे पहचान लिया गया है। सिपाही अपने साथियों को लेने थाने के भीतर गया और नटवर लाल गायब था। यह बात अलग है कि पास खड़ी मालगाड़ी के डिब्बे से नटवर लाल के उतारे हुए कपड़े मिले और गार्ड की यूनीफॉर्म गायब थी। 
इसके बाद नटवर लाल का नाम 2004 में तब सामने आया, जब उसने अपनी वसीयतनुमा फाइल एक वकील को सौंपी। बलरामपुर के अस्पताल में भर्ती हुआ और इसके बाद एक दिन अस्पताल छोड़ कर चला गया। डॉक्टरों का कहना था कि जिस हालत में वह था, उसमें उसके तीन चार दिन से ज्यादा बचने की गुंजाइश नहीं थी। 
नटवर लाल के जो ज्ञात अपराध हैं, अगर सबको मिला लिया जाए तो भी यह रकम 50 लाख तक नहीं पहुंचती। नटवर लाल ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था। काम चलाऊ अंग्रेजी बोल लेता था, सुना है कि एक जमाने में पटवारी रह चुका था। जितनी अंग्रेजी वह बोल लेता था, उतनी ही उसका काम चलाने के लिए काफी थी। उसके शिकारों में ज्यादातर या तो मध्यम दर्जे के सरकारी कर्मचारी होते थे या फिर छोटे शहरों के बड़े इरादों वाले व्यापारी, जिन्हें नटवर लाल ताजमहल बेचने का वायदा भी कर देता था। वायदा करने की शैली कुछ ऐसी होती थी कि उस वायदे पर लोग ऐतबार भी कर लेते थे। 
खुद नटवर लाल ने एक बार भरी अदालत में कहा था कि सर अपनी बात करने की स्टाइल ही कुछ ऐसी है कि अगर 10 मिनट आप बात करने दें तो आप वही फैसला देेंगे जो मैं कहूंगा। नटवर लाल नहीं होता तो आप इसे अति आत्मविश्वास कह रहे होते।


(साभार: विकिपीडिया)

Thursday, September 25, 2014

यार हुआ बेगानाः बीजेपी और शिवसेना में “तलाक“

लगातार बैठकों और काफी माथापच्ची के बाद भी बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ग्रहण लग ही गया...दोनों पार्टियां अपनी-अपनी शर्तों पर अड़ी रही। नतीजन 25 साल पुराना याराना टूट गया। गुरूवार शाम बीजेपी ने आखिरकार साफ कर दिया कि बस...अब बहुत हो चुका...ये साथ यहीं तक था...बीजेपी ने गठबंधन तोड़ते हुए कहा है कि वो अपने छोटे दलों का साथ नहीं छोड़ेगी, लेकिन शिवसेना हर बार एक तरह के ही प्रस्ताव दे रही थी, जिसके चलते शिवसेना का साथ छोड़ दिया है।
BJP+SHIV SHENA


शिवसेना अपने फार्मूले 151:131:6 पर चुनाव लड़ना चाहती थी। यानि खुद 151, बीजेपी को 131 और अन्य दलों के लिए महज 6 सीटें ही दे रही थी, जबकि बीजेपी शिवसेना से वो सीटें मांग रही थी, जिन पर शिवसेना कभी जीती ही नहीं। साथ ही बीजेपी घटक दलों के लिए 18 सीटों की मांग कर रही थी। बैठकों के साथ-साथ दोनों पार्टियों के बीच रूठना-मनाना का ये खेल चलता रहा, मगर कोई परिणाम नहीं निकल सका। गठबंधन के छोटे सहयोगी दल भी 18 सीटों की मांग पर अड़े हुए हैं...सीटों के बंटवारे को लेकर चल रही रस्साकशी के बीच बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अपना मुंबई दौरा भी रद्द कर दिया। शाह गुरूवार को मुंबई जाने वाले थे। गठबंधन की बरकरारी के लिए महाराष्ट्र बीजेपी के चुनाव प्रभारी ओम माथुर के घर पर बुधवार रात करीब दो बजे तक बैठक चली....मगर नतीजा वहीं ढाक के तीन पात ही रहा....
दूसरी तरफ, महाराष्ट्र में अभी कांग्रेस-एनसीपी के बीच विधानसभा चुनाव के लिए सीटों पर सुलह नहीं हुई है, लेकिन इसी दौरान कांग्रेस ने 118 कैंडिडेट्स की सूची जारी कर दी है।
CONGRESS + NCP

मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और उनके कैबिनेट के कई अन्य मंत्रियों का नाम इस सूची में शामिल है। कांग्रेस उम्मीदवारों की घोषणा ऐसे समय की गयी है३३ जब शरद पवार की एनसीपी के साथ सीट साझेदारी पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है। वर्तमान में राज्य विधान परिषद के सदस्य चव्हाण को उनके गृह जिला सतारा में कराद दक्षिण सीट से प्रत्याशी बनाया गया है। उनके कैबिनेट के कई सहयोगी तथा वरिष्ठ नेताओं का सूची में नाम है जिनमें कुदाल से प्रचार कमिटी प्रमुख नारायण राणे, शिरडी से राधाकृष्ण विखे पाटिल, सांगमनेर से बालासाहेब थोराट हैं। लोकमान्य तिलक के प्रपौत्र रोहित दीपक तिलक को कांग्रेस ने पुणे शहर की कस्बा पेठ से उम्मीदवार बनाया है। पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के पुत्र अमित देशमुख  को लातूर और पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे की पुत्री प्रणेति शिंदे को शोलापुर से चुनाव मैदान में उतारा गया है।

हालांकि नामांकन दाखिल करने के अंतिम तिथि 27 सितंबर है। कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अभी तक सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं।

Wednesday, July 23, 2014

अमित सैनी: जिंदगी जैसे ठहर सी गई है...

अमित सैनी: जिंदगी जैसे ठहर सी गई है...: जिंदगी मेरी जैसे ठहर सी गई है, दरिया के किसी ठहरे हुए पानी की तरह शून्य हो गई है। दिल-ओ-दिमाग में केवल एक ही ख्याल रहने लगा है। ना सोचने की...

अमित सैनी: जिंदगी जैसे ठहर सी गई है...

अमित सैनी: जिंदगी जैसे ठहर सी गई है...: जिंदगी मेरी जैसे ठहर सी गई है, दरिया के किसी ठहरे हुए पानी की तरह शून्य हो गई है। दिल-ओ-दिमाग में केवल एक ही ख्याल रहने लगा है। ना सोचने की...

Saturday, June 7, 2014

खिसयानी बिल्ली खंभा नोंचे....

खिसयानी बिल्ली खंभा नोंचे....
बिल्कुल यही हाल इस वक्त यूपी की सत्ताधारी पार्टी सपा का है... सूबे में बढ़ते अपराध की लगाम कसने में पूरी तरह से नाकाम पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह, सीएम अखिलेश यादव और शीर्ष नेताओं में शुमार रामगोपाल यादव अब पूरा ठिंकरा मीडिया पर फोड़ रहे है। अपराधियों पर तो कोई पार बसती नही ंतो मीडिया को ही कोसने लगे। 

लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती भी खोपचे से बाहर निकल आई है...बदायूं पहुंचकर वो भी मीडिया से मुखातिब हुई...वरना सत्ता पर काबिज़ होने के बाद तो जैसे मीडिया से पूरी तरह से ही मुंह मोड लिया था। सभी जानते है कि आज भी बसपा नेता कैमरे से ऐसे बचते नज़र आते है जैसे बुदके को देखकर बकरी...इसके पीछे कारण कुछ और नहीं, बल्कि खुद बसपा सुप्रीमो मायावती की ओर से अपने कारिदों को दिशा-निर्देश किए हुए है कि कैमरे से दूर रहा....भूत है इसमें...मगर चुनाव में अक्ल ठिकाने आई तो कैमरा ही डूबते को तिनके का सहारा नजर आया।

