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Saturday, July 16, 2011

आइटम नंबर से पहचान तो मिली ही हैं: अनुपमा राग

नई दिल्ली ( चंदन शर्मा) :
राग की गायिकी और संगीत से गहरा और अमिट संबध होता हैं,बगैर उसके संगीत के चलन तक की कल्पना भी नही की जा सकती हैं । तिस पर जिस प्रतिभा संपन्न और सामर्थ्यवान गायिका के नाम के साथ ‘राग’ जुडा हो....उसकी बात ही क्या हैं। मेरा इशारा तहज़ीब और प्रतिभाओं से लबालब शहर लखनऊ की तेजी उभरती हुई नवोदित पार्श्व गायिका अनुपमा ‘राग’की ओर हैं। जिनके फिल्म ‘बिन बुलाए बराती’ में गाए आइटम गीत शालू के ठुमके ....ने ना केवल समूचे हिन्दुस्तान में बल्कि सात समुंदर पार के देशांे में भी अपार रोचप्रियता का इतिहास रचा हैं। बहुचर्चित अभिनेत्री मल्लिका शेरावत पर चित्रित यह आइटम सांग फिल्म की सफलता में एक महत्वपूर्ण अंग माना जा रहा हैं। अनुपमा ‘राग’ अपने इस पहले पार्श्व गीत की लोकप्रियता को लेकर न केवल अति उत्साहित हैं ,बल्कि इस दिशा में बहुत कुछ कर गुजरने कर जोश खरोश उनमें है। अनुपमा राग से हाल में मुलाकात हुई पेश उसी के चुनिंदा अंष:
गायन आपके लिए क्या है? क्या इसके प्रति आपका लगाव शुरू से रहा था फिर वक्त की धारा.... प्रसिद्वि की चाव ने आपको गायिका बना दिया ?
गायक के प्रति के मेरी दिलचस्पी बचपन से ही थी। जबकि मेरे परिवार की पृष्ठभूमि राजनैतिक और सरकारी अफसरों की रही है। परिवारकि दबाव के कारण मैंने लखनऊ में उ.प्र. के बिक्री विभाग में उप - आयुक्त की नौकरी स्वीकार ली,मगर गायिकी के प्रति अपने अनुराग को कभी कम नही होने दिया। संगीत और गायिकी सिखाने के लिहाज से न केवल मैेने लखनऊ के भातखंडे विश्वविद्यालय से संगीत - विशारद की उपाधि ली, बल्कि लखनऊ घराने के संगीत गंुरू पंडित गुलशन भारती और ग्वालियर घराने के संगीत गुरू पंडित योगेन्द्र भट्ट से गुरू शिष्य परंपरा के तहत् विधिवत् गायन सीखा। मैंने अपने अंन्तर्मन के‘कलाकार’ की प्यास बुझाने के लिए गायन को अपनाया और इसे गंभीरता से सीखा ना ना कि मात्र प्रसिद्वि पाने के लिए। गायन मेरे लिए मृगतुष्णा के समान है।
बतौर गायिका आपने अपने कैरियर की शुरूआत कैसे की ? आपको कब यह लगा कि इसकठिन प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में आप कुछ कर  पायेगी?
विधिवत् गायन सीखने के बाद मे मैंने 2007 में अपने कैरियर की पहली गगन चंुबी उड़ान भरी।‘रूह’नाम की एक अलबम तैयार की। जिसमें गायन,गीत लेखन,और म्युजिक कंपोजर तक की सभी उतरदायित्व मैंने ही निभाऐं....मेरा यह पहला अलबम मशहूर फिल्मकार मुजफ्फर अली को सादर नज़र किया गया....उन्हें ही नही कई लोगों को मेरी यह कोशिश अच्छी लगी, संभावनाओं के कई मंजर नजर आने लगे ं मेरा हौसला खूब बढ़ा,इसी दौरान मैंने ताज महोत्सव और तानसेन समारोह में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किये। देखते ही देखते मुझे कम ही समय में ही गायिका के रूप में मान्यता मिली। उसी समय मैंने बॉलीवुड में अपना सघर्ष शुरू कर दिया। इसके लिए मैेने खूब मेहनत भी की। जिम्मेदारी वाले ओहदे से अपनी चाहत के लिए वक्त निकालना और जिददो -जेहद करना मेरे आसान नहीं था।
एकाएक फिल्म ‘बिन बुलाए बाराती’ में आइटम नंबर गाने का मौका कैसे मिला?
