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Tuesday, July 6, 2010

51 बच्चो की माँ

 गर्भाशय के कैंसर ने न सिर्फ वीरेंद्र राणा की पत्नी की गोद सुनी कर दी , बल्कि उसकी जीने की आस भी ख़त्म हो चुकी थी दम्पति ने अपने हौसलों से न सिर्फ मौत का रुख मोड़ दिया बल्कि मात्रत्व का एक नया अध्याय लिखकर इतिहास रच दिया है अब ये दम्पति एक नहीं 50 बच्चो के माँ बाप है भले ही इन बच्चो ने इस माँ की कोख से जन्म नहीं लिया हो
मामला है मुज़फ्फरनगर के शुक्रताल का जहा ये दंपत्ति बिना किसी सरकारी सहायता लिए ही 50 बच्चो का पालन पोषण कर रहे है कई बार आर्थिक संकट इनके आढे आया , लेकिन इन दोनों ने कभी हिम्मत नहीं हारी और इनकी नेक नियत देख लोग इनसे जुड़ते चले गए और समस्या का हल होता चला गया इन सबके बावजूद सरकार दंपत्ति की भावना और बलिदान की अनदेखी कर रही है दरअसल बागपत जिले के निवासी वीरेंदर राणा की शादी 29 वर्ष पूर्व मुज़फ्फरनगर की मीना से हुई थी शादी के कई वर्ष बीत जाने के बाद भी जब दंपत्ति को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हुई तो दोनों ने डाक्टरों का सहारा लिया लेकिन जब मीना के गर्भाशय में कैंसर होने का पता चला तो उनकी संतान प्राप्ति के सारे अरमानो पर पानी फिर गया दिल्ली तक इलाज कराने के बाद भी उम्मीद की कोई किरण नहीं जागी इसी दौरान वीरेंद्र पर परिवार वालो ने दूसरी शादी कर लेने का दबाव डाला गया लेकिन वीरेंद्र ने किसी की नहीं सुनी और अपनी पत्नी मीना को लेकर धर्म नगरी शुक्रताल आ गया यहा आकर दोनों ने 19 साल पहले एक बच्चे को गोद ले लिया धीरे धीरे आयुर्वेद के उपचार और मांगेराम (गोद लिया हुआ पहला बच्चा ) की दुआ का असर रहा और मीना का स्वाथ्य ठीक होने लगा मांगेराम के कदम घर में पड़ते ही परिवार भी बढ़ता चला गया अब तक दोनों दंपत्ति के पास लगभग 51 विकलाग बच्चे है जो दोनों को माता पिता मानते है खुशी खुशी जिन्दगी काट रहे परिवार को सदमा उस समय लगा जब मांगेराम की 7 साल की उम्र में बिमारी के चलते मौत हो गईधीरे धीरे कुनबा बढ़ने लगा और इस समय परिवार में 51 बच्चे है उतराखंड , मेरठ , गाजियाबाद , सहित कई जिलो के बेसहारा बच्चे इस परिवार का हिस्सा बने हुए है 51 बच्चो की माँ यानी मीना को अब कोई दुःख नहीं है बल्कि अब वो 51 बच्चो की माँ होने पर गर्व करती हैबाकायदा दोनों दंपत्ति सभी बच्चो की पढाई लिखाई , खेल कूद पर भी ध्यान देते है इस परिवार ने अब आखिल भारतीय अनाथ अनाथ और विकलांग आश्रम का रूप ले लिया है सभी बच्चो का कहना है की उन्हें याहा कभी भी माँ बाप की कमी महसूस नहीं की अपितु बच्चो का तो ये भी कहना है की अगले जन्म में ये इन्ही की कोख से जन्म ले
क्रिकेट खेल रहे ये बच्चे भी इसी आश्रम का हिस्सा है भले ही ये विकलांग है मगर यहा रहते हुए इन बच्चो को जरा भी ये महसूस नहीं होता की ये विकलांग है बल्कि ये खेलने के साथ साथ पढाई में भी माहिर है सभी बच्चे एक साथ बैठकर भोजन करते है , समय समय पर इनकी पसंद के मुताबिक खाना बनाया जाता है जिसे ये बच्चे बड़े चाव से खाकर अपनी पढाई में जुट जाते है बच्चो का सपना है की एक दीं किसी कामयाबी की सीधी पर चढ़कर इस आश्रम और इनका पालन पोषण कर रहे दोनों दम्पत्तियों का नाम रोशन करने का है बड़े बच्चे स्कुल में रहकर छोटे बच्चो को कंप्यूटर, तबला ,हारमूनिएम और अन्य खेल सिखने में मदद करते है


