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Wednesday, March 16, 2011

बिना होगा अंग कटे जांघ की हड्डी का कैंसर : डॉ. अश्वनी माईचन्द

नई दिल्ली! (प्रेमबाबू शर्मा)...
बिना अंग काटे अब जांघ की हड्डी का कैंसर का इलाज भी संभव है। यह चमत्कार किया है राजधानी दिल्ली के ४१ वर्षीय ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. अश्वनी माईचन्द। उन्होंनें लंबे समय से जांघ की हड्डी कैंसर से रोग से पीडित प्रेम नारायण का सफल इलाज करके इस रोग पर विजयी पा ली है। बातचीत के दौरान उन्होंने पत्रकारों को बताया कि चिकित्सा विज्ञान ने इस पुरानी बीमारी के खिलाफ एक और जंग जीत ली है। अब तक जांघ की हड्डी के कैंसर से पीड़ित रोगियों कि जान बचाने के लिए अब कूल्हे के नजदीक (हिप प्वाइंट) से पैर को काटकर दिया जाता था,या फिर अंग-विच्छेदन या मौत का पर्याय माना जाता था। रोगी प्रेम को जांघ की हड्डी मंे घातक रसौली (ट्यूमर) की शिकायत थी, जिसके कारण उन्हें चलने-फिरने मंे बड़ी तकलीफ होती थी। इलाज के सिलसिले में अनेक विशेषज्ञ चिकित्सकों से संपर्क किया था और सभी ने उनको हिप प्वाइंट से उन्हें टांग कटवाने की सलाह दी थी। डॉ. अश्वनी माईचन्द ने बताया कि प्रेम नारायण कि कैंसर की कोशिकाएं (शेल्स) आसपास की रक्त नलिकाओं या लिम्फैटिक चैनल्स के माध्यम से शरीर पर किसी भी हिस्से तक फैल सकती हैं और शरीर के उस हिस्से के लिम्फ नॉड (लसिका प्रवाह गांठ) तक अथवा जिगर, फेफड़े या जांघ की हड्डियों जैसे महत्वपूर्ण अंगों तक अपना दुष्प्रभाव फैला सकती हैं। मैंने एक ऑनकोलॉजिस्ट के सहयोग से छह घंटे की सर्जरी के बाद पीड़ित व्यक्ति की जांघ से रसौली निकालने और उनकी जांघ मंे टाइटेनियम की बनी कृत्रिम हड्डी प्रत्यारोपित करने में सफलता हासिल की। इसके साथ ही प्रेम नारायण को नया जीवन मिल गया। उन्होंने रोगी के कूल्हे और घुटने के जोड़ को भी बदल दिया।
उन्होंने बताया, ‘‘यह बहुत ही विरल और जटिल सर्जरी है और दुनिया मंे कुछेक स्थानों पर ही इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया जाता है। इसके लिए ज्वाइंट रिप्लेसमेंट करने वाले विशेषज्ञ सर्जन और अनुभवी ऑनकोलॉजिस्ट के बेहतर तालमेल की आवश्यकता होती है।’’ उन्होंने बताया कि ऑपरेशन के बाद प्रेम नारायण पूरी तरह स्वस्थ है और सामान्य जीवन जी रहे हैं। डॉ. अश्वनी माईचन्द ने दावा किया कि उत्तर भारत में यह अपनी तरह की पहली सर्जरी है। उन्हांेने कहा कि इस तरह की सर्जरी न केवल भारत बल्कि विदेशों मंे भी विरल है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी किसी ज्वाइंट रिप्लेसमंेट सर्जन ने इस तरह की चार या पांच से अधिक सर्जरी नहीं की हैं। इस तरह के कैंसर की रोगी विरले और इसके विशेषज्ञ चिकित्सक विरलतम होते हैं। डॉ. अश्वनी माईचन्द ने कहा कि जहां तक जांघ की पूरी हड्डी बदलने का सवाल है तो यह उनकी पहली सर्जरी थी। उन्होंने बताया कि ऐसे ही दो और रोगियों की सर्जरी इस माह की जाएगी, जिनमें एक 15 वर्ष की लड़की शामिल है। इस लड़की ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) सहित देश के सभी बड़े अस्पतालों के चिकित्सकों से संपर्क किया है और सभी ने कूल्हे के नजदीक से पैर कटवाने की सलाह दी है। यदि किसी कैंसर पीड़ित के जीवन के कम से कम तीन-चार साल बचे रहने की उम्मीद होती है तो डॉ. अश्वनी माईचन्द उसे इस पुरानी बीमारी से पूरी तरह उबरने की शत-प्रतिशत गारंटी देते हैं।
इस सर्जरी पर आने वाली लागत के बारे में पूछे जाने पर डॉ. अश्वनी माईचन्द बताते हैं कि आयातित कृत्रिम हड्डी प्रत्यारोपित कराना बहुत ही महंगा पड़ता है। इसमें दस से बारह लाख रुपये के बीच लागत आती है। लेकिन उन्होंने स्थानीय स्तर पर इस तरह की कृत्रिम हड्डी विकसित की है, जिसे प्रत्यारोपित कराने में महज ढ़ाई लाख रुपये का खर्च आता है।
कैंसर पीड़ितों के लिए अपने संदेश में डॉ. अश्वनी माईचन्द ने कहा, ‘‘जांघ की हड्डी के कैंसर से पीड़ित व्यक्ति को नाउम्मीद होने की जरूरत नहीं है। यदि रोगी हमारी कसौटी पर खरा उतरता है तो इसे ठीक किया जा सकता है। यह सर्जरी बहुत महंगी नहीं है। यदि ऑपरेशन के बाद रोगी को उसका परिवार दो सप्ताह तक सहयोग करता है तो उसे नया पैर मिल सकता है। ऐसे रोगियों को अपंगों की जिन्दगी नहीं बितानी पड़ती है। उन्हें कम से कम हमारी सलाह ले लेनी चाहिए।’’ डॉ. अश्वनी माईचन्द ने कहा कि सर्जरी के बाद रोगी के शरीर के खास हिस्से की मांसपेशियों को ताकत 20 से 30 फीसदी कम हो जाती है। इसलिए रोगी को जॉगिंग और अत्यधिक शारीरिक मेहनत से बचना चाहिए। डॉ. अश्वनी माईचन्द दिल्ली के बी.एल कपूर मेमोरियल हॉस्पिटल मंे सीनियर कंसलटेंट के तौर पर कार्यरत हैं।