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भई टीपू, चच्चा मुलायम और रामू...दिखावे पे मत जाओ, थोड़ी-बहुत अपनी भी अक्ल लगाओं....बोलने से पहले कुछ तो सोच-समझ लिया करो कि क्या बोल रहे हो? सबसे पहले तो नारी जाति का सम्मान करना सीखों और उसके बाद भाषण देना...क्योंकि भाषण तो कोई भी दे सकता है...दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने भी दिया था...हुआ क्या घर लौटते है तो खा-पीकर.....थप्पड। ़...ऐसा मत करो कि यूपी में आपका, आपके चटुकार, ठाठ और मंच से लेकर गली-मोहल्लों में आपके नाम की कसीदें पढ़ने वाले उन नेताओं को भी वही हाल न हो जाएं जो थानों में बैठकर थानेदारी कर रहे है। 

अपना और अपने इन ठेकेदारों का हाल सुधारिए, सूबे का हुलिया सुधर जाएगा। खाकी वर्दी में लिपटे जिन मामा, फूफी, चाचा-चाची, बहन की नंद के देवर का साला, उसका बहनोई, उसके रिश्ते का साला, उसके भी मामा के चाचा का बेटा आदि-आदि को जो थानों-कोतवाली, जिलों और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर जिम्मेदारी सौंपी है ना उनमें छटनी कर दो। रिश्तेदारी तो बाद में भी निभाई जा सकती है...पहले प्रदेश तो बचा लो। वरना पुरानी कहावत चरितार्थ हो जाएगी कि तन पर नहीं लत्ता और अम्मा चली कलकत्ता...मैं तो भई मुफत की सलाह दे सकता हंू, बाकी काम आपका। हां, अगर इससे भी काम ना चले तो एक बार फिर से मीडिया को कोस लेना...इससे भी अच्छी सलाह दूंगा फिर....ये तो यकास ही दे रहा हूं, इबकी बार सोच्चे बिणा ना दूं।

Monday, November 10, 2014

आखिर ठगों को क्यों नटवरलाल की संज्ञा दी जाती है??

नटवरलाल की गिनती भारत के प्रमुख ठगों में से होती है। बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गाँव में जन्में नटवरलाल ने बहुत से ठगी की घटनाओं से बिहारउत्तर प्रदेशमध्य प्रदेश और दिल्ली की सरकारों को वर्षों परेशान रखा।

     मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव नाम से आपको कोई चेहरा शायद याद नहीं आए लेकिन नटवर लाल नाम लिया जाए तो आप लगभग मुहावरा बन चुके इस नाम को भूल नहीं पाएंगे। चालाकी और ठगी को ललित कला बना देने वाला यह शख्स अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उस पर बहुत सारी किताबें लिखी गई और एक फिल्म बनी–‘मिस्टर नटवर लालजिसमें अमिताभ बच्चन हीरो थे। नटवर लाल मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव के 52 से ज्यादा ज्ञात नामों में से एक था। उसे ठगी के जिन मामलों में सजा हो चुकी थी, वह अगर पूरी काटता तो 117 साल की थी। 30 मामलों में तो सजा हो ही नहीं पाई थी। आठ राज्यों की पुलिस ने उस पर इनाम घोषित किया था। बिहार का सिवान जिले में नटवर लाल का भी जन्म हुआ था। 
नटवर लाल हमेशा बहुत नाटकीय तरीके से अपराध करता था। उससे भी ज्यादा नाटकीय तरीके से पकड़ा जाता था और उससे भी ज्यादा नाटकीय तरीके से फरार होता था। लगभग 75 साल की उम्र में दिल्ली की तिहाड़ जेल से कानपुर के एक मामले में पेशी के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के दो जवान और एक हवलदार उसे लेने आए थे। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से लखनऊ मेल में उन्हें बैठना था। स्टेशन पर खासी भीड़़। पहरेदार मौजूद और नटवर लाल बैंच पर बैठा हाफ रहा था। उसने सिपाही से कहा कि बेटा बाहर से दवाई की गोली ला दो। मेरे पास पैसा नहीं हैं लेकिन जब रिश्तेदार मिलने आएंगे तो दे दूंगा। यह बात अलग है कि उसके परिवार और रिश्तेदारों के बारे में सिर्फ इतना पता है कि परिवार ने उसे कुटुंब से निकाल दिया था, पत्नी की बहुत पहले मृत्यु हो गई थी और संतान कोई थी नहीं। सिपाही दवाई लेने गया, आखिर दो पहरेदार मौजूद थे। इनमें से एक को नटवर लाल ने पानी लेने के लिए भेज दिया। हवलदार बचा तो उसे कहा कि भैया तुम वर्दी में हो और मुझे बाथरूम जाना है। तुम रस्सी पकड़े रहोगे तो मुझे जल्दी अंदर जाने देंगे क्योंकि मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा। उस भीड़ भाड़ में नटवर लाल ने कब हाथ से रस्सी निकाली, कब भीड़ में शामिल हुआ और कब गायब हो गया, यह किसी को पता नहीं। तीनों पुलिस वाले निलंबित हुए और नटवर लाल साठवीं बार फरार हो गया। 
नटवर लाल को अपने किए पर कोई शर्म नहीं थी। वह अपने आपको रॉबिन हुड मानता था, कहता था कि मैं अमीरों से लूट कर गरीबों को देता हूं। उसने कहा कि मैंने कभी हथियार का इस्तेमाल नहंीं किया। लोगों से बहाने बनाकर पैसे मांगे और लोग पैसे दे गए। इसमें मेरा क्या कसूर है
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आखिरी बार नटवर लाल बिहार के दरभंगा रेलवे स्टेशन पर देखा गया था। पुलिस में पुराने थानेदार ने जो सिपाही के जमाने से नटवर लाल को जानता था, उसे पहचान लिया। नटवर लाल ने भी देख लिया कि उसे पहचान लिया गया है। सिपाही अपने साथियों को लेने थाने के भीतर गया और नटवर लाल गायब था। यह बात अलग है कि पास खड़ी मालगाड़ी के डिब्बे से नटवर लाल के उतारे हुए कपड़े मिले और गार्ड की यूनीफॉर्म गायब थी। 
इसके बाद नटवर लाल का नाम 2004 में तब सामने आया, जब उसने अपनी वसीयतनुमा फाइल एक वकील को सौंपी। बलरामपुर के अस्पताल में भर्ती हुआ और इसके बाद एक दिन अस्पताल छोड़ कर चला गया। डॉक्टरों का कहना था कि जिस हालत में वह था, उसमें उसके तीन चार दिन से ज्यादा बचने की गुंजाइश नहीं थी। 
नटवर लाल के जो ज्ञात अपराध हैं, अगर सबको मिला लिया जाए तो भी यह रकम 50 लाख तक नहीं पहुंचती। नटवर लाल ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था। काम चलाऊ अंग्रेजी बोल लेता था, सुना है कि एक जमाने में पटवारी रह चुका था। जितनी अंग्रेजी वह बोल लेता था, उतनी ही उसका काम चलाने के लिए काफी थी। उसके शिकारों में ज्यादातर या तो मध्यम दर्जे के सरकारी कर्मचारी होते थे या फिर छोटे शहरों के बड़े इरादों वाले व्यापारी, जिन्हें नटवर लाल ताजमहल बेचने का वायदा भी कर देता था। वायदा करने की शैली कुछ ऐसी होती थी कि उस वायदे पर लोग ऐतबार भी कर लेते थे। 
खुद नटवर लाल ने एक बार भरी अदालत में कहा था कि सर अपनी बात करने की स्टाइल ही कुछ ऐसी है कि अगर 10 मिनट आप बात करने दें तो आप वही फैसला देेंगे जो मैं कहूंगा। नटवर लाल नहीं होता तो आप इसे अति आत्मविश्वास कह रहे होते।


