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Monday, June 1, 2015

माफ़ करना "आजतक" वालों..... मैं आपका ऐसे ही खून पीता रहूंगा।


माफ़ करना "आजतक" वालों.....लेकिन जब-जब मेरी नज़र पड़ेगी और मुझे गलती नज़र आएगी...मैं उसे ऐसे ही उछालूंगा। जब तक मैनेजमेंट नहीं सुधरेगा...जब तक ऑनस्क्रीन गलती कम नहीं होगी...तब तक मैं आपका ऐसे ही खून पीता रहूंगा।
देश के "नंबर वन" चैनल "आजतक" पर आज रविवार शाम करीब 7:30 बजे टीवी का चैनल बदल रहा था तो आजतक पर मानसून की खबर चलते देखी। हैरानी तो नहीं हुई.....लेकिन पढ़कर परेशानी ज़रूर हुई। क्योंकि आजतक पर आजकल गलतियों का मौसम चल रहा है। आए दिन कोई ना कोई गलती पकड़ में आई ही जाती है। आजतक पर आज "मानसून" लेट के बजाय 'देर' हो रहा था। पढ़कर अपने आपको मंद मंद मुस्कुराने से नहीं रोक पाया। "देर हो गया मानसून"....हद हो गई यार। एक या दो बार हुई गलती को गलती की श्रेणी में रखा जा सकता है लेकिन रोज़ रोज़ इस तरह से गलतियां करना घोर लापरवाही का तो घोतक है ही साथ ही अनुभवहीनता का परिचायक भी है। इन्हें कोई बताओ कि "मानसून देर" नहीं होता, "मानसून लेट" होता है।

इससे पूर्व कुछ दिन पहले स्पेशल प्रोग्राम में माँ के फोटो पर पिता और पिता के फोटो पर माँ का नाम चल रहा था, जबकि उससे कुछ दिन पहले ही "कांड" की जगह "गांड" चला दिया था। हालांकि ये गलती चंद सेकेंड ही चली थी और तुरंत ही इस बड़ी भूल को सुधार भी लिया गया था। मगर इसी दौरान किसी दर्शक ने इसे अपने मोबाइल कैद कर लिया था। बड़ी फजीहत हुई इस कांड को लेकर...लेकिन फिर भी जैसे आजतक के मैनेजमेंट ने नहीं सुधरने की कसम खाई हुई है। 

कुछ लोग समझ रहे होंगे कि कांड वाले कांड में गलती करने वाले को मैनेजमेंट ने बख्शा नहीं होगा? लेकिन मैनेजमेंट उस ट्रेनी/शख्स की नौकरी कैसे ले सकता है जिसकी सेलरी ही मात्र ₹15,000/- रुपए महीना हो? और उसका खून चूसा जा रहा हो। उस दिन भी उसके साथ ऐसा ही हुआ था। दिनभर काम करने के बाद भी उसे नाईट में रोका गया था....क्योंकि नाईट में एक बंदा अचानक छुट्टी पर चला गया था।

आजतक से जुड़े मेरे कुछ मित्रों को इस बात पर एतराज़ रहता है कि मैं उनके चैनल के खिलाफ क्यों लिखता हूँ। तो भाइयों....माफ़ करना। आदत से मज़बूर हूँ। खुद की ग़लती नहीं देखी जाती तो आपकी कैसे बर्दास्त कर सकता हूँ भला? आजतक हो या कोई दूसरा चैनल...." जो करेगा वो भरेगा।।"
सीधा सा फंडा है....गलती सुधारों और आलोचना से बचो....वरना मेरे से भी "बड़े-बड़े" बैठे है..जिन्हें खुजली होती रहती हैं। मैं नहीं लिखूंगा....कोई और लिखेगा।।

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Monday, June 1, 2015

माफ़ करना "आजतक" वालों..... मैं आपका ऐसे ही खून पीता रहूंगा।


माफ़ करना "आजतक" वालों.....लेकिन जब-जब मेरी नज़र पड़ेगी और मुझे गलती नज़र आएगी...मैं उसे ऐसे ही उछालूंगा। जब तक मैनेजमेंट नहीं सुधरेगा...जब तक ऑनस्क्रीन गलती कम नहीं होगी...तब तक मैं आपका ऐसे ही खून पीता रहूंगा।
देश के "नंबर वन" चैनल "आजतक" पर आज रविवार शाम करीब 7:30 बजे टीवी का चैनल बदल रहा था तो आजतक पर मानसून की खबर चलते देखी। हैरानी तो नहीं हुई.....लेकिन पढ़कर परेशानी ज़रूर हुई। क्योंकि आजतक पर आजकल गलतियों का मौसम चल रहा है। आए दिन कोई ना कोई गलती पकड़ में आई ही जाती है। आजतक पर आज "मानसून" लेट के बजाय 'देर' हो रहा था। पढ़कर अपने आपको मंद मंद मुस्कुराने से नहीं रोक पाया। "देर हो गया मानसून"....हद हो गई यार। एक या दो बार हुई गलती को गलती की श्रेणी में रखा जा सकता है लेकिन रोज़ रोज़ इस तरह से गलतियां करना घोर लापरवाही का तो घोतक है ही साथ ही अनुभवहीनता का परिचायक भी है। इन्हें कोई बताओ कि "मानसून देर" नहीं होता, "मानसून लेट" होता है।

इससे पूर्व कुछ दिन पहले स्पेशल प्रोग्राम में माँ के फोटो पर पिता और पिता के फोटो पर माँ का नाम चल रहा था, जबकि उससे कुछ दिन पहले ही "कांड" की जगह "गांड" चला दिया था। हालांकि ये गलती चंद सेकेंड ही चली थी और तुरंत ही इस बड़ी भूल को सुधार भी लिया गया था। मगर इसी दौरान किसी दर्शक ने इसे अपने मोबाइल कैद कर लिया था। बड़ी फजीहत हुई इस कांड को लेकर...लेकिन फिर भी जैसे आजतक के मैनेजमेंट ने नहीं सुधरने की कसम खाई हुई है। 

कुछ लोग समझ रहे होंगे कि कांड वाले कांड में गलती करने वाले को मैनेजमेंट ने बख्शा नहीं होगा? लेकिन मैनेजमेंट उस ट्रेनी/शख्स की नौकरी कैसे ले सकता है जिसकी सेलरी ही मात्र ₹15,000/- रुपए महीना हो? और उसका खून चूसा जा रहा हो। उस दिन भी उसके साथ ऐसा ही हुआ था। दिनभर काम करने के बाद भी उसे नाईट में रोका गया था....क्योंकि नाईट में एक बंदा अचानक छुट्टी पर चला गया था।

आजतक से जुड़े मेरे कुछ मित्रों को इस बात पर एतराज़ रहता है कि मैं उनके चैनल के खिलाफ क्यों लिखता हूँ। तो भाइयों....माफ़ करना। आदत से मज़बूर हूँ। खुद की ग़लती नहीं देखी जाती तो आपकी कैसे बर्दास्त कर सकता हूँ भला? आजतक हो या कोई दूसरा चैनल...." जो करेगा वो भरेगा।।"
सीधा सा फंडा है....गलती सुधारों और आलोचना से बचो....वरना मेरे से भी "बड़े-बड़े" बैठे है..जिन्हें खुजली होती रहती हैं। मैं नहीं लिखूंगा....कोई और लिखेगा।।

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