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Sunday, June 19, 2011

संसाधनों की कमी से जूझ रहे अस्पतालों का इलाज करे सरकार


खुशबू(ख़ुशी)इन्द्री : 
कहने को तो इस समय हरियाणा सरकार ने प्रदेश में विकास कार्यों की झड़ी लगा रखी है|लेकिन लोगों को चिकित्सक सुविधाओं का आभाव झेलना पड़ रहा है|विशेषकर ग्रामीण इलाकों में जहाँ लोगों को सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज की व्यवस्था तो उपलब्ध कराई गयी है लेकिन सिर्फ कागजी तौर पर स्थिति बहुत खराब है| इस समय जिले के कई गांवों में आज भी स्वास्थ्य सेवा नहीं है।जहाँ पर है वहां या तो डॉकटर नही या इलाज के लिए दवाइयां और संसाधन नही|सरकार द्वारा गाँव में सरकारी अस्पतालों में 42 डॉकटर की सेवा उपलब्ध कराई गयी है|लेकिन कुछ   सिविल अस्पताल में कुल 42 में से 33 डाक्टर ही काम कर रहे हैं। बच्चों के लिए नर्सरी भी तैयार नहीं हो सकी है। कई अस्पतालों में मशीनें चलाने के लिए विशेषज्ञ नहीं हैं।
 रोहतक : सामान्य अस्पताल में चिकित्सकों के करीब 12 पद खाली हैं। स्किन स्पेशलिस्ट नहीं है। सफाई व्यवस्था की ओर ध्यान नहीं दिए जाने से बीमारी फैलने की आशंका रहती है। कुरुक्षेत्र : 36 साल बाद भी लोकनायक जयप्रकाश सिविल अस्पताल का विस्तार नहीं किया गया। न तो यहां जरूरी पूरे उपकरण हैं और न ही दवाएं। ज्यादा संख्या में गंभीर मरीज आने पर या तो फर्श पर लिटाकर इलाज किया जाता है। यमुनानगर : ट्रॉमा सेंटर में पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। माइक्रोबायोलाजिस्ट का पद रिक्त है। यहां टीएमटी मशीन, इकोकार्डियोग्राफी व सिटी स्कैन मशीन भी नहीं हैं। अंबाला : सरकारी अस्पतालों में दवाइयों से लेकर डॉक्टरों का अभाव है। मशीनों को चलाने वाला कोई नहीं है। शहर में सात साल से अल्ट्रासाउंड नहीं हो रहे। सफाई का आलम ये है कि टीबी अस्पताल की छत पर पीपल के पौधे उगे हुए हैं। करनाल : 1911 में शहर में किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल नाम से जिले का राजकीय अस्पताल बना था। इसका ट्रॉमा सेंटर रेफर सेंटर बन चुका है। 19 पीएचसी और छह सीएचसी में सुविधाओं के अभाव में मरीजों को कराहते देखा जा सकता है। कभी एक्सरे की फिल्म नहीं तो कभी दवाइयों की कमी। पानीपत : सिविल अस्पताल 12 लाख की आबादी वाले जिले की आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम नहीं है। यहां 42 में से 37 डॉक्टर सेवा दे रहे हैं। अल्ट्रासाउंड मशीन चलाने वाला कोई नहीं है। जले हुए मरीजों का इलाज करने के लिए बर्न यूनिट नहीं है। इन परिस्थितयों में सरकार द्वारा किये गये स्वस्थ परिवार के दावे बेकार ही साबित प्रतीत होते हैं|सही चिकित्सा सुविधा नही मिल पाने के कारण ही आज देश के गाँव स्वस्थ नही हैं और इसके लिए सरकार ही जिम्मेवार है|हांलाकि स्वास्थ्य का ध्यान रखना लोगों की जिम्मेवारी है लेकिन इसके लिए सुविधाएँ उपलब्ध करना सरकार का और स्वास्थ्य विभाग का कर्तव्य है|लेकिन दोनों ही आँखें मूंदे बैठी है|