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Wednesday, March 16, 2011

बिना होगा अंग कटे जांघ की हड्डी का कैंसर : डॉ. अश्वनी माईचन्द

नई दिल्ली! (प्रेमबाबू शर्मा)...
बिना अंग काटे अब जांघ की हड्डी का कैंसर का इलाज भी संभव है। यह चमत्कार किया है राजधानी दिल्ली के ४१ वर्षीय ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. अश्वनी माईचन्द। उन्होंनें लंबे समय से जांघ की हड्डी कैंसर से रोग से पीडित प्रेम नारायण का सफल इलाज करके इस रोग पर विजयी पा ली है। बातचीत के दौरान उन्होंने पत्रकारों को बताया कि चिकित्सा विज्ञान ने इस पुरानी बीमारी के खिलाफ एक और जंग जीत ली है। अब तक जांघ की हड्डी के कैंसर से पीड़ित रोगियों कि जान बचाने के लिए अब कूल्हे के नजदीक (हिप प्वाइंट) से पैर को काटकर दिया जाता था,या फिर अंग-विच्छेदन या मौत का पर्याय माना जाता था। रोगी प्रेम को जांघ की हड्डी मंे घातक रसौली (ट्यूमर) की शिकायत थी, जिसके कारण उन्हें चलने-फिरने मंे बड़ी तकलीफ होती थी। इलाज के सिलसिले में अनेक विशेषज्ञ चिकित्सकों से संपर्क किया था और सभी ने उनको हिप प्वाइंट से उन्हें टांग कटवाने की सलाह दी थी। डॉ. अश्वनी माईचन्द ने बताया कि प्रेम नारायण कि कैंसर की कोशिकाएं (शेल्स) आसपास की रक्त नलिकाओं या लिम्फैटिक चैनल्स के माध्यम से शरीर पर किसी भी हिस्से तक फैल सकती हैं और शरीर के उस हिस्से के लिम्फ नॉड (लसिका प्रवाह गांठ) तक अथवा जिगर, फेफड़े या जांघ की हड्डियों जैसे महत्वपूर्ण अंगों तक अपना दुष्प्रभाव फैला सकती हैं। मैंने एक ऑनकोलॉजिस्ट के सहयोग से छह घंटे की सर्जरी के बाद पीड़ित व्यक्ति की जांघ से रसौली निकालने और उनकी जांघ मंे टाइटेनियम की बनी कृत्रिम हड्डी प्रत्यारोपित करने में सफलता हासिल की। इसके साथ ही प्रेम नारायण को नया जीवन मिल गया। उन्होंने रोगी के कूल्हे और घुटने के जोड़ को भी बदल दिया।
उन्होंने बताया, ‘‘यह बहुत ही विरल और जटिल सर्जरी है और दुनिया मंे कुछेक स्थानों पर ही इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया जाता है। इसके लिए ज्वाइंट रिप्लेसमेंट करने वाले विशेषज्ञ सर्जन और अनुभवी ऑनकोलॉजिस्ट के बेहतर तालमेल की आवश्यकता होती है।’’ उन्होंने बताया कि ऑपरेशन के बाद प्रेम नारायण पूरी तरह स्वस्थ है और सामान्य जीवन जी रहे हैं। डॉ. अश्वनी माईचन्द ने दावा किया कि उत्तर भारत में यह अपनी तरह की पहली सर्जरी है। उन्हांेने कहा कि इस तरह की सर्जरी न केवल भारत बल्कि विदेशों मंे भी विरल है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी किसी ज्वाइंट रिप्लेसमंेट सर्जन ने इस तरह की चार या पांच से अधिक सर्जरी नहीं की हैं। इस तरह के कैंसर की रोगी विरले और इसके विशेषज्ञ चिकित्सक विरलतम होते हैं। डॉ. अश्वनी माईचन्द ने कहा कि जहां तक जांघ की पूरी हड्डी बदलने का सवाल है तो यह उनकी पहली सर्जरी थी। उन्होंने बताया कि ऐसे ही दो और रोगियों की सर्जरी इस माह की जाएगी, जिनमें एक 15 वर्ष की लड़की शामिल है। इस लड़की ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) सहित देश के सभी बड़े अस्पतालों के चिकित्सकों से संपर्क किया है और सभी ने कूल्हे के नजदीक से पैर कटवाने की सलाह दी है। यदि किसी कैंसर पीड़ित के जीवन के कम से कम तीन-चार साल बचे रहने की उम्मीद होती है तो डॉ. अश्वनी माईचन्द उसे इस पुरानी बीमारी से पूरी तरह उबरने की शत-प्रतिशत गारंटी देते हैं।
इस सर्जरी पर आने वाली लागत के बारे में पूछे जाने पर डॉ. अश्वनी माईचन्द बताते हैं कि आयातित कृत्रिम हड्डी प्रत्यारोपित कराना बहुत ही महंगा पड़ता है। इसमें दस से बारह लाख रुपये के बीच लागत आती है। लेकिन उन्होंने स्थानीय स्तर पर इस तरह की कृत्रिम हड्डी विकसित की है, जिसे प्रत्यारोपित कराने में महज ढ़ाई लाख रुपये का खर्च आता है।
कैंसर पीड़ितों के लिए अपने संदेश में डॉ. अश्वनी माईचन्द ने कहा, ‘‘जांघ की हड्डी के कैंसर से पीड़ित व्यक्ति को नाउम्मीद होने की जरूरत नहीं है। यदि रोगी हमारी कसौटी पर खरा उतरता है तो इसे ठीक किया जा सकता है। यह सर्जरी बहुत महंगी नहीं है। यदि ऑपरेशन के बाद रोगी को उसका परिवार दो सप्ताह तक सहयोग करता है तो उसे नया पैर मिल सकता है। ऐसे रोगियों को अपंगों की जिन्दगी नहीं बितानी पड़ती है। उन्हें कम से कम हमारी सलाह ले लेनी चाहिए।’’ डॉ. अश्वनी माईचन्द ने कहा कि सर्जरी के बाद रोगी के शरीर के खास हिस्से की मांसपेशियों को ताकत 20 से 30 फीसदी कम हो जाती है। इसलिए रोगी को जॉगिंग और अत्यधिक शारीरिक मेहनत से बचना चाहिए। डॉ. अश्वनी माईचन्द दिल्ली के बी.एल कपूर मेमोरियल हॉस्पिटल मंे सीनियर कंसलटेंट के तौर पर कार्यरत हैं।

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