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Sunday, May 22, 2011

पहला शख्स, जिसने दी एड्स को मात

खुशबू(ख़ुशी)इन्द्री :
अमेरिका के एक व्यक्ति ने विश्र्व की सबसे खतरनाक बीमारी एड्स को मात देकर चिकित्सा जगत को चमत्कृत कर दिया है। वह दुनिया का ऐसा पहला मरीज है, जिसके शरीर में एचआइवी वायरस पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। 45 वर्षीय टिमोथी रे ब्राउन के लिए इसे किस्मत की ही बात कहेंगे। वह एड्स के अलावा एक और प्राणघातक बीमारी ल्यूकेमिया (एक प्रकार का ब्लड कैंसर) से पीडि़त थे। ल्यूकेमिया के इलाज के लिए उनके शरीर में एक बार बोन मैरो का ट्रांसप्लांटेशन किया गया और उसी के बाद से उनका एड्स भी ठीक होने लगा। अब उनके शरीर में एचआइवी वायरस पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। डॉक्टरों ने इस अनोखी घटना को फंक्शनल क्योर कहा है। ब्राउन ने अपने जीवन की घटना को सैन फ्रांसिस्को में न्यूज चैनल सीबीएस 5 से साझा किया।
ऐसे बदली जिंदगी : 1995 में ब्राउन के शरीर में एचआइवी वायरस के संक्रमण के बारे में पता लगा। वह ल्यूकेमिया से भी जूझ रहे थे। तब वह जर्मनी में रहते थे। बर्लिन में 2007 में हुए बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन ने उनकी जिंदगी बदल दी। वैज्ञानिकों का मानना है कि उनके शरीर में जिस व्यक्ति का बोन मैरो प्रत्यारोपित किया गया था, संभवत: उसके अंदर एचआइवी वायरस के प्रति प्रतिरोधी जीन रहे होंगे, जो बोन मैरो के जरिए ब्राउन के शरीर में भी पहुंच गए और उनका एड्स सही होने लगा। माना जा रहा है कि जिस व्यक्ति का बोन मैरो ब्राउन के शरीर में डाला गया वह काकेशियाई मूल का रहा होगा। यूरोप स्थित काकेशिया पर्वत के आस-पास रहने वाले लोग काकेशियाई मूल के माने जाते हैं। इस मूल के लोग श्वेत होते हैं और यूरोप, उत्तर अफ्रीका, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया तक पाए जाते हैं। काकेशियाई मूल के एक प्रतिशत लोगों के शरीर में एड्स के प्रतिरोधी जीन पाए जाते हैं और यह व्यक्ति भी उनमें से एक रहा होगा।
ऐसे विकसित हुई क्षमता : कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चौदहवीं शताब्दी में यूरोप में लाखों लोगों की जान लेने वाली महामारी ग्रेट प्लेग से बच जाने वाले काकेशियाई लोगों में स्वत: ही एड्स से लड़ने की क्षमता विकसित हो गई थी। उसके बाद यह जीन पीढ़ी दर पीढ़ी उनकी संतानों में आते गए। बड़ी उपलब्धि : एचआइवी वायरस की खोज में प्रमुख भूमिका निभाने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के डॉक्टर जे लेवी ने इसे चिकित्सा विज्ञान के लिए बड़ी उपलब्धि करार दिया है। उनका कहना है कि उन एड्स के प्रतिरोधी जीनों की संरचना का पता लगाकर इनसे बड़ी सफलता हासिल की जा सकती है।


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Sunday, May 22, 2011

पहला शख्स, जिसने दी एड्स को मात

खुशबू(ख़ुशी)इन्द्री :
अमेरिका के एक व्यक्ति ने विश्र्व की सबसे खतरनाक बीमारी एड्स को मात देकर चिकित्सा जगत को चमत्कृत कर दिया है। वह दुनिया का ऐसा पहला मरीज है, जिसके शरीर में एचआइवी वायरस पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। 45 वर्षीय टिमोथी रे ब्राउन के लिए इसे किस्मत की ही बात कहेंगे। वह एड्स के अलावा एक और प्राणघातक बीमारी ल्यूकेमिया (एक प्रकार का ब्लड कैंसर) से पीडि़त थे। ल्यूकेमिया के इलाज के लिए उनके शरीर में एक बार बोन मैरो का ट्रांसप्लांटेशन किया गया और उसी के बाद से उनका एड्स भी ठीक होने लगा। अब उनके शरीर में एचआइवी वायरस पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। डॉक्टरों ने इस अनोखी घटना को फंक्शनल क्योर कहा है। ब्राउन ने अपने जीवन की घटना को सैन फ्रांसिस्को में न्यूज चैनल सीबीएस 5 से साझा किया।
ऐसे बदली जिंदगी : 1995 में ब्राउन के शरीर में एचआइवी वायरस के संक्रमण के बारे में पता लगा। वह ल्यूकेमिया से भी जूझ रहे थे। तब वह जर्मनी में रहते थे। बर्लिन में 2007 में हुए बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन ने उनकी जिंदगी बदल दी। वैज्ञानिकों का मानना है कि उनके शरीर में जिस व्यक्ति का बोन मैरो प्रत्यारोपित किया गया था, संभवत: उसके अंदर एचआइवी वायरस के प्रति प्रतिरोधी जीन रहे होंगे, जो बोन मैरो के जरिए ब्राउन के शरीर में भी पहुंच गए और उनका एड्स सही होने लगा। माना जा रहा है कि जिस व्यक्ति का बोन मैरो ब्राउन के शरीर में डाला गया वह काकेशियाई मूल का रहा होगा। यूरोप स्थित काकेशिया पर्वत के आस-पास रहने वाले लोग काकेशियाई मूल के माने जाते हैं। इस मूल के लोग श्वेत होते हैं और यूरोप, उत्तर अफ्रीका, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया तक पाए जाते हैं। काकेशियाई मूल के एक प्रतिशत लोगों के शरीर में एड्स के प्रतिरोधी जीन पाए जाते हैं और यह व्यक्ति भी उनमें से एक रहा होगा।
ऐसे विकसित हुई क्षमता : कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चौदहवीं शताब्दी में यूरोप में लाखों लोगों की जान लेने वाली महामारी ग्रेट प्लेग से बच जाने वाले काकेशियाई लोगों में स्वत: ही एड्स से लड़ने की क्षमता विकसित हो गई थी। उसके बाद यह जीन पीढ़ी दर पीढ़ी उनकी संतानों में आते गए। बड़ी उपलब्धि : एचआइवी वायरस की खोज में प्रमुख भूमिका निभाने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के डॉक्टर जे लेवी ने इसे चिकित्सा विज्ञान के लिए बड़ी उपलब्धि करार दिया है। उनका कहना है कि उन एड्स के प्रतिरोधी जीनों की संरचना का पता लगाकर इनसे बड़ी सफलता हासिल की जा सकती है।


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