संदीप सैनी

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Tuesday, July 6, 2010

51 बच्चो की माँ

 गर्भाशय के कैंसर ने न सिर्फ वीरेंद्र राणा की पत्नी की गोद सुनी कर दी , बल्कि उसकी जीने की आस भी ख़त्म हो चुकी थी दम्पति ने अपने हौसलों से न सिर्फ मौत का रुख मोड़ दिया बल्कि मात्रत्व का एक नया अध्याय लिखकर इतिहास रच दिया है अब ये दम्पति एक नहीं 50 बच्चो के माँ बाप है भले ही इन बच्चो ने इस माँ की कोख से जन्म नहीं लिया हो
मामला है मुज़फ्फरनगर के शुक्रताल का जहा ये दंपत्ति बिना किसी सरकारी सहायता लिए ही 50 बच्चो का पालन पोषण कर रहे है कई बार आर्थिक संकट इनके आढे आया , लेकिन इन दोनों ने कभी हिम्मत नहीं हारी और इनकी नेक नियत देख लोग इनसे जुड़ते चले गए और समस्या का हल होता चला गया इन सबके बावजूद सरकार दंपत्ति की भावना और बलिदान की अनदेखी कर रही है दरअसल बागपत जिले के निवासी वीरेंदर राणा की शादी 29 वर्ष पूर्व मुज़फ्फरनगर की मीना से हुई थी शादी के कई वर्ष बीत जाने के बाद भी जब दंपत्ति को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हुई तो दोनों ने डाक्टरों का सहारा लिया लेकिन जब मीना के गर्भाशय में कैंसर होने का पता चला तो उनकी संतान प्राप्ति के सारे अरमानो पर पानी फिर गया दिल्ली तक इलाज कराने के बाद भी उम्मीद की कोई किरण नहीं जागी इसी दौरान वीरेंद्र पर परिवार वालो ने दूसरी शादी कर लेने का दबाव डाला गया लेकिन वीरेंद्र ने किसी की नहीं सुनी और अपनी पत्नी मीना को लेकर धर्म नगरी शुक्रताल आ गया यहा आकर दोनों ने 19 साल पहले एक बच्चे को गोद ले लिया धीरे धीरे आयुर्वेद के उपचार और मांगेराम (गोद लिया हुआ पहला बच्चा ) की दुआ का असर रहा और मीना का स्वाथ्य ठीक होने लगा मांगेराम के कदम घर में पड़ते ही परिवार भी बढ़ता चला गया अब तक दोनों दंपत्ति के पास लगभग 51 विकलाग बच्चे है जो दोनों को माता पिता मानते है खुशी खुशी जिन्दगी काट रहे परिवार को सदमा उस समय लगा जब मांगेराम की 7 साल की उम्र में बिमारी के चलते मौत हो गईधीरे धीरे कुनबा बढ़ने लगा और इस समय परिवार में 51 बच्चे है उतराखंड , मेरठ , गाजियाबाद , सहित कई जिलो के बेसहारा बच्चे इस परिवार का हिस्सा बने हुए है 51 बच्चो की माँ यानी मीना को अब कोई दुःख नहीं है बल्कि अब वो 51 बच्चो की माँ होने पर गर्व करती हैबाकायदा दोनों दंपत्ति सभी बच्चो की पढाई लिखाई , खेल कूद पर भी ध्यान देते है इस परिवार ने अब आखिल भारतीय अनाथ अनाथ और विकलांग आश्रम का रूप ले लिया है सभी बच्चो का कहना है की उन्हें याहा कभी भी माँ बाप की कमी महसूस नहीं की अपितु बच्चो का तो ये भी कहना है की अगले जन्म में ये इन्ही की कोख से जन्म ले
क्रिकेट खेल रहे ये बच्चे भी इसी आश्रम का हिस्सा है भले ही ये विकलांग है मगर यहा रहते हुए इन बच्चो को जरा भी ये महसूस नहीं होता की ये विकलांग है बल्कि ये खेलने के साथ साथ पढाई में भी माहिर है सभी बच्चे एक साथ बैठकर भोजन करते है , समय समय पर इनकी पसंद के मुताबिक खाना बनाया जाता है जिसे ये बच्चे बड़े चाव से खाकर अपनी पढाई में जुट जाते है बच्चो का सपना है की एक दीं किसी कामयाबी की सीधी पर चढ़कर इस आश्रम और इनका पालन पोषण कर रहे दोनों दम्पत्तियों का नाम रोशन करने का है बड़े बच्चे स्कुल में रहकर छोटे बच्चो को कंप्यूटर, तबला ,हारमूनिएम और अन्य खेल सिखने में मदद करते है


संदीप सैनी

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