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Monday, April 25, 2011

अपराधियों को सामाजिक बनाने की दिशा में एक कदम

खुशबू(ख़ुशी)इन्द्री :
यूनिवर्सिटी कैम्पस में कंपनियों का रिक्रूटमेंट के लिए आना आम बात है, लेकिन ऐसा बहुत कम ही को मिलता है कि कंपनियाँ भर्ती के लिए जेल पहुँच जाएँ।ऐसा ही कुछ हुआ दिल्ली की तिहाड़ जेल में जहाँ पिछले दिनों कई बड़ी कम्पनियाँ कैदियों को नौकरियां देने के उदेश्य से पहुंची
दिल्ली की तिहाड़ जेल एशिया की सबसे बड़ी जेल है। पिछले हफ्ते 13,000 कैदियों वाली यह जेल किसी यूनिवर्सिटी जैसी लग रही थी, जब यहाँ आठ कंपनियाँ नए कर्मचारियों की तलाश में पहुँची। दो दिन तक इंटरव्यू चले और आखिरकार 40 कैदियों को नौकरियाँ मिल गईं।
जेल नंबर तीन के संदीप भटनागर इन में से एक हैं। 40 वर्षीय संदीप 2006 में मानव बम बनकर बैंक में डाका डालने की कोशिश में अंदर हुए। लेकिन अब सम्मान के साथ बाहर जा रहे हैं। हाथ में नौकरी है।
नौकरी मिलने से संदीप बेहद खुश है, 'मैं पाँच साल से यहाँ हूँ। अभी मेरे मामले की सुनवाई हो रही है। मुझ पर डकैती का मुकदमा चल रहा है। मैंने तीन-चार नौकरियों के लिए इंटरव्यू दिया और उनमें से दो मुझे मिल गईं। यह जानकर अच्छा लग रहा है कि जब मैं यहाँ से बाहर निकलूँगा तो पहले से ही हाथ में कुछ होगा। कम से कम अब मैं अपने भविष्य और अपने परिवार के बारे में सोच सकता हूँ। जेल प्रशासन ने यह बहुत अच्छा काम किया।'
अच्छे बर्ताव वालों को ही नौकरी : संदीप के ब्लॉक से कुछ ही दूर है अमित कुमार झा का ब्लॉक। अमित को अपहरण के आरोप में सात साल की सजा मिली है।
अब नौकरी मिल जाने पर अमित उम्मीद कर रहा है कि वो एक अच्छी जिंदगी बसर कर सकेगा, 'जेल में बैठकर हवाई किले बनाने का कोई फायदा नहीं है, क्योंकि बाहर जाकर जैसा आप चाहते हैं वैसा कुछ भी नहीं हो पाता। लेकिन जब मैंने कैम्पस इंटरव्यू के बारे में सुना तो मैं यकीन ही नहीं कर सका। मेरी सोच बदल गई। मुझे बताया गया था कि केवल वही लोग नौकरी के लिए अर्जी दे सकते हैं, जिनका बर्ताव अच्छा रहा है। जेल प्रशासन नहीं चाहता कि ऐसे लोगों को नौकरियाँ मिले जो दोबारा कोई अपराध कर सकते हैं।'
नौकरी पाने वाले अधिकतर कैदियों ने अपनी पढ़ाई जेल में ही पूरी की है। इनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जो पहले पढ़-लिख नहीं सकते थे और अब उनके हाथ में डिग्री है।
जेल में शिक्षा : इस सबसे बड़ी जेल में इस वक्त बहुत से पड़े लिखे युवा सज़ा काट रहे हैं! जबकि कुछ जेल में रहकर ही अपनी पढाई पूरी कर रहे हैं और उन्हें इसके लिए सहयोग किया जेल अधीक्षक एम् के द्विवेदी का जेल के संगीन अपराधो में संलिप्त इन लोगों को नागरिक बनाने के पीछे एमके दिवेदी की ही मेहनत है। दिवेदी बताते हैं कि किस तरह से इस सपने को साकार करने में सालों लग गए।
वह कहते हैं, 'जब मैं यहाँ सुप्रीटेंडेंट के तौर पर आया था, तब ज्यादातर कैदियों की पढ़ाई में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। तब मैंने सोचा कि जेल के बाहर अगर लोगों को पढ़ने के बाद नौकरियाँ मिलती हैं तो कंपनियाँ यहाँ क्यों नहीं आ सकती। फिर मैंने इस दिशा में काम करना शुरू किया। मुझे अपने स्टॉफ और कैदियों से पूरा समर्थन मिला। मैंने इस पर ध्यान दिया कि उन्हें अच्छी शिक्षा मिल सके। फिर हमने जानकारों से पता करना शुरू किया कि कंपनियों को किस चीज की तलाश होती है। अंत में हमने कंपनियों से संपर्क किया, उन्होंने भी रुचि दिखाई और हमें सफलता हासिल हुई।'
पहले इंटरव्यू की सफलता को देखते हो दिवेदी ने अभी से दूसरे राउंड की तैयारियाँ भी शुरू कर दी हैं। वो उम्मीद कर रहे हैं कि इस बार और भी कैदियों को नौकरियाँ मिल सकेंगी। इस तरह की पहल से तिहाड़, जेल से बढ़कर एक ऐसी जगह बन गई है जहाँ बिगड़े हुए लोग अंदर जाते हैं और उनमें से कई जब बाहर निकलते हैं तो एक पढ़े-लिखे और जिम्मेदार नागरिक होते हैं। अगर इस दिशा में और भी लोग सहयोग करें तो देश की विभिन्न जेलों में कैद समाज की मुख्य धारा से कट चुके कैदियों को एक सम्मान भरी जिन्दगी दी जा सकती है!

