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Sunday, May 15, 2011

बेटियों को बचाने सड़कों पर उतरे लोग

खुशबू(ख़ुशी)इन्द्री :रविवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर ‘ग्लोबल वॉक फॉर इंडियाज मिसिंग गर्ल्स’ के बैनर तले कई लोग इक्कठा हुए। इन लोगों का मकसद था कन्या भ्रूण हत्या के ‍खिलाफ आवाज बुलंद करना।
भारत में हर दिन 2000 से ज्यादा लड़कियों को गर्भ में ही मार दिया जाता है और गाँवों से ज्यादा शहर के लोग इस अपराध में शामिल हैं। यहाँ तक की कई राज्य ऐसे हैं जहाँ लिंग अनुपात खतरनाक हद तक गड़बड़ा गया है। ऐसे में समाज से इस बुराई को खत्म करने का बीड़ा दुनिया के अलग-अलग देशों में एकजुट हुए आम लोगों ने उठाया।
इस रैली में हिस्सा लेने आईं ऊषा राय के अनुसार, 'दुनियाभर के मुकाबले यहाँ तक की एशियाई देशों में भी भारत ही ऐसा देश है जहाँ भ्रूण हत्या इस हद तक बढ़ चुकी है कि लिंगानुपात खतरनाक स्तर तक गड़बड़ा गया है। पढ़े-लिखे लोग जिनसे हमें उम्मीद है कि वो लड़कियों को बचाएँगे खुद इसमें शामिल हो रहे हैं।'

कानून बेअसर : सरकार ने भ्रूण हत्या के खिलाफ ‘प्री नेटल डायगनॉस्टिक टेकनीक्स एक्ट’ यानि पीएनडीटी एक्ट बनाया लेकिन यह कानून भी सख्ती से लागू नहीं हो पाया है। ‘ग्लोबल वॉक फॉर इंडियाज मिसिंग गर्ल्स’ की शुरुआत 2010 में हुई जब दिल्ली की मीतू खुराना ने अपनी निजी लड़ाई को आम लोगों से जोड़ने का फैसला किया।

मीतू ने बताया, 'जब मैं गर्भवती हुई तो मेरे पति ने मेरा गर्भ परीक्षण करवाया और बेटियाँ होने पर मुझसे कहा कि मैं गर्भपात करवा लूँ। मैंने अपनी बेटियों की हत्या करने से मना कर दिया और उनके खिलाफ पीएनडीटी एक्ट में केस दायर किया। हालाँकि मुझे अपनी लड़ाई में हर कदम मुश्किलों का समाना करना पड़ रहा है। ऐसे में मैंने आम लोगों को इस लड़ाई से जोड़ने का फैसला किया।'

निजी संघर्ष : इस साल मीतू और उनकी एक साथी नयना कापूटी ने भारत के अलावा भारतीयों की आबादी वाले दूसरे देशों में भी इस तरह की रैलियाँ आयोजित करने का फैसला किया।
मीतू कहती हैं, 'वॉशिंगटन डीसी, कनाडा, टोरंटो, युगांडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों के अलावा भारत के 17 शहरों में हमने इस तरह की रैलियों का आयोजन किया है। दुनियाभर के भारतीयों को इससे जोड़ने का मकसद है भारत सरकार को शर्मिंदा करना और व्यापक स्तर पर जागरूकता फैलाना।'बच्चे-बूढ़े नौजवान और बड़ी संख्या में पुरुषों ने भी इस रैली में हिस्सा लिया और रंग-बिरंगे पोस्टरों-बैनरों के जरिए बेटियों को बचाने का संदेश दिया।

बदलाव की उम्मीद : 'कैंपेन अगेंस्ट प्री बर्थ एलिमिनेशन आफ फीमेल्स' नामक संस्था से जुड़ी विजयलक्ष्मी नंदा कहती हैं, 'विदेशों में विकसित की जा रही तकनीकों का भारत में दुरुपयोग हो रहा है। भारत से लोग थाईलैंड में जाकर गर्भ परीक्षण करा रहे हैं। इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन मुद्दों को उठाना बेहद जरूरी है।'
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ मीतू खुराना की लड़ाई में शामिल होने के लिए इस मार्च का हिस्सा बने लोगों ने एक हस्ताक्षर अभियान भी चलाया है। देशभर से हजारों की संख्या में इक्कठा हुए इन हस्ताक्षरों को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के पास भेजा जाएगा, ताकि सरकार पर दबाव बने और पीएनडीटी जैसे कानूनों को असरदार बनाया जाए।
कुल मिलाकर दिल्ली, मुंबई, कनाडा या फिर युगांडा में उठ रही इन आवाजों का स्वर एक है कि औरतों के लिए मनाए जाने वाले जश्न और महिला दिवस तब तक अधूरे रहेंगे जब तक उनकी पैदाइश पर मातम मनाया जाएगा।