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Sunday, June 19, 2011

संसाधनों की कमी से जूझ रहे अस्पतालों का इलाज करे सरकार


खुशबू(ख़ुशी)इन्द्री : 
कहने को तो इस समय हरियाणा सरकार ने प्रदेश में विकास कार्यों की झड़ी लगा रखी है|लेकिन लोगों को चिकित्सक सुविधाओं का आभाव झेलना पड़ रहा है|विशेषकर ग्रामीण इलाकों में जहाँ लोगों को सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज की व्यवस्था तो उपलब्ध कराई गयी है लेकिन सिर्फ कागजी तौर पर स्थिति बहुत खराब है| इस समय जिले के कई गांवों में आज भी स्वास्थ्य सेवा नहीं है।जहाँ पर है वहां या तो डॉकटर नही या इलाज के लिए दवाइयां और संसाधन नही|सरकार द्वारा गाँव में सरकारी अस्पतालों में 42 डॉकटर की सेवा उपलब्ध कराई गयी है|लेकिन कुछ   सिविल अस्पताल में कुल 42 में से 33 डाक्टर ही काम कर रहे हैं। बच्चों के लिए नर्सरी भी तैयार नहीं हो सकी है। कई अस्पतालों में मशीनें चलाने के लिए विशेषज्ञ नहीं हैं।
 रोहतक : सामान्य अस्पताल में चिकित्सकों के करीब 12 पद खाली हैं। स्किन स्पेशलिस्ट नहीं है। सफाई व्यवस्था की ओर ध्यान नहीं दिए जाने से बीमारी फैलने की आशंका रहती है। कुरुक्षेत्र : 36 साल बाद भी लोकनायक जयप्रकाश सिविल अस्पताल का विस्तार नहीं किया गया। न तो यहां जरूरी पूरे उपकरण हैं और न ही दवाएं। ज्यादा संख्या में गंभीर मरीज आने पर या तो फर्श पर लिटाकर इलाज किया जाता है। यमुनानगर : ट्रॉमा सेंटर में पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। माइक्रोबायोलाजिस्ट का पद रिक्त है। यहां टीएमटी मशीन, इकोकार्डियोग्राफी व सिटी स्कैन मशीन भी नहीं हैं। अंबाला : सरकारी अस्पतालों में दवाइयों से लेकर डॉक्टरों का अभाव है। मशीनों को चलाने वाला कोई नहीं है। शहर में सात साल से अल्ट्रासाउंड नहीं हो रहे। सफाई का आलम ये है कि टीबी अस्पताल की छत पर पीपल के पौधे उगे हुए हैं। करनाल : 1911 में शहर में किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल नाम से जिले का राजकीय अस्पताल बना था। इसका ट्रॉमा सेंटर रेफर सेंटर बन चुका है। 19 पीएचसी और छह सीएचसी में सुविधाओं के अभाव में मरीजों को कराहते देखा जा सकता है। कभी एक्सरे की फिल्म नहीं तो कभी दवाइयों की कमी। पानीपत : सिविल अस्पताल 12 लाख की आबादी वाले जिले की आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम नहीं है। यहां 42 में से 37 डॉक्टर सेवा दे रहे हैं। अल्ट्रासाउंड मशीन चलाने वाला कोई नहीं है। जले हुए मरीजों का इलाज करने के लिए बर्न यूनिट नहीं है। इन परिस्थितयों में सरकार द्वारा किये गये स्वस्थ परिवार के दावे बेकार ही साबित प्रतीत होते हैं|सही चिकित्सा सुविधा नही मिल पाने के कारण ही आज देश के गाँव स्वस्थ नही हैं और इसके लिए सरकार ही जिम्मेवार है|हांलाकि स्वास्थ्य का ध्यान रखना लोगों की जिम्मेवारी है लेकिन इसके लिए सुविधाएँ उपलब्ध करना सरकार का और स्वास्थ्य विभाग का कर्तव्य है|लेकिन दोनों ही आँखें मूंदे बैठी है|

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