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Monday, November 10, 2014

आखिर ठगों को क्यों नटवरलाल की संज्ञा दी जाती है??

नटवरलाल की गिनती भारत के प्रमुख ठगों में से होती है। बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गाँव में जन्में नटवरलाल ने बहुत से ठगी की घटनाओं से बिहारउत्तर प्रदेशमध्य प्रदेश और दिल्ली की सरकारों को वर्षों परेशान रखा।

     मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव नाम से आपको कोई चेहरा शायद याद नहीं आए लेकिन नटवर लाल नाम लिया जाए तो आप लगभग मुहावरा बन चुके इस नाम को भूल नहीं पाएंगे। चालाकी और ठगी को ललित कला बना देने वाला यह शख्स अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उस पर बहुत सारी किताबें लिखी गई और एक फिल्म बनी–‘मिस्टर नटवर लालजिसमें अमिताभ बच्चन हीरो थे। नटवर लाल मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव के 52 से ज्यादा ज्ञात नामों में से एक था। उसे ठगी के जिन मामलों में सजा हो चुकी थी, वह अगर पूरी काटता तो 117 साल की थी। 30 मामलों में तो सजा हो ही नहीं पाई थी। आठ राज्यों की पुलिस ने उस पर इनाम घोषित किया था। बिहार का सिवान जिले में नटवर लाल का भी जन्म हुआ था। 
नटवर लाल हमेशा बहुत नाटकीय तरीके से अपराध करता था। उससे भी ज्यादा नाटकीय तरीके से पकड़ा जाता था और उससे भी ज्यादा नाटकीय तरीके से फरार होता था। लगभग 75 साल की उम्र में दिल्ली की तिहाड़ जेल से कानपुर के एक मामले में पेशी के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के दो जवान और एक हवलदार उसे लेने आए थे। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से लखनऊ मेल में उन्हें बैठना था। स्टेशन पर खासी भीड़़। पहरेदार मौजूद और नटवर लाल बैंच पर बैठा हाफ रहा था। उसने सिपाही से कहा कि बेटा बाहर से दवाई की गोली ला दो। मेरे पास पैसा नहीं हैं लेकिन जब रिश्तेदार मिलने आएंगे तो दे दूंगा। यह बात अलग है कि उसके परिवार और रिश्तेदारों के बारे में सिर्फ इतना पता है कि परिवार ने उसे कुटुंब से निकाल दिया था, पत्नी की बहुत पहले मृत्यु हो गई थी और संतान कोई थी नहीं। सिपाही दवाई लेने गया, आखिर दो पहरेदार मौजूद थे। इनमें से एक को नटवर लाल ने पानी लेने के लिए भेज दिया। हवलदार बचा तो उसे कहा कि भैया तुम वर्दी में हो और मुझे बाथरूम जाना है। तुम रस्सी पकड़े रहोगे तो मुझे जल्दी अंदर जाने देंगे क्योंकि मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा। उस भीड़ भाड़ में नटवर लाल ने कब हाथ से रस्सी निकाली, कब भीड़ में शामिल हुआ और कब गायब हो गया, यह किसी को पता नहीं। तीनों पुलिस वाले निलंबित हुए और नटवर लाल साठवीं बार फरार हो गया। 
नटवर लाल को अपने किए पर कोई शर्म नहीं थी। वह अपने आपको रॉबिन हुड मानता था, कहता था कि मैं अमीरों से लूट कर गरीबों को देता हूं। उसने कहा कि मैंने कभी हथियार का इस्तेमाल नहंीं किया। लोगों से बहाने बनाकर पैसे मांगे और लोग पैसे दे गए। इसमें मेरा क्या कसूर है
Demo Pic
आखिरी बार नटवर लाल बिहार के दरभंगा रेलवे स्टेशन पर देखा गया था। पुलिस में पुराने थानेदार ने जो सिपाही के जमाने से नटवर लाल को जानता था, उसे पहचान लिया। नटवर लाल ने भी देख लिया कि उसे पहचान लिया गया है। सिपाही अपने साथियों को लेने थाने के भीतर गया और नटवर लाल गायब था। यह बात अलग है कि पास खड़ी मालगाड़ी के डिब्बे से नटवर लाल के उतारे हुए कपड़े मिले और गार्ड की यूनीफॉर्म गायब थी। 
इसके बाद नटवर लाल का नाम 2004 में तब सामने आया, जब उसने अपनी वसीयतनुमा फाइल एक वकील को सौंपी। बलरामपुर के अस्पताल में भर्ती हुआ और इसके बाद एक दिन अस्पताल छोड़ कर चला गया। डॉक्टरों का कहना था कि जिस हालत में वह था, उसमें उसके तीन चार दिन से ज्यादा बचने की गुंजाइश नहीं थी। 
नटवर लाल के जो ज्ञात अपराध हैं, अगर सबको मिला लिया जाए तो भी यह रकम 50 लाख तक नहीं पहुंचती। नटवर लाल ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था। काम चलाऊ अंग्रेजी बोल लेता था, सुना है कि एक जमाने में पटवारी रह चुका था। जितनी अंग्रेजी वह बोल लेता था, उतनी ही उसका काम चलाने के लिए काफी थी। उसके शिकारों में ज्यादातर या तो मध्यम दर्जे के सरकारी कर्मचारी होते थे या फिर छोटे शहरों के बड़े इरादों वाले व्यापारी, जिन्हें नटवर लाल ताजमहल बेचने का वायदा भी कर देता था। वायदा करने की शैली कुछ ऐसी होती थी कि उस वायदे पर लोग ऐतबार भी कर लेते थे। 
खुद नटवर लाल ने एक बार भरी अदालत में कहा था कि सर अपनी बात करने की स्टाइल ही कुछ ऐसी है कि अगर 10 मिनट आप बात करने दें तो आप वही फैसला देेंगे जो मैं कहूंगा। नटवर लाल नहीं होता तो आप इसे अति आत्मविश्वास कह रहे होते।