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Sunday, May 15, 2011

बेटियों को बचाने सड़कों पर उतरे लोग

खुशबू(ख़ुशी)इन्द्री :रविवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर ‘ग्लोबल वॉक फॉर इंडियाज मिसिंग गर्ल्स’ के बैनर तले कई लोग इक्कठा हुए। इन लोगों का मकसद था कन्या भ्रूण हत्या के ‍खिलाफ आवाज बुलंद करना।
भारत में हर दिन 2000 से ज्यादा लड़कियों को गर्भ में ही मार दिया जाता है और गाँवों से ज्यादा शहर के लोग इस अपराध में शामिल हैं। यहाँ तक की कई राज्य ऐसे हैं जहाँ लिंग अनुपात खतरनाक हद तक गड़बड़ा गया है। ऐसे में समाज से इस बुराई को खत्म करने का बीड़ा दुनिया के अलग-अलग देशों में एकजुट हुए आम लोगों ने उठाया।
इस रैली में हिस्सा लेने आईं ऊषा राय के अनुसार, 'दुनियाभर के मुकाबले यहाँ तक की एशियाई देशों में भी भारत ही ऐसा देश है जहाँ भ्रूण हत्या इस हद तक बढ़ चुकी है कि लिंगानुपात खतरनाक स्तर तक गड़बड़ा गया है। पढ़े-लिखे लोग जिनसे हमें उम्मीद है कि वो लड़कियों को बचाएँगे खुद इसमें शामिल हो रहे हैं।'

कानून बेअसर : सरकार ने भ्रूण हत्या के खिलाफ ‘प्री नेटल डायगनॉस्टिक टेकनीक्स एक्ट’ यानि पीएनडीटी एक्ट बनाया लेकिन यह कानून भी सख्ती से लागू नहीं हो पाया है। ‘ग्लोबल वॉक फॉर इंडियाज मिसिंग गर्ल्स’ की शुरुआत 2010 में हुई जब दिल्ली की मीतू खुराना ने अपनी निजी लड़ाई को आम लोगों से जोड़ने का फैसला किया।

मीतू ने बताया, 'जब मैं गर्भवती हुई तो मेरे पति ने मेरा गर्भ परीक्षण करवाया और बेटियाँ होने पर मुझसे कहा कि मैं गर्भपात करवा लूँ। मैंने अपनी बेटियों की हत्या करने से मना कर दिया और उनके खिलाफ पीएनडीटी एक्ट में केस दायर किया। हालाँकि मुझे अपनी लड़ाई में हर कदम मुश्किलों का समाना करना पड़ रहा है। ऐसे में मैंने आम लोगों को इस लड़ाई से जोड़ने का फैसला किया।'

निजी संघर्ष : इस साल मीतू और उनकी एक साथी नयना कापूटी ने भारत के अलावा भारतीयों की आबादी वाले दूसरे देशों में भी इस तरह की रैलियाँ आयोजित करने का फैसला किया।
मीतू कहती हैं, 'वॉशिंगटन डीसी, कनाडा, टोरंटो, युगांडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों के अलावा भारत के 17 शहरों में हमने इस तरह की रैलियों का आयोजन किया है। दुनियाभर के भारतीयों को इससे जोड़ने का मकसद है भारत सरकार को शर्मिंदा करना और व्यापक स्तर पर जागरूकता फैलाना।'बच्चे-बूढ़े नौजवान और बड़ी संख्या में पुरुषों ने भी इस रैली में हिस्सा लिया और रंग-बिरंगे पोस्टरों-बैनरों के जरिए बेटियों को बचाने का संदेश दिया।

बदलाव की उम्मीद : 'कैंपेन अगेंस्ट प्री बर्थ एलिमिनेशन आफ फीमेल्स' नामक संस्था से जुड़ी विजयलक्ष्मी नंदा कहती हैं, 'विदेशों में विकसित की जा रही तकनीकों का भारत में दुरुपयोग हो रहा है। भारत से लोग थाईलैंड में जाकर गर्भ परीक्षण करा रहे हैं। इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन मुद्दों को उठाना बेहद जरूरी है।'
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ मीतू खुराना की लड़ाई में शामिल होने के लिए इस मार्च का हिस्सा बने लोगों ने एक हस्ताक्षर अभियान भी चलाया है। देशभर से हजारों की संख्या में इक्कठा हुए इन हस्ताक्षरों को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के पास भेजा जाएगा, ताकि सरकार पर दबाव बने और पीएनडीटी जैसे कानूनों को असरदार बनाया जाए।
कुल मिलाकर दिल्ली, मुंबई, कनाडा या फिर युगांडा में उठ रही इन आवाजों का स्वर एक है कि औरतों के लिए मनाए जाने वाले जश्न और महिला दिवस तब तक अधूरे रहेंगे जब तक उनकी पैदाइश पर मातम मनाया जाएगा।


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