खुशबू (ख़ुशी) इन्द्री :
करनाल भारत देश में जहाँ विभिन्न प्रकार के धर्म,जातियां और भाषाएँ एवं बोलियाँ पाई जाती हैं वहां विवाह परम्पराओं में भी विविधता पाई जाती है! झारखण्ड के पूर्वी सिहंभूम की आदिवासी जाति संथाल की विवाह परम्परा अपने आप में ही निराली है इस जाति के लोग होली पर रंगों से दूर रहते हैं ये लोग होली सिर्फ पानी से खेलते हैं!
इसका कारण यह है की इस जाति में अगर कोई युवक किसी युवती पर रंग डाल देता तो इसे अपराध माना जाता है! ये लोग रंग डालने को सिंदूरदान के बराबर समझते हैं! इसके मुताबिक उस युवक कोई उस युवती से शादी करनी पड़ती है जिस पर उसने रंग डाला है! इसी तरह अगर युवती किसी युवक पर रंग डाल देती है तो उसे भी शादी करनी पड़ती है ! चाहे दोनों एक दुसरे को पसंद करते हो या न करते हो, यह कोई मायने नहीं रखता!
जब कोई युवक युवती ऐसा कर देते हैं तब पांचो की बैठक बुलाई जाती है! अगर युवक युवती शादी को तैयार हो जाते हैं तो बाकि की कसर मझी मोड़े(पंचो की राय)से पूरी कर दी जाती है! अधिकांश मामलों में रंग डालने वाले पर डांडोम (जुर्माना) किया जाता है!
इस समुदाय में महिलाओं का रंग डालना पूरी तरह मना है! जबकि यहाँ पुरानी परम्परा यह रही है की जो युवक युवती एक दुसरे को पसंद करते हैं! यदि उनके माँ बाप उनकी शादी के लिए नहीं मानते तो वे इसी तरीके से शादी कर लेते हैं!
इसी तरह अगर कोई युवक किसी शादीशुदा युवती पर रंग डाल देता है तो दोनो को अपने पति और पत्नी से तलाक लेना पड़ता है! इस मामले में पहले पञ्च बैठते हैं फिर महिला की शिकायत सुनी जाती है! जबरन रंग डालने वाले पुरुष पर पहले तो दो से 20 हजार रूपये जुर्माना लगाया जाता है फिर विधिवत तलाक की घोषणा कर दी जाती है! तलाक हो जाने के बाद उस युवती को छ्डूय यानि की तलाकशुदा माना जाता है!
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