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Wednesday, December 8, 2010

बेटी के जन्म पर होता है जश्न

मध्यप्रदेश/हरदा. पुरूष प्रधान और सभ्य समाज में भले ही बच्चों में लैंगिक आधार पर भेदभाव की खबरें सामने आती रहती हैं लेकिन जिले में पिछली पंक्ति में खड़े निर्धन कोरकू आदिवासी समाज के लोग आज भी बेटी के जन्म पर खुशियों के गीत गाकर अपने को गौरवांवित महसूस करते हैं।
इस समाज में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। कोरकू आदिवासियों की जीवन शैली के विभिन्न पहलुओं पर शोध कार्य कर रहे प्रोफेसर धर्मेन्द्र पारे ने बताया कि कोरकू आदिवासी समाज में बहुत हद तक स्त्री-पुरूषों में समानता देखने को मिलती है। परिवार में बेटी के जन्म पर हर्ष की अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। इस समाज में बाल विवाह प्रथा नहीं है। इनमें विवाह आमतौर पर किशोर अवस्था को पार करने के बाद ही होते हैं।
उन्होंने बताया कि जंगलों और पहाड़ी क्षेत्न में निवास करने वाले कोरकू आदिवासी समाज में गोत्न भी वनस्पति, पहाड़, मिट्टी, जंगल और फल के नाम पर होते हैं। इस संबंध में कहा जाता है कि प्राचीन समय में प्रलय की स्थिति निर्मित होने पर कोरकू आदिवासी समाज के लोग जंगल और पहाड़ी क्षेत्न में जहां जगह मिली वही छुप गए और उसी स्थान के नाम पर उनका गोत्न हो गया।
वधु को दिया जाता दहेज
विवाह के लिए शुक्रवार का दिन लगभग निश्चित माना जाता है और विवाह में वधू पक्ष में कभी भी दीनता का बोध नहीं होता है क्योंकि विवाह में दहेज वर पक्ष की तरफ से दिया जाता है। वधू पक्ष को वर पक्ष की तरफ से दहेज के रूप में बैल,अनाज और शादी का खर्च दिया जाता है। उन्होंने बताया कि विवाह के लिए जब वर पक्ष बारात लेकर वधु के घर पर जाता है तो पूरे बाराती अनुशासित होकर शालीनता से व्यवहार करते हंै। बारात आने के बाद भी वधु पक्ष को ज्यादा महत्व दिया जाता है।

(भास्कर से)

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Wednesday, December 8, 2010

बेटी के जन्म पर होता है जश्न

मध्यप्रदेश/हरदा. पुरूष प्रधान और सभ्य समाज में भले ही बच्चों में लैंगिक आधार पर भेदभाव की खबरें सामने आती रहती हैं लेकिन जिले में पिछली पंक्ति में खड़े निर्धन कोरकू आदिवासी समाज के लोग आज भी बेटी के जन्म पर खुशियों के गीत गाकर अपने को गौरवांवित महसूस करते हैं।
इस समाज में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। कोरकू आदिवासियों की जीवन शैली के विभिन्न पहलुओं पर शोध कार्य कर रहे प्रोफेसर धर्मेन्द्र पारे ने बताया कि कोरकू आदिवासी समाज में बहुत हद तक स्त्री-पुरूषों में समानता देखने को मिलती है। परिवार में बेटी के जन्म पर हर्ष की अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। इस समाज में बाल विवाह प्रथा नहीं है। इनमें विवाह आमतौर पर किशोर अवस्था को पार करने के बाद ही होते हैं।
उन्होंने बताया कि जंगलों और पहाड़ी क्षेत्न में निवास करने वाले कोरकू आदिवासी समाज में गोत्न भी वनस्पति, पहाड़, मिट्टी, जंगल और फल के नाम पर होते हैं। इस संबंध में कहा जाता है कि प्राचीन समय में प्रलय की स्थिति निर्मित होने पर कोरकू आदिवासी समाज के लोग जंगल और पहाड़ी क्षेत्न में जहां जगह मिली वही छुप गए और उसी स्थान के नाम पर उनका गोत्न हो गया।
वधु को दिया जाता दहेज
विवाह के लिए शुक्रवार का दिन लगभग निश्चित माना जाता है और विवाह में वधू पक्ष में कभी भी दीनता का बोध नहीं होता है क्योंकि विवाह में दहेज वर पक्ष की तरफ से दिया जाता है। वधू पक्ष को वर पक्ष की तरफ से दहेज के रूप में बैल,अनाज और शादी का खर्च दिया जाता है। उन्होंने बताया कि विवाह के लिए जब वर पक्ष बारात लेकर वधु के घर पर जाता है तो पूरे बाराती अनुशासित होकर शालीनता से व्यवहार करते हंै। बारात आने के बाद भी वधु पक्ष को ज्यादा महत्व दिया जाता है।

(भास्कर से)

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