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Wednesday, December 8, 2010

एक बैचलर की दास्तान

अलकेमिस्ट के राइटर पाअलो कोएलो ने लिखा था, कह सकते हैं कि दोहराया था कि कुछ भी, कुछ भी लिखा, कहा, सोचा बेकार नहीं जाता। तो आज मैं आपको अपना एक खत पढ़ने के लिए दे रहा हूं। हजारों आंखें इसे पढ़ेंगी, तो मेरी आंखों की जलन कुछ कम होगी। मुझे लगेगा कि जमीर के जख्म कुछ भर गए।
मेरी शादी होने वाली है। आठ मार्च को। तमाम दोस्त आएंगे, कुछ रिश्तेदार भी आएंगे। मगर कुछ लोग हैं, जो नहीं आएंगे। ये सब इतने दूर चले गए हैं कि अब उन तक आवाज नहीं पहुंच पाती। इन सबको मैं अपनी शादी में शरीक होने का न्योता दे रहा हूं।
उन्होंने एक बार मेरे ऊपर एक निबंध भी लिखा था। बावला था, उस दिन ऐसे घूम रहा था, गोया मेरे ऊपर सिनेमा बना हो या पूरी की पूरी किताब लिख दी गई हो। फिर वक्त बीतने के साथ उनका साथ छूट गया। स्कूल बदल गया, शहर बदल गया। अब तो किसी से, किसी से भी उनकी खबर भी नहीं मिलती। वो मेरी शादी में आते, तो सबसे पहले क्या कहते। कुछ कहते भी या पीठ पर एक घूंसा जमाकर मुस्करा देते।
दसवीं के बाद दूसरे स्कूल में आ गया। बारहवीं में था और बोर्डिंग पहुंचा ही था कि हॉट न्यूज मिली। इंग्लिश में एक नई मैम आई हैं। देखने में कैसी हैं, हमममम.. अच्छी हैं, तुझे पसंद आएंगी। अच्छा पढ़ाती कैसा हैं, कुछ डिफरेंट हैं, तू वेट नहीं कर सकता कल तक क्लास की।
अगले दिन उन्हें देखा। हमारी बात, नहीं वो बात नहीं बहस या कहें झगड़ा जैसा कुछ था, कुछ ऐसे शुरू हुई कि औपचारिकता फुर्र हो गई, दूसरी मुलाकात से ही। उसके बाद हम खूब बात करते। मैं स्कूल की असेंबली का स्पीकर था और दोस्त कहते हैं कि स्पीच बहुत अच्छी देता था। तो हॉस्टल का एक जूनियर शायद मेरा फैन बन गया था। रोज सुबह मुझे एक गुलाब दे जाता, मुस्कराता हुआ। मैं वो गुलाब ले जाकर चेतना मैम को दे देता। हां, यही नाम था उनका, था नहीं है, होगा, चेतना। मैम उस फूल को देवी मां के चरणों में रख देतीं और मुस्कराकर आशीर्वाद देतीं। फिर एक रोज मैं किसी बात पर उनसे गुस्सा हो गया, तो उस दिन वो मेरे लिए फूल लेकर आईं।
जब त्योहार होता, तो मेरे लिए मिठाई लातीं और मुझे अच्छा बच्च बनने और पढ़ाई में ध्यान लगाने के लिए खूब समझातीं। मैम मुझे बहुत अच्छी-सी, प्यारी-सी, सुंदर-सी और अपनी-सी लगती थीं। मेरी कोई बहन नहीं थी। जब पहली छुट्टी में घर आया, तो मां को बताया आप उनसे जरूर मिलना और मेरी शादी में बहन के सब काम वही करेंगी। फिर स्कूल के बाद कुछ दिन उनके टच में रहा और फिर अपने अक्खड़ स्वभाव, अधिकार भाव या पता नहीं किस बात पर झगड़ गया। बाद में सिर्फ खबर मिली कि उनकी शादी हो गई है। एक बार फोन पर बात भी हुई, मगर अब वहां कुछ भी नहीं बचा था। गुंजन से कई बार आंखों में आंसू भरकर कहा है मैंने, कि सिर्फ एक बार उनसे माफी मांगना चाहता हूं। अब तक ये मुमकिन नहीं हुआ।
और इस कड़ी में आखिरी शख्स, जिसका साथ सबसे ताजा मगर सबसे कम वक्त के लिए रहा। वो मेरे साथ दिल्ली के एक इंस्टिट्यूट में पढ़ती थी। एक दम शांत, इतनी शांत कि लगता मदर टेरेसा युवा होने पर ऐसी ही करुण और शांत दिखती होंगी। मैं वाचाल, अति सक्रिय और स्वच्छंद-सा, वो सुलझी और उलझी भी तो बहुत गूढ़ बातों में। हम यूं ही किसी सिलसिले में मिले और उसने मिलने के आधे घंटे के अंदर ही कह दिया कि तुम अपनी भाषा कब बोलोगे। मेरे अंदर ऐन उसी वक्त कुछ पत्तियां झड़ीं, कुछ पानी गला। ऐसे तो कभी किसी ने नहीं झकझोरा। गुंजन को बताया, तो उसकी आंखों में मेरे लिए खुशी थी।
पूजा के साथ मैं वॉक पर जाता, दुनिया जहान की बातें करता और वो कभी चुपके-से सूरज की तरफ देखती मेरी तस्वीर खींच लेती। इस दौरान इंस्टिट्यूट में तमाम बकवास हुई, मगर मैंने कहा न वो निष्पाप और करुण थी, इसलिए हमें कभी अपनी दोस्ती के दरमियान ये सुनने की जरूरत नहीं पड़ी। और सबसे बढ़कर मेरी सबसे अच्छी दोस्त गुंजन समझती थी कि हम किस तरह की बॉन्डिंग रखते थे। मगर कोर्स पूरा होने के बाद ये रिश्ता भी खत्म हो गया। इस बार मेरा अक्खड़पन वजह नहीं थीं। बात क्या थी, ये जानने का अब तक इंतजार कर रहा हूं। एक बार मिला भी, तो वहां बीता हुए कल की परछाई भी नहीं थी। बहुत वक्त लगा उस बार खुद को यह कहने में, कि इस बार तुमने अपनों को नहीं गंवाया।
आज यहां तुम सबको एक साथ बुला रहा हूं। देखो, मैंने एक पवित्र रिश्ते को जीने की शुरुआत कर दी है। देखो, मैं बुरा बच्चा, बुरा इंसान नहीं हूं। देखो, मैं अभी भी अपनी भाषा नहीं बोल पाता, मगर उसकी कोशिश कर रहा हूं।

