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Friday, May 15, 2015

रसूकदार पार्टी में संस्कृति का हरण, नशा और डांसर के आगोश में बीती रात!

 "ये सच है कि कल एक अजीज और पारिवारिक मित्र भी कह सकते....उनकी शादी में गया था, जहां म्युजिकल डांस प्रोग्राम भी था। सबको हिदायत दी गई थी कि सभी शांति और सभ्यता से डांस देखेंगे, लेकिन कुछ नवयुवकों ने अपना आपा खो ही दिया और बस फिर क्या था?


धन की वर्षा होने लगी.... ये बालाऐं नाच रहीं थी और 10 से लेकर 100, 500 और 1000 रुपये के नोट इनके सर से सरकते हुऐ अंग-अंग को छूकर चरणों में गिर रहे थे। धन की रानी तो कल ये ही बन गई थी।
मैं इनका डांस तो देख रहा था... पर उससे ज्यादा मैं बहुत सारे चिरपरिचितों की भाव भंगिमाएं भी पढ रहा था। मुझे आश्चर्य और आनंद तब आ रहा था, जब मैं ऐसे नौजवानों को देख रहा था जो दिन में मेहनत -मजदूरी करते हैं तब उनके परिवार का भरण-पोषण होता हैं, लेकिन इन बालाओं को देखकर वो देवदास की तरह लट्टू हुए जा रहे थे।

मैं उस वक्त ही मनन कर रहा था कि वास्तव में देश में पैसे की कमी है भी या नहीं?? जिस तरह से यहां आज पैसा उड रहा हैं उससे तो यही लग रहा है इस पैसे की कोई कीमत नहीं है!
मैने पिक बहुत सी निकाली हैं...दो छोटी क्लिप के वीडियो भी बना डाले हैं लेकिन किसी का चेहरा पब्लिश करना गुनाह है और मै ऐसा गुनाह क्यूं करूं लेकिन जो भी हो रहा था... वो अनुशासन तोडकर हुआ। स्टेज में इंहीं बालाओं के साथ नाचकर लुत्फ उठाया गया।

बेशक नाचिए! आनंद लीजिए! लेकिन इतनी सी प्रार्थना है कि ये ही दिलदारी गरीबों और भूखे व्यक्तियों, जरूरतमंद लोगों के लिए बनाए रखिए, जहां आपके पैसे का सदुपयोग हो सके और दुआएं मिल सकें.... नहीं तो ये यूपी-बिहार लूटकर ले ही जाएगी।
खैर! मैं कुछ देर बाद वापस हो लिया और प्रोग्राम तो रात भर चला, लेकिन जितना जानना था वो जान लिया। इसको कहते हैं “काजल की कोठरी”।

अब काजल की कोठरी की कहावत मुझ पर चरितार्थ कर सकते हैं। लेकिन मुझे जो लिखना था वो लिख दिया और कल सोच रहा था बेरोजगारी, किसानों की परेशानी और नवयुवकों का भविष्य मेरा अपना अनुभव है। एक आंदोलन करना हो तो कम लोग ही आते हैं और बार-बार प्रेरणा देना पडता है... पर ऐसे कार्यक्रमों में बिन बुलाए मेहमान भी आकर लुत्फ उठा लेते हैं और उन्हें आनंद भी बहुत मिलता है।"

सौरभ द्विवेदी 




सौरभ द्विवेदी की फेसबुक वाॅलपोस्ट से।
सौरभ द्विवेदी एक स्वतंत्र लेखक है।

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Friday, May 15, 2015

रसूकदार पार्टी में संस्कृति का हरण, नशा और डांसर के आगोश में बीती रात!

 "ये सच है कि कल एक अजीज और पारिवारिक मित्र भी कह सकते....उनकी शादी में गया था, जहां म्युजिकल डांस प्रोग्राम भी था। सबको हिदायत दी गई थी कि सभी शांति और सभ्यता से डांस देखेंगे, लेकिन कुछ नवयुवकों ने अपना आपा खो ही दिया और बस फिर क्या था?


धन की वर्षा होने लगी.... ये बालाऐं नाच रहीं थी और 10 से लेकर 100, 500 और 1000 रुपये के नोट इनके सर से सरकते हुऐ अंग-अंग को छूकर चरणों में गिर रहे थे। धन की रानी तो कल ये ही बन गई थी।
मैं इनका डांस तो देख रहा था... पर उससे ज्यादा मैं बहुत सारे चिरपरिचितों की भाव भंगिमाएं भी पढ रहा था। मुझे आश्चर्य और आनंद तब आ रहा था, जब मैं ऐसे नौजवानों को देख रहा था जो दिन में मेहनत -मजदूरी करते हैं तब उनके परिवार का भरण-पोषण होता हैं, लेकिन इन बालाओं को देखकर वो देवदास की तरह लट्टू हुए जा रहे थे।

मैं उस वक्त ही मनन कर रहा था कि वास्तव में देश में पैसे की कमी है भी या नहीं?? जिस तरह से यहां आज पैसा उड रहा हैं उससे तो यही लग रहा है इस पैसे की कोई कीमत नहीं है!
मैने पिक बहुत सी निकाली हैं...दो छोटी क्लिप के वीडियो भी बना डाले हैं लेकिन किसी का चेहरा पब्लिश करना गुनाह है और मै ऐसा गुनाह क्यूं करूं लेकिन जो भी हो रहा था... वो अनुशासन तोडकर हुआ। स्टेज में इंहीं बालाओं के साथ नाचकर लुत्फ उठाया गया।

बेशक नाचिए! आनंद लीजिए! लेकिन इतनी सी प्रार्थना है कि ये ही दिलदारी गरीबों और भूखे व्यक्तियों, जरूरतमंद लोगों के लिए बनाए रखिए, जहां आपके पैसे का सदुपयोग हो सके और दुआएं मिल सकें.... नहीं तो ये यूपी-बिहार लूटकर ले ही जाएगी।
खैर! मैं कुछ देर बाद वापस हो लिया और प्रोग्राम तो रात भर चला, लेकिन जितना जानना था वो जान लिया। इसको कहते हैं “काजल की कोठरी”।

अब काजल की कोठरी की कहावत मुझ पर चरितार्थ कर सकते हैं। लेकिन मुझे जो लिखना था वो लिख दिया और कल सोच रहा था बेरोजगारी, किसानों की परेशानी और नवयुवकों का भविष्य मेरा अपना अनुभव है। एक आंदोलन करना हो तो कम लोग ही आते हैं और बार-बार प्रेरणा देना पडता है... पर ऐसे कार्यक्रमों में बिन बुलाए मेहमान भी आकर लुत्फ उठा लेते हैं और उन्हें आनंद भी बहुत मिलता है।"

सौरभ द्विवेदी 




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सौरभ द्विवेदी एक स्वतंत्र लेखक है।

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