(साभार: विकिपीडिया)

Thursday, September 25, 2014

यार हुआ बेगानाः बीजेपी और शिवसेना में “तलाक“

लगातार बैठकों और काफी माथापच्ची के बाद भी बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ग्रहण लग ही गया...दोनों पार्टियां अपनी-अपनी शर्तों पर अड़ी रही। नतीजन 25 साल पुराना याराना टूट गया। गुरूवार शाम बीजेपी ने आखिरकार साफ कर दिया कि बस...अब बहुत हो चुका...ये साथ यहीं तक था...बीजेपी ने गठबंधन तोड़ते हुए कहा है कि वो अपने छोटे दलों का साथ नहीं छोड़ेगी, लेकिन शिवसेना हर बार एक तरह के ही प्रस्ताव दे रही थी, जिसके चलते शिवसेना का साथ छोड़ दिया है।
BJP+SHIV SHENA


शिवसेना अपने फार्मूले 151:131:6 पर चुनाव लड़ना चाहती थी। यानि खुद 151, बीजेपी को 131 और अन्य दलों के लिए महज 6 सीटें ही दे रही थी, जबकि बीजेपी शिवसेना से वो सीटें मांग रही थी, जिन पर शिवसेना कभी जीती ही नहीं। साथ ही बीजेपी घटक दलों के लिए 18 सीटों की मांग कर रही थी। बैठकों के साथ-साथ दोनों पार्टियों के बीच रूठना-मनाना का ये खेल चलता रहा, मगर कोई परिणाम नहीं निकल सका। गठबंधन के छोटे सहयोगी दल भी 18 सीटों की मांग पर अड़े हुए हैं...सीटों के बंटवारे को लेकर चल रही रस्साकशी के बीच बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अपना मुंबई दौरा भी रद्द कर दिया। शाह गुरूवार को मुंबई जाने वाले थे। गठबंधन की बरकरारी के लिए महाराष्ट्र बीजेपी के चुनाव प्रभारी ओम माथुर के घर पर बुधवार रात करीब दो बजे तक बैठक चली....मगर नतीजा वहीं ढाक के तीन पात ही रहा....
दूसरी तरफ, महाराष्ट्र में अभी कांग्रेस-एनसीपी के बीच विधानसभा चुनाव के लिए सीटों पर सुलह नहीं हुई है, लेकिन इसी दौरान कांग्रेस ने 118 कैंडिडेट्स की सूची जारी कर दी है।
CONGRESS + NCP

मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और उनके कैबिनेट के कई अन्य मंत्रियों का नाम इस सूची में शामिल है। कांग्रेस उम्मीदवारों की घोषणा ऐसे समय की गयी है३३ जब शरद पवार की एनसीपी के साथ सीट साझेदारी पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है। वर्तमान में राज्य विधान परिषद के सदस्य चव्हाण को उनके गृह जिला सतारा में कराद दक्षिण सीट से प्रत्याशी बनाया गया है। उनके कैबिनेट के कई सहयोगी तथा वरिष्ठ नेताओं का सूची में नाम है जिनमें कुदाल से प्रचार कमिटी प्रमुख नारायण राणे, शिरडी से राधाकृष्ण विखे पाटिल, सांगमनेर से बालासाहेब थोराट हैं। लोकमान्य तिलक के प्रपौत्र रोहित दीपक तिलक को कांग्रेस ने पुणे शहर की कस्बा पेठ से उम्मीदवार बनाया है। पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के पुत्र अमित देशमुख  को लातूर और पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे की पुत्री प्रणेति शिंदे को शोलापुर से चुनाव मैदान में उतारा गया है।

हालांकि नामांकन दाखिल करने के अंतिम तिथि 27 सितंबर है। कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अभी तक सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं।

Wednesday, July 23, 2014

अमित सैनी: जिंदगी जैसे ठहर सी गई है...