(भास्कर से )
सबसे पहले मेरे बोर्डिग स्कूल के हिंदी टीचर सुमन जी। भारी भरकम काया थी उनकी, आवाज और भी भारी। पहनावा भी कुछ अलग और रौबीला-सा था। स्कूल खत्म होने पर आखिरी में जन-गण-मन गाने का रिवाज था। एक दिन उन्होंने आनंद मठ पर जोरदार भाषण दिया और अगले दिन से हमने बरसों पुरानी रवायत बदलकर वंदे मातरम गाया। वही थे, जिन्होंने जिंदगी को शब्दों के जरिए महसूसने की तमीज सिखाई थी।

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Wednesday, December 8, 2010

एक बैचलर की दास्तान

अलकेमिस्ट के राइटर पाअलो कोएलो ने लिखा था, कह सकते हैं कि दोहराया था कि कुछ भी, कुछ भी लिखा, कहा, सोचा बेकार नहीं जाता। तो आज मैं आपको अपना एक खत पढ़ने के लिए दे रहा हूं। हजारों आंखें इसे पढ़ेंगी, तो मेरी आंखों की जलन कुछ कम होगी। मुझे लगेगा कि जमीर के जख्म कुछ भर गए।
मेरी शादी होने वाली है। आठ मार्च को। तमाम दोस्त आएंगे, कुछ रिश्तेदार भी आएंगे। मगर कुछ लोग हैं, जो नहीं आएंगे। ये सब इतने दूर चले गए हैं कि अब उन तक आवाज नहीं पहुंच पाती। इन सबको मैं अपनी शादी में शरीक होने का न्योता दे रहा हूं।
उन्होंने एक बार मेरे ऊपर एक निबंध भी लिखा था। बावला था, उस दिन ऐसे घूम रहा था, गोया मेरे ऊपर सिनेमा बना हो या पूरी की पूरी किताब लिख दी गई हो। फिर वक्त बीतने के साथ उनका साथ छूट गया। स्कूल बदल गया, शहर बदल गया। अब तो किसी से, किसी से भी उनकी खबर भी नहीं मिलती। वो मेरी शादी में आते, तो सबसे पहले क्या कहते। कुछ कहते भी या पीठ पर एक घूंसा जमाकर मुस्करा देते।
दसवीं के बाद दूसरे स्कूल में आ गया। बारहवीं में था और बोर्डिंग पहुंचा ही था कि हॉट न्यूज मिली। इंग्लिश में एक नई मैम आई हैं। देखने में कैसी हैं, हमममम.. अच्छी हैं, तुझे पसंद आएंगी। अच्छा पढ़ाती कैसा हैं, कुछ डिफरेंट हैं, तू वेट नहीं कर सकता कल तक क्लास की।
अगले दिन उन्हें देखा। हमारी बात, नहीं वो बात नहीं बहस या कहें झगड़ा जैसा कुछ था, कुछ ऐसे शुरू हुई कि औपचारिकता फुर्र हो गई, दूसरी मुलाकात से ही। उसके बाद हम खूब बात करते। मैं स्कूल की असेंबली का स्पीकर था और दोस्त कहते हैं कि स्पीच बहुत अच्छी देता था। तो हॉस्टल का एक जूनियर शायद मेरा फैन बन गया था। रोज सुबह मुझे एक गुलाब दे जाता, मुस्कराता हुआ। मैं वो गुलाब ले जाकर चेतना मैम को दे देता। हां, यही नाम था उनका, था नहीं है, होगा, चेतना। मैम उस फूल को देवी मां के चरणों में रख देतीं और मुस्कराकर आशीर्वाद देतीं। फिर एक रोज मैं किसी बात पर उनसे गुस्सा हो गया, तो उस दिन वो मेरे लिए फूल लेकर आईं।