(साभार: विकिपीडिया)

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Monday, November 10, 2014

आखिर ठगों को क्यों नटवरलाल की संज्ञा दी जाती है??

नटवरलाल की गिनती भारत के प्रमुख ठगों में से होती है। बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गाँव में जन्में नटवरलाल ने बहुत से ठगी की घटनाओं से बिहारउत्तर प्रदेशमध्य प्रदेश और दिल्ली की सरकारों को वर्षों परेशान रखा।

     मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव नाम से आपको कोई चेहरा शायद याद नहीं आए लेकिन नटवर लाल नाम लिया जाए तो आप लगभग मुहावरा बन चुके इस नाम को भूल नहीं पाएंगे। चालाकी और ठगी को ललित कला बना देने वाला यह शख्स अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उस पर बहुत सारी किताबें लिखी गई और एक फिल्म बनी–‘मिस्टर नटवर लालजिसमें अमिताभ बच्चन हीरो थे। नटवर लाल मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव के 52 से ज्यादा ज्ञात नामों में से एक था। उसे ठगी के जिन मामलों में सजा हो चुकी थी, वह अगर पूरी काटता तो 117 साल की थी। 30 मामलों में तो सजा हो ही नहीं पाई थी। आठ राज्यों की पुलिस ने उस पर इनाम घोषित किया था। बिहार का सिवान जिले में नटवर लाल का भी जन्म हुआ था। 
नटवर लाल हमेशा बहुत नाटकीय तरीके से अपराध करता था। उससे भी ज्यादा नाटकीय तरीके से पकड़ा जाता था और उससे भी ज्यादा नाटकीय तरीके से फरार होता था। लगभग 75 साल की उम्र में दिल्ली की तिहाड़ जेल से कानपुर के एक मामले में पेशी के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के दो जवान और एक हवलदार उसे लेने आए थे। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से लखनऊ मेल में उन्हें बैठना था। स्टेशन पर खासी भीड़़। पहरेदार मौजूद और नटवर लाल बैंच पर बैठा हाफ रहा था। उसने सिपाही से कहा कि बेटा बाहर से दवाई की गोली ला दो। मेरे पास पैसा नहीं हैं लेकिन जब रिश्तेदार मिलने आएंगे तो दे दूंगा। यह बात अलग है कि उसके परिवार और रिश्तेदारों के बारे में सिर्फ इतना पता है कि परिवार ने उसे कुटुंब से निकाल दिया था, पत्नी की बहुत पहले मृत्यु हो गई थी और संतान कोई थी नहीं। सिपाही दवाई लेने गया, आखिर दो पहरेदार मौजूद थे। इनमें से एक को नटवर लाल ने पानी लेने के लिए भेज दिया। हवलदार बचा तो उसे कहा कि भैया तुम वर्दी में हो और मुझे बाथरूम जाना है। तुम रस्सी पकड़े रहोगे तो मुझे जल्दी अंदर जाने देंगे क्योंकि मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा। उस भीड़ भाड़ में नटवर लाल ने कब हाथ से रस्सी निकाली, कब भीड़ में शामिल हुआ और कब गायब हो गया, यह किसी को पता नहीं। तीनों पुलिस वाले निलंबित हुए और नटवर लाल साठवीं बार फरार हो गया। 