अमित सैनी: जिंदगी जैसे ठहर सी गई है...: जिंदगी मेरी जैसे ठहर सी गई है, दरिया के किसी ठहरे हुए पानी की तरह शून्य हो गई है। दिल-ओ-दिमाग में केवल एक ही ख्याल रहने लगा है। ना सोचने की...

अमित सैनी: जिंदगी जैसे ठहर सी गई है...

अमित सैनी: जिंदगी जैसे ठहर सी गई है...: जिंदगी मेरी जैसे ठहर सी गई है, दरिया के किसी ठहरे हुए पानी की तरह शून्य हो गई है। दिल-ओ-दिमाग में केवल एक ही ख्याल रहने लगा है। ना सोचने की...

Saturday, June 7, 2014

खिसयानी बिल्ली खंभा नोंचे....

खिसयानी बिल्ली खंभा नोंचे....
बिल्कुल यही हाल इस वक्त यूपी की सत्ताधारी पार्टी सपा का है... सूबे में बढ़ते अपराध की लगाम कसने में पूरी तरह से नाकाम पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह, सीएम अखिलेश यादव और शीर्ष नेताओं में शुमार रामगोपाल यादव अब पूरा ठिंकरा मीडिया पर फोड़ रहे है। अपराधियों पर तो कोई पार बसती नही ंतो मीडिया को ही कोसने लगे। 

लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती भी खोपचे से बाहर निकल आई है...बदायूं पहुंचकर वो भी मीडिया से मुखातिब हुई...वरना सत्ता पर काबिज़ होने के बाद तो जैसे मीडिया से पूरी तरह से ही मुंह मोड लिया था। सभी जानते है कि आज भी बसपा नेता कैमरे से ऐसे बचते नज़र आते है जैसे बुदके को देखकर बकरी...इसके पीछे कारण कुछ और नहीं, बल्कि खुद बसपा सुप्रीमो मायावती की ओर से अपने कारिदों को दिशा-निर्देश किए हुए है कि कैमरे से दूर रहा....भूत है इसमें...मगर चुनाव में अक्ल ठिकाने आई तो कैमरा ही डूबते को तिनके का सहारा नजर आया।

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भई टीपू, चच्चा मुलायम और रामू...दिखावे पे मत जाओ, थोड़ी-बहुत अपनी भी अक्ल लगाओं....बोलने से पहले कुछ तो सोच-समझ लिया करो कि क्या बोल रहे हो? सबसे पहले तो नारी जाति का सम्मान करना सीखों और उसके बाद भाषण देना...क्योंकि भाषण तो कोई भी दे सकता है...दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने भी दिया था...हुआ क्या घर लौटते है तो खा-पीकर.....थप्पड। ़...ऐसा मत करो कि यूपी में आपका, आपके चटुकार, ठाठ और मंच से लेकर गली-मोहल्लों में आपके नाम की कसीदें पढ़ने वाले उन नेताओं को भी वही हाल न हो जाएं जो थानों में बैठकर थानेदारी कर रहे है। 

अपना और अपने इन ठेकेदारों का हाल सुधारिए, सूबे का हुलिया सुधर जाएगा। खाकी वर्दी में लिपटे जिन मामा, फूफी, चाचा-चाची, बहन की नंद के देवर का साला, उसका बहनोई, उसके रिश्ते का साला, उसके भी मामा के चाचा का बेटा आदि-आदि को जो थानों-कोतवाली, जिलों और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर जिम्मेदारी सौंपी है ना उनमें छटनी कर दो। रिश्तेदारी तो बाद में भी निभाई जा सकती है...पहले प्रदेश तो बचा लो। वरना पुरानी कहावत चरितार्थ हो जाएगी कि तन पर नहीं लत्ता और अम्मा चली कलकत्ता...मैं तो भई मुफत की सलाह दे सकता हंू, बाकी काम आपका। हां, अगर इससे भी काम ना चले तो एक बार फिर से मीडिया को कोस लेना...इससे भी अच्छी सलाह दूंगा फिर....ये तो यकास ही दे रहा हूं, इबकी बार सोच्चे बिणा ना दूं।