जीवन में एकाएक कुछ नही मिला.... हर पथ पर अग्रसर होने का कुदरती प्रोसेस होता है। मैं भी इस प्रोसेस के तहत् आगे बढ़ी। हुआ यूं की मेरी पहली म्युजिक अलबम ‘रूह’ के बाद में मशहूर शायर गीतकार फैज़ अनवर ने मुझे अपनी म्युजिक अलबम ‘आर्श’ के लिए लांच किया। मेरी आवाज में रिकार्ड किया गयाb गीत बॉलीवुड के सभी गीतकारों को ही नही,बल्कि पूरे म्युजिकल बर्ल्ड को पंसद आया। संगीतकार आनंदराज आनंद को फिल्म ‘ बिन बुलाए बाराती’ में एक बिलकुल फ्रेश, अलहदा किस्म की आवाज की तलाश बहुत दिनों से थी। ममता शर्मा फिल्म‘ दबंग’( मुन्नी बदनाम हुई..), रितू पाठक फिल्म‘ ‘डबल धमाल’(जलेबी बाई...) के टक्कर की आवाज उन्हें चाहिए थीं । उन्होंने मेरा एक अलबम सुन रखा था... हम एक दो बार मिले भी। उन्हें मेरी आवाज आइटम सांग ‘शालू के ठुमके के लिए’ खूब जंची और उन्होंने मुझे मौका दे दिया। ईश्वर की कृपा से मेरा ये गीत सुपर डुपर हिट हो गया। रहा सवाल आईटम सांग सिंगर के ठहराव का...तो इस मामले में मैं यही कहूंगी कि आईटम सांग फिल्मों में गाना इस दौर की मांग हैं। हर इंसान को चलते हुए दौर के साथ ही चलना चाहिए, फिर मुझे तो जरा सी भी घबराहट नहीं हैं,क्योंकि मैं हर विधा में गाने की काबलियत रखती हॅू।
क्या लता,आशा ने आइटम सांग नही गाए? उनकी पोजीशान में क्या फर्क आया?  आज भी वे ऊॅचा मुकाम रखतीं हैं। बॉलीवुड में पार्श्व गायिकाओं में किसे आप अपना प्रेरणास्त्रोत मानती है?
लता मंगेशकर तो बॉलीवुड के गायन का हिम शिखर हैं,उनकी बेजोड गायिकी के बारे में में मैं अदनी सी सिंगर क्या कहंू। मेरे लिए तो वह मां सरस्वती से कम नही है....। मैं यह जरूर चाहॅूगी कि उनके सरीखें गाने मुझे भी मिले ताकि मैं अपनी प्रतिभा दिखा सकंू। मशहूर गायिका फरीदा खानम मेरी रोल मॉडल रही है, उनकी गायी गजल ‘आज जाने की ज़िद ना करो.....’। मेरी पंसदीदा हैं, मैं हर तरह के विविध गाने गाना चाहतीं हॅू।
बॉलीवुड के संगीतकारों में आप किसे पंसद करती है?
आज की पीढी के आनंदराज आनंद,विशाल शेखर,साजिद-वाजिद, शंकर एहसान लॉय,समीर टंडन आदि बहुत प्रतिभाशाली संगीतकार है। मगर मेरे पंसदीदा संगीतकार आर.डी.बर्मन हैं। आर.डी.बर्मन इंडियन और बेस्टर्न म्युजिकल दोनों में समान अधिकार रखते थे....वो तब भी मॉडर्न थे... आज भी उनकी कम्पोजिंग तरोताजा हैं।
फिलहाल किन किन फिल्मों में गीत गा रही है?
