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Tuesday, May 3, 2011

शोर इन द सिटी

नई दिल्ली, ( प्रेमबाबू शर्मा ) :
इन दिनों लीक से हटकर फिल्में बन रही है उनके टाईटल तो अटपटे होते ही साथ ही कहानी भी कही वर्तमान की समस्याओं पर आधारित होते है। इस फिल्म की कहानी मुंबई की चाल में रहने वाला तिलक (तुषार कपूर) जो अंग्रेजी किताबों की पाइरेसी करता है जबकि अपनी पत्नी सपना (राधिका आप्टे) कीक नजर में वह एक प्रकाशक है। उसके दो लफंगे दोस्त रमेश (निखिल आडवाणी) और मंडूक (पिताबश त्रिपाठी) भी उसकी ही तरह अवैध कार्यो में लिप्त हैं। गणपति पूजा का समय है। ऐसे में एक प्रवासी भारतीय अभय (सेंधिल राममूर्ति) को कुछ गुंडे जबरन वसूली के लिए तंग करने लगते हैं। गुंडों को अभय से पांच लाख रुपये चाहिए। इसी बीच एक युवक सावन (सुदीप किशन) की जिंदगी भी परेशानी में हिचकोले खा रही है। सावन को क्रिकेट की अंडर-19 टीम में चुना जाना है, जिसके लिए एक सेलेक्टर उससे 10 लाख रुपये मांगता है। एक दिन जब रमेश और मंडूक को लोकल ट्रेन से एक बैग में बंदूक और बम मिलते हैं तो उनकी लाइफ में एक तूफान सा आ जाता है। टीपू (अमित मिस्त्री) की मदद से सभी एक बैंक लूटने का प्लान बनाते हैं।
फिल्म से सेन्ट्रल कैरेक्टर से तुषार कपूर को हटा भी दें तो यह फिल्म पिताबश त्रिपाठी (मंडूक) जैसे चरित्र कलाकार की वजह से देखनी चाहिए। तुषार को अपनी इस होम प्रोडक्शन में संजीदा अभिनय करने का अच्छा मौका मिला है और उसका उन्होंने फायदा भी उठाया है। एक बेबस व्यवसायी के रूप में सेंधिल राममूर्ति प्रभावित करते हैं। छुटभैया नेता अमित मिस्त्री और निखिल आडवाणी ने भी फिल्म में बांधे रखा है। प्रीति देसाई और राधिका आप्टे के रोल्स में ज्यादा गुंजाइश थी ही नहीं।अगर बात करे गीत-संगीत ता ेधीमे धीमे.. और साईबो गीत में रॉक फ्यूजन की झलक है, जो सीन्स के अनुसार मले खाते है। यहां तक कि बैकग्राउंड म्युजिक भी दमदार है
फिल्म के दो निर्देशक राज निदिमो और कृष्णा डीके की यह एक एक्सपेरिमेंटल फिल्म है जिसमें किरदारों के इंट्रोडक्शन में देरी अखरती है किन्तु, असल कहानी इंटरवल के बाद शुरु होती है।

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Tuesday, May 3, 2011

शोर इन द सिटी

नई दिल्ली, ( प्रेमबाबू शर्मा ) :
इन दिनों लीक से हटकर फिल्में बन रही है उनके टाईटल तो अटपटे होते ही साथ ही कहानी भी कही वर्तमान की समस्याओं पर आधारित होते है। इस फिल्म की कहानी मुंबई की चाल में रहने वाला तिलक (तुषार कपूर) जो अंग्रेजी किताबों की पाइरेसी करता है जबकि अपनी पत्नी सपना (राधिका आप्टे) कीक नजर में वह एक प्रकाशक है। उसके दो लफंगे दोस्त रमेश (निखिल आडवाणी) और मंडूक (पिताबश त्रिपाठी) भी उसकी ही तरह अवैध कार्यो में लिप्त हैं। गणपति पूजा का समय है। ऐसे में एक प्रवासी भारतीय अभय (सेंधिल राममूर्ति) को कुछ गुंडे जबरन वसूली के लिए तंग करने लगते हैं। गुंडों को अभय से पांच लाख रुपये चाहिए। इसी बीच एक युवक सावन (सुदीप किशन) की जिंदगी भी परेशानी में हिचकोले खा रही है। सावन को क्रिकेट की अंडर-19 टीम में चुना जाना है, जिसके लिए एक सेलेक्टर उससे 10 लाख रुपये मांगता है। एक दिन जब रमेश और मंडूक को लोकल ट्रेन से एक बैग में बंदूक और बम मिलते हैं तो उनकी लाइफ में एक तूफान सा आ जाता है। टीपू (अमित मिस्त्री) की मदद से सभी एक बैंक लूटने का प्लान बनाते हैं।
फिल्म से सेन्ट्रल कैरेक्टर से तुषार कपूर को हटा भी दें तो यह फिल्म पिताबश त्रिपाठी (मंडूक) जैसे चरित्र कलाकार की वजह से देखनी चाहिए। तुषार को अपनी इस होम प्रोडक्शन में संजीदा अभिनय करने का अच्छा मौका मिला है और उसका उन्होंने फायदा भी उठाया है। एक बेबस व्यवसायी के रूप में सेंधिल राममूर्ति प्रभावित करते हैं। छुटभैया नेता अमित मिस्त्री और निखिल आडवाणी ने भी फिल्म में बांधे रखा है। प्रीति देसाई और राधिका आप्टे के रोल्स में ज्यादा गुंजाइश थी ही नहीं।अगर बात करे गीत-संगीत ता ेधीमे धीमे.. और साईबो गीत में रॉक फ्यूजन की झलक है, जो सीन्स के अनुसार मले खाते है। यहां तक कि बैकग्राउंड म्युजिक भी दमदार है
फिल्म के दो निर्देशक राज निदिमो और कृष्णा डीके की यह एक एक्सपेरिमेंटल फिल्म है जिसमें किरदारों के इंट्रोडक्शन में देरी अखरती है किन्तु, असल कहानी इंटरवल के बाद शुरु होती है।

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