बात उन दिनों की है जब हम भास्कर न्यूज की लाॅचिंग की तैयारी में जुटे हुए थे। उस वक्त हमारा आशियाना इंद्रापुरम में हुआ करता था। रविवार का दिन था...मुजफ्फरनगर के रहने वाले मेरे दो घनिष्ठ मित्र प्रमोद मलिक और अब्दुल बारी का अचानक फोन आया कि वो भी नोएडा-गाजियाबाद आए हुए हैं और मुझसे मिलना चाहते हैं। मैं उस वक्त ओरेंट काउंटी अपोर्टमेंट के पास एक मार्केट में था तो मैने उन्हें भी वहीं पर बुला लिया।
Parmod Malik |
उन्होंने अपनी कार को मार्केट के मुख्य रास्ते पर खड़ी कर दी और उसके अंदर बैठकर बतियाने लगे, जबकि मैं उस वक्त दुकान से शायद कुछ खरीददारी करने में मशगूल था। आपको ज्ञात हो कि वेस्ट यूपी के मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत और बिजनौर में “खड़ी बोली” (भाषा) बोली जाती है, जिसे “कौरवी भाषा” कहा जाता है। चूंकि मेरे ये दोनों महानुभव दोस्त मुजफ्फरनगर के गांव से ताल्लुक रखते हैं तो जाहिर है कि इनकी भाषा भी उसी तरह की खड़ी ही होगी।
Abdul Bari |
इसी बीच पीछे से गोल्डन कलर की आॅल्ड माॅडल होंडा सिटी कार आई। चूंकि मार्केट का रास्ता बेहद संकरा था तो होंडा सिटी कार को निकलने के लिए जगह नहीं मिली। कार चालक बार-बार हाॅर्न दिए जा रहा था, जबकि मेरे ये दोनों महानुभवी दोस्त अपनी मस्ती में मस्त थे। जब लगातार हाॅर्न बजता रहा तो दोनों का पारा अचानक चढ़ गया और कार को साइड में लगाने के बजाए होंडा सिटी कार चालक से भिड़ने के लिए उतरने लगे....तभी अचानक मेरी नजर होंडा सिटी कार की ड्राईविंग सीट पर गई तो मुझे चेहरा कुछ जाना-पहचाना सा लगा। ध्यान से देखने पर मैने वो चेहरा पहचान लिया...वो कोई और नहीं बल्कि 'आजतक' चैनल के वरिष्ठ एंकर एवं एक्जीटिव एडिटर पुण्य प्रसून वाजपेयी थे।
Punya Prasun Bajpai |
इससे पहले मैं कुछ समझ पाता उससे पहले ही मेरे दोनों इन महानुभव दोस्तों ने अपनी कार को आगे कर साइड में लगाया...और “कुछ” करने के मकसद से गालियां भांजते हुए नीचे उतरने लगे। पुण्य प्रसून वाजपेयी उनकी मंशा को अच्छी से भांप गए थे। वो भी अपनी होंडा सिटी कार को साइड में खड़ी करके “दो-दो” हाथ करने के मकसद से नीचे उतर गए। ये देखकर मैंने अपना सिर पीटा और तुरंत ही उनकी तरफ लपका। उससे पहले पुण्य प्रसून वाजपेयी ड्राईविंग सीट की तरफ बैठे अब्दुल बारी से बात करने लगे, जबकि दूसरी तरफ से प्रमोद मलिक बड़े ही तैश में बड़बड़ाते हुए कार से उतरा और मगर तब तक मैं वहां पहुंच चुका था।
इससे पहले कि उनके बीच “कुछ” होता, मैने पुण्य प्रसून वाजपेयी को अपना परिचय दिया और साथ ही उन्हें ये भी बताया कि वो दोनों मुजफ्फरनगर के रहने वाले मेरे दोस्त हैं, जो कि मुझसे मिलने आए हैं। शायद वो भी “मुजफ्फरनगर” का नाम सुनकर समझ गए कि उनकी कोई गलती नहीं है। बिना कुछ सवाल-जवाब किए ही मंद-मद मुस्कुराते हुए अपनी कार में सवार होकर चले गए।
फिर मैंने अपने उन महानुभव दोस्तों को समझाया कि भाई जिनसे आप भिड़ने जा रहे थे वो मीडिया के दिग्गज हस्तियों में से एक हैं। लेकिन उनकी समझ में नहीं आया तो मैंने उन्हें समझाया कि वो बड़े पत्रकार है....बड़े “सामान” हैं तो उनकी समझ में आया। तब अब्दुल बारी बोला कि हां, यार मैं भी तो कहूं। ये आदमी कुछ-कुछ देख्खा सा लगरा था। पर याद नहीं आया कौण था।
खैर, मैंने “भरत” मिलाप के बाद दोनों को मुजफ्फरनगर के लिए विदा कर दिया। उसी रात करीब 10 बजे मेरे पास अब्दुल बारी का फोन आता है और कहता है कि “भाई आप सही कह रहे थे। हम जिस्से भीड़ रहे थे वो तो आजतक पर आरा है।” ये सुनकर मैं बहुत हंसा। शायद उस वक्त आजतक पर किसी मुद्दे पर डिबेट चल रही थी, जिसको पुण्य प्रसून वाजपेयी लीड कर रहे थे।
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