जब त्योहार होता, तो मेरे लिए मिठाई लातीं और मुझे अच्छा बच्च बनने और पढ़ाई में ध्यान लगाने के लिए खूब समझातीं। मैम मुझे बहुत अच्छी-सी, प्यारी-सी, सुंदर-सी और अपनी-सी लगती थीं। मेरी कोई बहन नहीं थी। जब पहली छुट्टी में घर आया, तो मां को बताया आप उनसे जरूर मिलना और मेरी शादी में बहन के सब काम वही करेंगी। फिर स्कूल के बाद कुछ दिन उनके टच में रहा और फिर अपने अक्खड़ स्वभाव, अधिकार भाव या पता नहीं किस बात पर झगड़ गया। बाद में सिर्फ खबर मिली कि उनकी शादी हो गई है। एक बार फोन पर बात भी हुई, मगर अब वहां कुछ भी नहीं बचा था। गुंजन से कई बार आंखों में आंसू भरकर कहा है मैंने, कि सिर्फ एक बार उनसे माफी मांगना चाहता हूं। अब तक ये मुमकिन नहीं हुआ।
और इस कड़ी में आखिरी शख्स, जिसका साथ सबसे ताजा मगर सबसे कम वक्त के लिए रहा। वो मेरे साथ दिल्ली के एक इंस्टिट्यूट में पढ़ती थी। एक दम शांत, इतनी शांत कि लगता मदर टेरेसा युवा होने पर ऐसी ही करुण और शांत दिखती होंगी। मैं वाचाल, अति सक्रिय और स्वच्छंद-सा, वो सुलझी और उलझी भी तो बहुत गूढ़ बातों में। हम यूं ही किसी सिलसिले में मिले और उसने मिलने के आधे घंटे के अंदर ही कह दिया कि तुम अपनी भाषा कब बोलोगे। मेरे अंदर ऐन उसी वक्त कुछ पत्तियां झड़ीं, कुछ पानी गला। ऐसे तो कभी किसी ने नहीं झकझोरा। गुंजन को बताया, तो उसकी आंखों में मेरे लिए खुशी थी।
पूजा के साथ मैं वॉक पर जाता, दुनिया जहान की बातें करता और वो कभी चुपके-से सूरज की तरफ देखती मेरी तस्वीर खींच लेती। इस दौरान इंस्टिट्यूट में तमाम बकवास हुई, मगर मैंने कहा न वो निष्पाप और करुण थी, इसलिए हमें कभी अपनी दोस्ती के दरमियान ये सुनने की जरूरत नहीं पड़ी। और सबसे बढ़कर मेरी सबसे अच्छी दोस्त गुंजन समझती थी कि हम किस तरह की बॉन्डिंग रखते थे। मगर कोर्स पूरा होने के बाद ये रिश्ता भी खत्म हो गया। इस बार मेरा अक्खड़पन वजह नहीं थीं। बात क्या थी, ये जानने का अब तक इंतजार कर रहा हूं। एक बार मिला भी, तो वहां बीता हुए कल की परछाई भी नहीं थी। बहुत वक्त लगा उस बार खुद को यह कहने में, कि इस बार तुमने अपनों को नहीं गंवाया।
आज यहां तुम सबको एक साथ बुला रहा हूं। देखो, मैंने एक पवित्र रिश्ते को जीने की शुरुआत कर दी है। देखो, मैं बुरा बच्चा, बुरा इंसान नहीं हूं। देखो, मैं अभी भी अपनी भाषा नहीं बोल पाता, मगर उसकी कोशिश कर रहा हूं।

(भास्कर से )
सबसे पहले मेरे बोर्डिग स्कूल के हिंदी टीचर सुमन जी। भारी भरकम काया थी उनकी, आवाज और भी भारी। पहनावा भी कुछ अलग और रौबीला-सा था। स्कूल खत्म होने पर आखिरी में जन-गण-मन गाने का रिवाज था। एक दिन उन्होंने आनंद मठ पर जोरदार भाषण दिया और अगले दिन से हमने बरसों पुरानी रवायत बदलकर वंदे मातरम गाया। वही थे, जिन्होंने जिंदगी को शब्दों के जरिए महसूसने की तमीज सिखाई थी।

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