मेरी कई फिल्में पाइप लाइन में हैं जिसमें फिल्म पॉवर और हेराफेरी 4 के नाम उल्लेखनीय है।

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Saturday, July 16, 2011

आइटम नंबर से पहचान तो मिली ही हैं: अनुपमा राग

नई दिल्ली ( चंदन शर्मा) :
राग की गायिकी और संगीत से गहरा और अमिट संबध होता हैं,बगैर उसके संगीत के चलन तक की कल्पना भी नही की जा सकती हैं । तिस पर जिस प्रतिभा संपन्न और सामर्थ्यवान गायिका के नाम के साथ ‘राग’ जुडा हो....उसकी बात ही क्या हैं। मेरा इशारा तहज़ीब और प्रतिभाओं से लबालब शहर लखनऊ की तेजी उभरती हुई नवोदित पार्श्व गायिका अनुपमा ‘राग’की ओर हैं। जिनके फिल्म ‘बिन बुलाए बराती’ में गाए आइटम गीत शालू के ठुमके ....ने ना केवल समूचे हिन्दुस्तान में बल्कि सात समुंदर पार के देशांे में भी अपार रोचप्रियता का इतिहास रचा हैं। बहुचर्चित अभिनेत्री मल्लिका शेरावत पर चित्रित यह आइटम सांग फिल्म की सफलता में एक महत्वपूर्ण अंग माना जा रहा हैं। अनुपमा ‘राग’ अपने इस पहले पार्श्व गीत की लोकप्रियता को लेकर न केवल अति उत्साहित हैं ,बल्कि इस दिशा में बहुत कुछ कर गुजरने कर जोश खरोश उनमें है। अनुपमा राग से हाल में मुलाकात हुई पेश उसी के चुनिंदा अंष:
गायन आपके लिए क्या है? क्या इसके प्रति आपका लगाव शुरू से रहा था फिर वक्त की धारा.... प्रसिद्वि की चाव ने आपको गायिका बना दिया ?
गायक के प्रति के मेरी दिलचस्पी बचपन से ही थी। जबकि मेरे परिवार की पृष्ठभूमि राजनैतिक और सरकारी अफसरों की रही है। परिवारकि दबाव के कारण मैंने लखनऊ में उ.प्र. के बिक्री विभाग में उप - आयुक्त की नौकरी स्वीकार ली,मगर गायिकी के प्रति अपने अनुराग को कभी कम नही होने दिया। संगीत और गायिकी सिखाने के लिहाज से न केवल मैेने लखनऊ के भातखंडे विश्वविद्यालय से संगीत - विशारद की उपाधि ली, बल्कि लखनऊ घराने के संगीत गंुरू पंडित गुलशन भारती और ग्वालियर घराने के संगीत गुरू पंडित योगेन्द्र भट्ट से गुरू शिष्य परंपरा के तहत् विधिवत् गायन सीखा। मैंने अपने अंन्तर्मन के‘कलाकार’ की प्यास बुझाने के लिए गायन को अपनाया और इसे गंभीरता से सीखा ना ना कि मात्र प्रसिद्वि पाने के लिए। गायन मेरे लिए मृगतुष्णा के समान है।
बतौर गायिका आपने अपने कैरियर की शुरूआत कैसे की ? आपको कब यह लगा कि इसकठिन प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में आप कुछ कर  पायेगी?
विधिवत् गायन सीखने के बाद मे मैंने 2007 में अपने कैरियर की पहली गगन चंुबी उड़ान भरी।‘रूह’नाम की एक अलबम तैयार की। जिसमें गायन,गीत लेखन,और म्युजिक कंपोजर तक की सभी उतरदायित्व मैंने ही निभाऐं....मेरा यह पहला अलबम मशहूर फिल्मकार मुजफ्फर अली को सादर नज़र किया गया....उन्हें ही नही कई लोगों को मेरी यह कोशिश अच्छी लगी, संभावनाओं के कई मंजर नजर आने लगे ं मेरा हौसला खूब बढ़ा,इसी दौरान मैंने ताज महोत्सव और तानसेन समारोह में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किये। देखते ही देखते मुझे कम ही समय में ही गायिका के रूप में मान्यता मिली। उसी समय मैंने बॉलीवुड में अपना सघर्ष शुरू कर दिया। इसके लिए मैेने खूब मेहनत भी की। जिम्मेदारी वाले ओहदे से अपनी चाहत के लिए वक्त निकालना और जिददो -जेहद करना मेरे आसान नहीं था।
एकाएक फिल्म ‘बिन बुलाए बाराती’ में आइटम नंबर गाने का मौका कैसे मिला?
