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Tuesday, May 10, 2011

भारत में खुशहाल नहीं "माँ"

खुशबू(ख़ुशी), इन्द्री :
माँ दुनिया का वो फरिश्ता है जिसके आगे भगवान् भी सर झुकाता है! कल ही हमने दुनिया के इस फरिश्ते का दिन मनाया! लेकिन अंतरराष्ट्रीय इस मदर्स डे पर भारतदेश के लिए एक बुरी खबर है। दुनिया के 79 कम विकसित देशों में से माताओं के लिए सबसे अच्छे निवास के सर्वेक्षण में भारत को 75वां स्थान मिला है। यानी हिंदुस्तान में माओं की स्थिति बेहतर नहीं है। इस सूची में भारत से भी आगे कुछ गरीब अफ्रीकी देश हैं। इंटरनेशनल चाइल्ड राइट्स एजीओ के अनुसार 2011 मदर्स इंडेक्स में पिछले साल के अध्ययन के मुकाबले भारत 73वें स्थान से भी नीचे फिसल गया है। इसका कारण शिशुओं की मृत्यु दर और उनके रहन-सहन के बदतर हालात भी थे।
दरअसल, इस सर्वे में विकसित देश, कम विकसित देश और सबसे कम विकसित देशों की अलग-अलग सूची बनाई गई। इस सर्वे की रेटिंग का आधार माताओं और बच्चों का जीवनस्तर समेत उनका स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक स्तर आंका जाता है। इस इंडेक्स के अनुसार भारत ने सहारा रेगिस्तान में कुछ अफ्रीकी देशों जैसे बोत्सवाना (51), कैमरून (73), और हिंसाग्रस्त कांगो (74) से भी नीचे का क्रम पाया है। पाकिस्तान भी भारत से सिर्फ दो पायदान ही नीचे है। जबकि चीन भारत से कहीं अधिक बेहतर स्थिति यानी 18वें पायदान पर है। श्रीलंका 43वें स्थान पर है। वहीं बांग्लादेश को 40 सबसे कम विकसित देशों की श्रेणी में 18वां स्थान मिला है। माओं के इंडेक्स में अधिक विकसित देश जैसे नारवे सबसे ऊपर और उसके बाद ऑस्ट्रेलिया और आइइसलैंड हैं। इस रिपोर्ट में कुल 164 देशों का विश्लेषण किया गया है जिसमें अफगानिस्तान को मांओं के रहने के लिए सबसे दुष्कर स्थान बताया गया है। यानी अफगानिस्तान इस सूची में सबसे आखिर में है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में जच्चा-बच्चा की मृत्यु दर में कमी आने के बावजूद भारत उन बारह देशों में शामिल है जिसमें पांच साल से कम उम्र के दो-तिहाई बच्चों और माताओं की मौत हो जाती है। सर्वे के अनुसार भारत में केवल 53 फीसदी जन्म ही प्रशिक्षित दाइयों द्वारा कराया जाता है। महिलाओं की औसत उम्र 66 साल ही है। पांच साल से कम उम्र के प्रति हजार बच्चों में 66 बच्चों की मौत हो जाती है। वहीं पांच साल से कम उम्र के अत्यधिक कम वजन वाले बच्चों की तादाद 48 फीसदी है। सेव द चिल्डि्रन (इंडिया) के शिरीन मिलर ने बताया कि भारत में प्रति वर्ष प्रसव के दौरान 68 हजार महिलाओं को प्रसव के दौरान अत्यधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हर साल 20 लाख नवजातों की मौत हो जाती है। व्हाइट रिबन एलायंस फॉर सेफ मदरहुड की राष्ट्रीय संयोजक अपराजिता गोगई के अनुसार सरकारी योजनाओं को लागू करने की जवाबदेही के लिए समाज की सोच को बदलना होगा।

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Tuesday, May 10, 2011

भारत में खुशहाल नहीं "माँ"

खुशबू(ख़ुशी), इन्द्री :
माँ दुनिया का वो फरिश्ता है जिसके आगे भगवान् भी सर झुकाता है! कल ही हमने दुनिया के इस फरिश्ते का दिन मनाया! लेकिन अंतरराष्ट्रीय इस मदर्स डे पर भारतदेश के लिए एक बुरी खबर है। दुनिया के 79 कम विकसित देशों में से माताओं के लिए सबसे अच्छे निवास के सर्वेक्षण में भारत को 75वां स्थान मिला है। यानी हिंदुस्तान में माओं की स्थिति बेहतर नहीं है। इस सूची में भारत से भी आगे कुछ गरीब अफ्रीकी देश हैं। इंटरनेशनल चाइल्ड राइट्स एजीओ के अनुसार 2011 मदर्स इंडेक्स में पिछले साल के अध्ययन के मुकाबले भारत 73वें स्थान से भी नीचे फिसल गया है। इसका कारण शिशुओं की मृत्यु दर और उनके रहन-सहन के बदतर हालात भी थे।
दरअसल, इस सर्वे में विकसित देश, कम विकसित देश और सबसे कम विकसित देशों की अलग-अलग सूची बनाई गई। इस सर्वे की रेटिंग का आधार माताओं और बच्चों का जीवनस्तर समेत उनका स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक स्तर आंका जाता है। इस इंडेक्स के अनुसार भारत ने सहारा रेगिस्तान में कुछ अफ्रीकी देशों जैसे बोत्सवाना (51), कैमरून (73), और हिंसाग्रस्त कांगो (74) से भी नीचे का क्रम पाया है। पाकिस्तान भी भारत से सिर्फ दो पायदान ही नीचे है। जबकि चीन भारत से कहीं अधिक बेहतर स्थिति यानी 18वें पायदान पर है। श्रीलंका 43वें स्थान पर है। वहीं बांग्लादेश को 40 सबसे कम विकसित देशों की श्रेणी में 18वां स्थान मिला है। माओं के इंडेक्स में अधिक विकसित देश जैसे नारवे सबसे ऊपर और उसके बाद ऑस्ट्रेलिया और आइइसलैंड हैं। इस रिपोर्ट में कुल 164 देशों का विश्लेषण किया गया है जिसमें अफगानिस्तान को मांओं के रहने के लिए सबसे दुष्कर स्थान बताया गया है। यानी अफगानिस्तान इस सूची में सबसे आखिर में है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में जच्चा-बच्चा की मृत्यु दर में कमी आने के बावजूद भारत उन बारह देशों में शामिल है जिसमें पांच साल से कम उम्र के दो-तिहाई बच्चों और माताओं की मौत हो जाती है। सर्वे के अनुसार भारत में केवल 53 फीसदी जन्म ही प्रशिक्षित दाइयों द्वारा कराया जाता है। महिलाओं की औसत उम्र 66 साल ही है। पांच साल से कम उम्र के प्रति हजार बच्चों में 66 बच्चों की मौत हो जाती है। वहीं पांच साल से कम उम्र के अत्यधिक कम वजन वाले बच्चों की तादाद 48 फीसदी है। सेव द चिल्डि्रन (इंडिया) के शिरीन मिलर ने बताया कि भारत में प्रति वर्ष प्रसव के दौरान 68 हजार महिलाओं को प्रसव के दौरान अत्यधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हर साल 20 लाख नवजातों की मौत हो जाती है। व्हाइट रिबन एलायंस फॉर सेफ मदरहुड की राष्ट्रीय संयोजक अपराजिता गोगई के अनुसार सरकारी योजनाओं को लागू करने की जवाबदेही के लिए समाज की सोच को बदलना होगा।

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