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Thursday, February 3, 2011

4 साल के मठ महंत?

वैशाली. बिहार के वैशाली जिले के पातेपुर में एक चार वर्षीय बालक मठ का महंत हो गया है। सुनने में अचरज भले लगे, लेकिन है सत्य। इस बालक की भक्ति देख बड़े-बड़े सोच में पड़ गए। भगवान से भक्ति ऐसी कि अब जिस मां-बाप ने जन्म दिया, उससे तक विरक्ति हो गयी।
ऐसे में मां ने अपने जिगर के लाल को साधु को दान में दे दिया। मां के पास कोई उपाय भी न बचा था। बालक हमेशा भक्ति में लीन रहता था। मां ममता देवी ने हार मान कर अपने बेटे को दरभंगा जिले के मनीगाछी-मकरंदा मौजे में राधागोविंद मठ के साधु को सौंप दिया। अब ये बालक यहां का महंत हो गया है। साथ ही कान्वेंट के साथ-साथ संस्कृत की शिक्षा भी ग्रहण कर रहा है।
क्या है मामला ?
चार वर्ष पहले बस्ती में श्रवण कुमार चौधरी और ममता देवी की कोख से यह विलक्षण बालक पैदा हुआ। माता-पिता के अनुसार एक दिन उसकी निगाह घर में लगी राम-सीता-लक्ष्मण की तस्वीर पर पड़ी। वहां उसकी नज़र ऐसी अटकी कि मानो वह उन्हीं का हो गया। इतना ही नहीं इस अदभुत बालक के मुंह से पहली बार तुलसीदास की तरह ही "सीताराम" शब्द निकला। माता-पिता को भनक लग गयी कि पुत्र वैरागी हो सकता है। पूजा-पाठ तक छोड़ डाला। लेकिन, बालक की भक्ति काम नहीं हुई। समय के साथ बढ़ते ही गयी। राम-सीता के दीवाने इस बालक को इलाके के लोग भी सीताराम कहने लगे।
महंत से किया अलग तो छोड़ दिया खाना-पीना
बालक के बारे में चर्चा इतनी फैली कि एक दिन उनके घर मकरंदामठ के महंत रामशंकर दास आये। बस यहीं से असली किस्सा शुरू हुआ। बालक ने जैसे ही महंत को देख, उनसे ऐसा चिपका कि अब कोई उसे छुड़ा ही नहीं पाया। हालांकि, जबर्दस्ती सबने मिल उसे महंत से अलग किया। लेकिन यह क्या? महंत से अलग होते ही उसने खाना, पीना, बोलना सब छोड़ दिया।
बालक की हालत ख़राब होते देख माता-पिता ने कठोर निर्णय लेते हुए महंत रामशंकर दास को बुला बालक उन्हें सौंप दिया। महंत भी इस छोटे से बालक की भक्ति देख नतमस्तक हो गये। एक दिन दीक्षा देकर उसे मठ के महंत की गद्दी सौंप दी गयी और खुद संरक्षक बन गए।

- भास्कर से

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Thursday, February 3, 2011

4 साल के मठ महंत?

वैशाली. बिहार के वैशाली जिले के पातेपुर में एक चार वर्षीय बालक मठ का महंत हो गया है। सुनने में अचरज भले लगे, लेकिन है सत्य। इस बालक की भक्ति देख बड़े-बड़े सोच में पड़ गए। भगवान से भक्ति ऐसी कि अब जिस मां-बाप ने जन्म दिया, उससे तक विरक्ति हो गयी।
ऐसे में मां ने अपने जिगर के लाल को साधु को दान में दे दिया। मां के पास कोई उपाय भी न बचा था। बालक हमेशा भक्ति में लीन रहता था। मां ममता देवी ने हार मान कर अपने बेटे को दरभंगा जिले के मनीगाछी-मकरंदा मौजे में राधागोविंद मठ के साधु को सौंप दिया। अब ये बालक यहां का महंत हो गया है। साथ ही कान्वेंट के साथ-साथ संस्कृत की शिक्षा भी ग्रहण कर रहा है।
क्या है मामला ?
चार वर्ष पहले बस्ती में श्रवण कुमार चौधरी और ममता देवी की कोख से यह विलक्षण बालक पैदा हुआ। माता-पिता के अनुसार एक दिन उसकी निगाह घर में लगी राम-सीता-लक्ष्मण की तस्वीर पर पड़ी। वहां उसकी नज़र ऐसी अटकी कि मानो वह उन्हीं का हो गया। इतना ही नहीं इस अदभुत बालक के मुंह से पहली बार तुलसीदास की तरह ही "सीताराम" शब्द निकला। माता-पिता को भनक लग गयी कि पुत्र वैरागी हो सकता है। पूजा-पाठ तक छोड़ डाला। लेकिन, बालक की भक्ति काम नहीं हुई। समय के साथ बढ़ते ही गयी। राम-सीता के दीवाने इस बालक को इलाके के लोग भी सीताराम कहने लगे।
महंत से किया अलग तो छोड़ दिया खाना-पीना
बालक के बारे में चर्चा इतनी फैली कि एक दिन उनके घर मकरंदामठ के महंत रामशंकर दास आये। बस यहीं से असली किस्सा शुरू हुआ। बालक ने जैसे ही महंत को देख, उनसे ऐसा चिपका कि अब कोई उसे छुड़ा ही नहीं पाया। हालांकि, जबर्दस्ती सबने मिल उसे महंत से अलग किया। लेकिन यह क्या? महंत से अलग होते ही उसने खाना, पीना, बोलना सब छोड़ दिया।
बालक की हालत ख़राब होते देख माता-पिता ने कठोर निर्णय लेते हुए महंत रामशंकर दास को बुला बालक उन्हें सौंप दिया। महंत भी इस छोटे से बालक की भक्ति देख नतमस्तक हो गये। एक दिन दीक्षा देकर उसे मठ के महंत की गद्दी सौंप दी गयी और खुद संरक्षक बन गए।

- भास्कर से

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