जीवन में एकाएक कुछ नही मिला.... हर पथ पर अग्रसर होने का कुदरती प्रोसेस होता है। मैं भी इस प्रोसेस के तहत् आगे बढ़ी। हुआ यूं की मेरी पहली म्युजिक अलबम ‘रूह’ के बाद में मशहूर शायर गीतकार फैज़ अनवर ने मुझे अपनी म्युजिक अलबम ‘आर्श’ के लिए लांच किया। मेरी आवाज में रिकार्ड किया गयाb गीत बॉलीवुड के सभी गीतकारों को ही नही,बल्कि पूरे म्युजिकल बर्ल्ड को पंसद आया। संगीतकार आनंदराज आनंद को फिल्म ‘ बिन बुलाए बाराती’ में एक बिलकुल फ्रेश, अलहदा किस्म की आवाज की तलाश बहुत दिनों से थी। ममता शर्मा फिल्म‘ दबंग’( मुन्नी बदनाम हुई..), रितू पाठक फिल्म‘ ‘डबल धमाल’(जलेबी बाई...) के टक्कर की आवाज उन्हें चाहिए थीं । उन्होंने मेरा एक अलबम सुन रखा था... हम एक दो बार मिले भी। उन्हें मेरी आवाज आइटम सांग ‘शालू के ठुमके के लिए’ खूब जंची और उन्होंने मुझे मौका दे दिया। ईश्वर की कृपा से मेरा ये गीत सुपर डुपर हिट हो गया। रहा सवाल आईटम सांग सिंगर के ठहराव का...तो इस मामले में मैं यही कहूंगी कि आईटम सांग फिल्मों में गाना इस दौर की मांग हैं। हर इंसान को चलते हुए दौर के साथ ही चलना चाहिए, फिर मुझे तो जरा सी भी घबराहट नहीं हैं,क्योंकि मैं हर विधा में गाने की काबलियत रखती हॅू।
क्या लता,आशा ने आइटम सांग नही गाए? उनकी पोजीशान में क्या फर्क आया?  आज भी वे ऊॅचा मुकाम रखतीं हैं। बॉलीवुड में पार्श्व गायिकाओं में किसे आप अपना प्रेरणास्त्रोत मानती है?
लता मंगेशकर तो बॉलीवुड के गायन का हिम शिखर हैं,उनकी बेजोड गायिकी के बारे में में मैं अदनी सी सिंगर क्या कहंू। मेरे लिए तो वह मां सरस्वती से कम नही है....। मैं यह जरूर चाहॅूगी कि उनके सरीखें गाने मुझे भी मिले ताकि मैं अपनी प्रतिभा दिखा सकंू। मशहूर गायिका फरीदा खानम मेरी रोल मॉडल रही है, उनकी गायी गजल ‘आज जाने की ज़िद ना करो.....’। मेरी पंसदीदा हैं, मैं हर तरह के विविध गाने गाना चाहतीं हॅू।
बॉलीवुड के संगीतकारों में आप किसे पंसद करती है?
आज की पीढी के आनंदराज आनंद,विशाल शेखर,साजिद-वाजिद, शंकर एहसान लॉय,समीर टंडन आदि बहुत प्रतिभाशाली संगीतकार है। मगर मेरे पंसदीदा संगीतकार आर.डी.बर्मन हैं। आर.डी.बर्मन इंडियन और बेस्टर्न म्युजिकल दोनों में समान अधिकार रखते थे....वो तब भी मॉडर्न थे... आज भी उनकी कम्पोजिंग तरोताजा हैं।
फिलहाल किन किन फिल्मों में गीत गा रही है?
मेरी कई फिल्में पाइप लाइन में हैं जिसमें फिल्म पॉवर और हेराफेरी 4 के नाम उल्लेखनीय है।

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