नटवर लाल को अपने किए पर कोई शर्म नहीं थी। वह अपने आपको रॉबिन हुड मानता था, कहता था कि मैं अमीरों से लूट कर गरीबों को देता हूं। उसने कहा कि मैंने कभी हथियार का इस्तेमाल नहंीं किया। लोगों से बहाने बनाकर पैसे मांगे और लोग पैसे दे गए। इसमें मेरा क्या कसूर है
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आखिरी बार नटवर लाल बिहार के दरभंगा रेलवे स्टेशन पर देखा गया था। पुलिस में पुराने थानेदार ने जो सिपाही के जमाने से नटवर लाल को जानता था, उसे पहचान लिया। नटवर लाल ने भी देख लिया कि उसे पहचान लिया गया है। सिपाही अपने साथियों को लेने थाने के भीतर गया और नटवर लाल गायब था। यह बात अलग है कि पास खड़ी मालगाड़ी के डिब्बे से नटवर लाल के उतारे हुए कपड़े मिले और गार्ड की यूनीफॉर्म गायब थी। 
इसके बाद नटवर लाल का नाम 2004 में तब सामने आया, जब उसने अपनी वसीयतनुमा फाइल एक वकील को सौंपी। बलरामपुर के अस्पताल में भर्ती हुआ और इसके बाद एक दिन अस्पताल छोड़ कर चला गया। डॉक्टरों का कहना था कि जिस हालत में वह था, उसमें उसके तीन चार दिन से ज्यादा बचने की गुंजाइश नहीं थी। 
नटवर लाल के जो ज्ञात अपराध हैं, अगर सबको मिला लिया जाए तो भी यह रकम 50 लाख तक नहीं पहुंचती। नटवर लाल ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था। काम चलाऊ अंग्रेजी बोल लेता था, सुना है कि एक जमाने में पटवारी रह चुका था। जितनी अंग्रेजी वह बोल लेता था, उतनी ही उसका काम चलाने के लिए काफी थी। उसके शिकारों में ज्यादातर या तो मध्यम दर्जे के सरकारी कर्मचारी होते थे या फिर छोटे शहरों के बड़े इरादों वाले व्यापारी, जिन्हें नटवर लाल ताजमहल बेचने का वायदा भी कर देता था। वायदा करने की शैली कुछ ऐसी होती थी कि उस वायदे पर लोग ऐतबार भी कर लेते थे। 
खुद नटवर लाल ने एक बार भरी अदालत में कहा था कि सर अपनी बात करने की स्टाइल ही कुछ ऐसी है कि अगर 10 मिनट आप बात करने दें तो आप वही फैसला देेंगे जो मैं कहूंगा। नटवर लाल नहीं होता तो आप इसे अति आत्मविश्वास कह रहे होते।


(साभार: विकिपीडिया)

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