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Tuesday, May 19, 2015

वीभत्स "निर्भया कांड़-II" पर "Presstitutes" चुप, कराह रही इंसानियत!!

हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला डिग्री कॉलेज में दिल्ली के निर्भया कांड जैसी वीभत्स घटना शुक्रवार को हुई। कॉलेज के चार सीनियर छात्रों ने प्रथम वर्ष की छात्रा को कॉलेज से उठाकर उसके साथ दुष्कर्म किया और मरणा सन्न हालत में सड़क किनारे फेंक दिया। इस मामले की चर्चा पूरे हिमाचल में लोगों की जुबान पर है, लेकिन निर्भयाकांड पर दस-दस पेज के सप्लीमेंट छापने वाले प्रिंट मीडिया में एक सिंगल कॉलम खबर तक नहीं है। हिमाचल से छपने वाले अखबार हिमाचल दस्तक ने अपनी वेबसाइट पर खबर लगा दी, लेकिन मामला हाई-प्रोफाइल होने के चलते अगले कुछ ही घंटो में खबर वेबसाइट से हट गई। कॉलेज के छात्रों से मिल रही खबर के अनुसार छात्रा की हालत बेहद नाजुक है।


हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए दरिंदों ने छात्रा के यूट्रस तक को बाहर निकाल दिया है। कॉलेज प्रशासन से लेकर पुलिस प्रशासन तक इस मामले से ही इनकार कर रहा है। छात्रा को इलाज के लिए हिमाचल से बाहर कहां भेजा गया है इसकी जानकारी तक किसी को नहीं है। कॉलेज छात्र दबी जुबान में बताते हैं कि चारों आरोपी काफी समय से छात्रा को परेशान कर रहे थे जिससे तंग आकर शुक्रवार को छात्रा ने अपनी बहन के साथ कॉलेज के प्राचार्य से शिकायत भी की थी, जिसके बाद आरोपियों ने शाम को इस घटना को अंजाम दिया।


सवाल सिर्फ ये है कि एक बलात्कार दिल्ली में होता तो अखबार क्रांति छापने लगते हैं, फेमनिस्ट एंकर की जुबान आग उगलने लगती हैं.... मोमबत्तियां लिए लोग सड़कों पर उतर आते हैं, ऐसा आंदोलन होता है मानो देश एक बार फिर गुलाम है और जनता आजादी के लिए सड़कों पर है। आनन-फानन में जांच कमेटियां बैठा दी जाती हैं, संसद में निर्भया बिल आ जाता है, इसलिए क्योंकि वहां पर बलात्कारी किसी मंत्री के बेटे नहीं... बस ड्राइवर-कन्डैक्टर थे। जगह राजधानी थी..कोई गांव, कस्बा या धर्मशाला जैसा छोटा शहर नहीं। 


मामला जैसे ही हाईप्रोफाइल होता है... मीडिया अपनी दुम बचाकर न जाने किस बिल में छिप जाता है। ये कौन से संपादक हैं जो इस मामले में एक सिंगल कॉलम खबर तक छापने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। मैं नहीं जानता ये राष्ट्रीय मुद्दा होना चाहिए या क्षेत्रीय...लेकिन किसी के साथ अन्याय हुआ है, क्या उसके हक की...उसको न्याय दिलाने के लिए मीडिया को आवाज नहीं उठानी चाहिए? यहां के अखबारों ने जिस प्रकार से चुप्पी साधी हुई है वो यहां के संपादकों और पत्रकारों के पुरुषार्थ पर सवाल खड़ा कर रहा है!

साभार: Sunita Katoch की फेसबुक वाल से।




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Tuesday, May 19, 2015

वीभत्स "निर्भया कांड़-II" पर "Presstitutes" चुप, कराह रही इंसानियत!!

हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला डिग्री कॉलेज में दिल्ली के निर्भया कांड जैसी वीभत्स घटना शुक्रवार को हुई। कॉलेज के चार सीनियर छात्रों ने प्रथम वर्ष की छात्रा को कॉलेज से उठाकर उसके साथ दुष्कर्म किया और मरणा सन्न हालत में सड़क किनारे फेंक दिया। इस मामले की चर्चा पूरे हिमाचल में लोगों की जुबान पर है, लेकिन निर्भयाकांड पर दस-दस पेज के सप्लीमेंट छापने वाले प्रिंट मीडिया में एक सिंगल कॉलम खबर तक नहीं है। हिमाचल से छपने वाले अखबार हिमाचल दस्तक ने अपनी वेबसाइट पर खबर लगा दी, लेकिन मामला हाई-प्रोफाइल होने के चलते अगले कुछ ही घंटो में खबर वेबसाइट से हट गई। कॉलेज के छात्रों से मिल रही खबर के अनुसार छात्रा की हालत बेहद नाजुक है।


हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए दरिंदों ने छात्रा के यूट्रस तक को बाहर निकाल दिया है। कॉलेज प्रशासन से लेकर पुलिस प्रशासन तक इस मामले से ही इनकार कर रहा है। छात्रा को इलाज के लिए हिमाचल से बाहर कहां भेजा गया है इसकी जानकारी तक किसी को नहीं है। कॉलेज छात्र दबी जुबान में बताते हैं कि चारों आरोपी काफी समय से छात्रा को परेशान कर रहे थे जिससे तंग आकर शुक्रवार को छात्रा ने अपनी बहन के साथ कॉलेज के प्राचार्य से शिकायत भी की थी, जिसके बाद आरोपियों ने शाम को इस घटना को अंजाम दिया।


सवाल सिर्फ ये है कि एक बलात्कार दिल्ली में होता तो अखबार क्रांति छापने लगते हैं, फेमनिस्ट एंकर की जुबान आग उगलने लगती हैं.... मोमबत्तियां लिए लोग सड़कों पर उतर आते हैं, ऐसा आंदोलन होता है मानो देश एक बार फिर गुलाम है और जनता आजादी के लिए सड़कों पर है। आनन-फानन में जांच कमेटियां बैठा दी जाती हैं, संसद में निर्भया बिल आ जाता है, इसलिए क्योंकि वहां पर बलात्कारी किसी मंत्री के बेटे नहीं... बस ड्राइवर-कन्डैक्टर थे। जगह राजधानी थी..कोई गांव, कस्बा या धर्मशाला जैसा छोटा शहर नहीं। 


मामला जैसे ही हाईप्रोफाइल होता है... मीडिया अपनी दुम बचाकर न जाने किस बिल में छिप जाता है। ये कौन से संपादक हैं जो इस मामले में एक सिंगल कॉलम खबर तक छापने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। मैं नहीं जानता ये राष्ट्रीय मुद्दा होना चाहिए या क्षेत्रीय...लेकिन किसी के साथ अन्याय हुआ है, क्या उसके हक की...उसको न्याय दिलाने के लिए मीडिया को आवाज नहीं उठानी चाहिए? यहां के अखबारों ने जिस प्रकार से चुप्पी साधी हुई है वो यहां के संपादकों और पत्रकारों के पुरुषार्थ पर सवाल खड़ा कर रहा है!

साभार: Sunita Katoch की फेसबुक वाल से।




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