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Monday, April 25, 2011

अपराधियों को सामाजिक बनाने की दिशा में एक कदम

खुशबू(ख़ुशी)इन्द्री :
यूनिवर्सिटी कैम्पस में कंपनियों का रिक्रूटमेंट के लिए आना आम बात है, लेकिन ऐसा बहुत कम ही को मिलता है कि कंपनियाँ भर्ती के लिए जेल पहुँच जाएँ।ऐसा ही कुछ हुआ दिल्ली की तिहाड़ जेल में जहाँ पिछले दिनों कई बड़ी कम्पनियाँ कैदियों को नौकरियां देने के उदेश्य से पहुंची
दिल्ली की तिहाड़ जेल एशिया की सबसे बड़ी जेल है। पिछले हफ्ते 13,000 कैदियों वाली यह जेल किसी यूनिवर्सिटी जैसी लग रही थी, जब यहाँ आठ कंपनियाँ नए कर्मचारियों की तलाश में पहुँची। दो दिन तक इंटरव्यू चले और आखिरकार 40 कैदियों को नौकरियाँ मिल गईं।
जेल नंबर तीन के संदीप भटनागर इन में से एक हैं। 40 वर्षीय संदीप 2006 में मानव बम बनकर बैंक में डाका डालने की कोशिश में अंदर हुए। लेकिन अब सम्मान के साथ बाहर जा रहे हैं। हाथ में नौकरी है।
नौकरी मिलने से संदीप बेहद खुश है, 'मैं पाँच साल से यहाँ हूँ। अभी मेरे मामले की सुनवाई हो रही है। मुझ पर डकैती का मुकदमा चल रहा है। मैंने तीन-चार नौकरियों के लिए इंटरव्यू दिया और उनमें से दो मुझे मिल गईं। यह जानकर अच्छा लग रहा है कि जब मैं यहाँ से बाहर निकलूँगा तो पहले से ही हाथ में कुछ होगा। कम से कम अब मैं अपने भविष्य और अपने परिवार के बारे में सोच सकता हूँ। जेल प्रशासन ने यह बहुत अच्छा काम किया।'
अच्छे बर्ताव वालों को ही नौकरी : संदीप के ब्लॉक से कुछ ही दूर है अमित कुमार झा का ब्लॉक। अमित को अपहरण के आरोप में सात साल की सजा मिली है।
अब नौकरी मिल जाने पर अमित उम्मीद कर रहा है कि वो एक अच्छी जिंदगी बसर कर सकेगा, 'जेल में बैठकर हवाई किले बनाने का कोई फायदा नहीं है, क्योंकि बाहर जाकर जैसा आप चाहते हैं वैसा कुछ भी नहीं हो पाता। लेकिन जब मैंने कैम्पस इंटरव्यू के बारे में सुना तो मैं यकीन ही नहीं कर सका। मेरी सोच बदल गई। मुझे बताया गया था कि केवल वही लोग नौकरी के लिए अर्जी दे सकते हैं, जिनका बर्ताव अच्छा रहा है। जेल प्रशासन नहीं चाहता कि ऐसे लोगों को नौकरियाँ मिले जो दोबारा कोई अपराध कर सकते हैं।'
नौकरी पाने वाले अधिकतर कैदियों ने अपनी पढ़ाई जेल में ही पूरी की है। इनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जो पहले पढ़-लिख नहीं सकते थे और अब उनके हाथ में डिग्री है।
जेल में शिक्षा : इस सबसे बड़ी जेल में इस वक्त बहुत से पड़े लिखे युवा सज़ा काट रहे हैं! जबकि कुछ जेल में रहकर ही अपनी पढाई पूरी कर रहे हैं और उन्हें इसके लिए सहयोग किया जेल अधीक्षक एम् के द्विवेदी का जेल के संगीन अपराधो में संलिप्त इन लोगों को नागरिक बनाने के पीछे एमके दिवेदी की ही मेहनत है। दिवेदी बताते हैं कि किस तरह से इस सपने को साकार करने में सालों लग गए।
वह कहते हैं, 'जब मैं यहाँ सुप्रीटेंडेंट के तौर पर आया था, तब ज्यादातर कैदियों की पढ़ाई में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। तब मैंने सोचा कि जेल के बाहर अगर लोगों को पढ़ने के बाद नौकरियाँ मिलती हैं तो कंपनियाँ यहाँ क्यों नहीं आ सकती। फिर मैंने इस दिशा में काम करना शुरू किया। मुझे अपने स्टॉफ और कैदियों से पूरा समर्थन मिला। मैंने इस पर ध्यान दिया कि उन्हें अच्छी शिक्षा मिल सके। फिर हमने जानकारों से पता करना शुरू किया कि कंपनियों को किस चीज की तलाश होती है। अंत में हमने कंपनियों से संपर्क किया, उन्होंने भी रुचि दिखाई और हमें सफलता हासिल हुई।'
पहले इंटरव्यू की सफलता को देखते हो दिवेदी ने अभी से दूसरे राउंड की तैयारियाँ भी शुरू कर दी हैं। वो उम्मीद कर रहे हैं कि इस बार और भी कैदियों को नौकरियाँ मिल सकेंगी। इस तरह की पहल से तिहाड़, जेल से बढ़कर एक ऐसी जगह बन गई है जहाँ बिगड़े हुए लोग अंदर जाते हैं और उनमें से कई जब बाहर निकलते हैं तो एक पढ़े-लिखे और जिम्मेदार नागरिक होते हैं। अगर इस दिशा में और भी लोग सहयोग करें तो देश की विभिन्न जेलों में कैद समाज की मुख्य धारा से कट चुके कैदियों को एक सम्मान भरी जिन्दगी दी जा सकती है!

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