प्रेमबाबू शर्मा, दिल्ली।
जेनीवा रॉय भारत की एकमात्र ऐसी गजल सिंगर हैं जिन्होंने गजल गायिकी के क्षेत्र में देश-विदेशों में ना केवल महारथ हासिल की.. बल्कि उनकी गजलों की एलबम ‘एहसास प्यार का’ और ’सोचते-सोचते’ को संगीत प्रेमियों की गैलिरी में पसंद और प्यार-दुलार खूब मिला। खनकदार आवाज की मल्लिका, प्रतिभा सम्पन्न और समर्पित भावना से ओतप्रोत युवा गजल गायिका जेनीवा रॉय मरहूम गजल मैस्ट्रो जगजीत सिंह की गजल गायिकी से बेहद प्रभावित हैं। शायद इसीलिए उन्होंने ढेर सारे एक्टिंग और प्लेबैक सिंगिंग के ऑफर ठुकरा कर ‘फीमेल जगजीत सिंह’ बनने का नारा बुलंद किया है। पिछले दिनों जेनीवा रॉय से उनकी नई म्यूजिक एलबम ‘संगदिल’ की म्यूजिक सिटिंग्स पर मुम्बई में मिला। यहाँ प्रस्तुत हैं उनके कैरियर और भावी योजनाओं को लेकर अंतरंग बातचीत के महत्वपूर्ण अंश।
’आपकी गजलों की एलबम "एहसास प्यार" का और "सोचते-सोचते" को गजल प्रेमियों के बीच कैसा रिस्पांस मिला ?
मैं अपने आपको बहुत खुशकिस्मत मानती हूँ कि अब जब न्यू जनरेशन की गैलेरी में म्यूजिक की शक्ल बिलकुल अलग-थलग हो गईं है ऐसे में मेरी दोनों एलबमस को अच्छा खासा रिस्पांस म्यूजिक लवर्स में मिला और तो और मुझे गल्फ कंट्रीज में बहुत मान सन्मान मिला। कई प्रेस्टीजिस एवार्ड्स के लिये भी नॉमिनेट हुई।
’आपने तो काफी सालों से अलग अलग मिजाज की गजलों को सुना-गुना हैं... आपकी अपनी राय में गजलों में क्या विषेशता होती है?
मैंने तो हमेशा से ही देखा है कि गजलों की कॉम्पोजिशन के साथ साथ दिल को झंकृत करने वाले कलाम यानि लिरिक्स का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है। शायद यही वजह है कि उन गजल गायकों को सफलता नहीं मिली जिन्हें शायरी, पोएट्री की नोलॉज नहीं है।
क्या आपने इस यूएसपी को अपनी एलबमस में अपनाया है?
यकीनन क्योंकि मैं अच्छी तरह से जानती हूँ कि गजलों की सोल (आत्मा) लफ्जों की अदायगी है वो उन्हें लोकप्रिय बनाने में कितना बड़ा पार्ट निभाती है। इसलिए मैंने अपनी दोनों एलबम्स में शायरों के चयन का विशेष ध्यान रखा है। "एहसास प्यार का" में दुबई के मशहूर शायर सैयद अब्बू वाकर मलिकी, "सोचते-सोचते" में नक्श लायलपुरी को लिया और अब मेरी नई एलबम "संगदिल" में मुन्नवर राणा और नवाब आरजू ने गजलें लिखी हैं।
आप भारत की पहली महिला गायिका है...जो फीमेल जगजीत सिंह बनने का बीड़ा उठाए हुए हैं। आखिर उसकी क्या वजह है? क्या आपकी गजल गायिकी में वो विशेषताएं है जिनके लिए उनका बिलकुल अलग मुकाम अब तक है?
आपने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया। हम साथ-साथ काम करने वाले थे। दरअसल मै उन्हें अपनी ड्रीम फिल्म ‘मेरी गजल’ में बतौर म्यूजिक डायरेक्टर साइन करना चाहती थी। मीडिया पर्सनेलिटी सतीश कँवल और मशहूर शायर-गीतकार नक्श लायलपुरी के मार्फत सब कुछ तय हो गया था। इसी बीच मैं टूर पर निकल गई। और जब इण्डिया लौटी तो खबर मिली कि जगजीत सिंह नहीं रहे।...मैं हतप्रभ रह गई और मेरा दिव्यास्वप्न चूर हो गया। खैर अब अपना मकसद पूरा करने में कोई कोर कसर नहीं रखूंगी।
’आपकी नई गजल एलबम ‘संगदिल’ के बारे में बताइये। क्या तैयारियां चल रही हैं? यह किस तरह की एलबम है?
मेरी बेहतरीन गजलों की नई एलबम ‘संगदिल’ कैरियर के पड़ाव में बहुत अहम् है। इस एलबम में आज के दौर की रोमांटिक शायरी है। अदब का खास ध्यान रखते हुए मुन्नवर राणा और नवाब आरजू ने सरल शब्दों में ह्रदय पर गहरी छाप छोड़ देने वाली गजलें कही है। जिन्हें नौशाद अली साहब ने बहुत ही उम्दा संगीतबद्ध किया है। मुझे यकीन है कि यह एलबम सबको पसंद आएगा।
सुनने में आया है कि आपने कुछ बंगाली फिल्मों में अभिनय भी किया है। तो क्या अभिनय और गायन का सफर साथ-साथ जारी रखेगी?
-हाँ.. कुछेक बंगाली फिल्मों में लीडिंग हीरोइन के रोल्स किये हैं। बहुत अच्छा रिस्पांस भी मिला है। कई बड़े ऑफर्स भी आये हैं... मगर मैंने एक्टिंग के सारे ऑफर ठुकरा दिए हैं। बतौर अभिनेत्री ‘खशबू’ मेरी आखिरी फिल्म है। मैं अब एकचित होकर गजल गायिकी पर ही काम करुँगी।
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