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Sunday, February 13, 2011

ग्लोबल वार्मिग का खतरा गंभीर समस्या

आबादी के लिहाज से खाद्यान्न की बढ़ती मांग, घटता जोत का दायरा और मौसम की अनियमितताएं, इन सब समस्याओं के बीच वैज्ञानिक शोध चरम पर हैं। उत्पादन को बरकरार रखने के लिए जहांसाधन संरक्षण की विधियां अपनाने पर जोर दिया जा रहा है, वहीं गेहूं व धान की ऐसी किस्में इजाद करने पर अनुसंधान चल रहा है जिनमें प्रकाश विश्लेषण की क्षमता अधिक हो। गेहूं व चावल की फसल मक्का की तर्ज पर लेने के लिए शोध किया जा रहा है ताकि कम पानी खर्च कर अच्छी फसल ली जा सके। उत्पादन बढ़ाने के लिए सभी संसाधन संचय की क्रियाओं के साथ-साथ कृषि आयातों की र्यक्षमता बढ़ाते हुए नई किस्मों को इजाद करके उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है ताकि अगले 50 वर्ष तक खाद्यान्न की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके।
अंतरराष्ट्रीय मक्का एवं गेहूं अनुसंधान संस्थान मैक्सिको के महानिदेशक डॉ. थोमस लंपकिन व अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान केंद्र फिलीपींस के महानिदेशक डॉ. रोबर्ट जिगलर ने सीएसएसआरआइ के विश्राम गृह में पत्रकारों से बातचीत की। दोनों वैज्ञानिकों ने विश्व में बढ़ते ग्लोबल वार्मिग के खतरे को गंभीर समस्या बताते हुए कहा कि उत्पादन को बरकरार रखने के लिए वैज्ञानिक शोध जारी हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह अब रात का तापमान बढ़ रहा है और अगले दस वर्षो में तापमान क्या हो सकता है इसी को ध्यान में रखते हुए गेहूं व धान की नई किस्में इजाद करने पर काम शुरू कर दिया गया है। ऐसी किस्में तैयार करने पर काम शुरू किया गया है जो तापमान को सहन कर सकें।
भारत में बढ़ती आबादी व जोत के घटते दायरे के चलते खाद्यान्न की जरूरतों की पूर्ति पर उन्होंने कहा कि खाद्यान्न उत्पादन में भारत अच्छा रोल प्ले करता है। वैज्ञानिक विधियां अपनाकर यहां प्रति हेक्टेयर उत्पादन को और बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने भारतीय कृषि प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन पर जोर दिया। खाद के संतुलित प्रयोग, जीरो टिलेज व सीधी बिजाई की विधियां अपनाने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जिस तरह खाद्यान्न की मांग बढ़ना, जमीन का बंटवारे के बाद घटना, पानी व लेबर की समस्या और वातावरण की अनियमितताओं को लेकर यहां के किसानों के सामने जरूरत के अनुसार पैदावार करना चुनौती बन सकता है। दोनों वैज्ञानिकों ने सीरियल सिस्टम्स इनिशिएटिव फॉर साउथ एशिया परियोजना के तहत चल रही गतिविधियों का किसानों के खेत पर जाकर जायजा लिया। तरावड़ी में सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचुरल रिसोर्सिज एंड एंपावरिंग रूरल यूथ के सदस्यों से वैज्ञानिक रूबरू हुए। इस मौके पर सीसा परियोजना के हरियाणा हब समन्वयक डॉ. बीआर कांबोज, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राज गुप्ता, डॉ. एमएल जाट, डॉ. पीसी शर्मा व सीएसएसआरआइ के निदेशक डॉ. डीके शर्मा मौजूद रहे

-- विजय काम्बोज
इन्द्री (करनाल)
मोब.: 09416281168

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Sunday, February 13, 2011

ग्लोबल वार्मिग का खतरा गंभीर समस्या

आबादी के लिहाज से खाद्यान्न की बढ़ती मांग, घटता जोत का दायरा और मौसम की अनियमितताएं, इन सब समस्याओं के बीच वैज्ञानिक शोध चरम पर हैं। उत्पादन को बरकरार रखने के लिए जहांसाधन संरक्षण की विधियां अपनाने पर जोर दिया जा रहा है, वहीं गेहूं व धान की ऐसी किस्में इजाद करने पर अनुसंधान चल रहा है जिनमें प्रकाश विश्लेषण की क्षमता अधिक हो। गेहूं व चावल की फसल मक्का की तर्ज पर लेने के लिए शोध किया जा रहा है ताकि कम पानी खर्च कर अच्छी फसल ली जा सके। उत्पादन बढ़ाने के लिए सभी संसाधन संचय की क्रियाओं के साथ-साथ कृषि आयातों की र्यक्षमता बढ़ाते हुए नई किस्मों को इजाद करके उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है ताकि अगले 50 वर्ष तक खाद्यान्न की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके।
अंतरराष्ट्रीय मक्का एवं गेहूं अनुसंधान संस्थान मैक्सिको के महानिदेशक डॉ. थोमस लंपकिन व अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान केंद्र फिलीपींस के महानिदेशक डॉ. रोबर्ट जिगलर ने सीएसएसआरआइ के विश्राम गृह में पत्रकारों से बातचीत की। दोनों वैज्ञानिकों ने विश्व में बढ़ते ग्लोबल वार्मिग के खतरे को गंभीर समस्या बताते हुए कहा कि उत्पादन को बरकरार रखने के लिए वैज्ञानिक शोध जारी हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह अब रात का तापमान बढ़ रहा है और अगले दस वर्षो में तापमान क्या हो सकता है इसी को ध्यान में रखते हुए गेहूं व धान की नई किस्में इजाद करने पर काम शुरू कर दिया गया है। ऐसी किस्में तैयार करने पर काम शुरू किया गया है जो तापमान को सहन कर सकें।
भारत में बढ़ती आबादी व जोत के घटते दायरे के चलते खाद्यान्न की जरूरतों की पूर्ति पर उन्होंने कहा कि खाद्यान्न उत्पादन में भारत अच्छा रोल प्ले करता है। वैज्ञानिक विधियां अपनाकर यहां प्रति हेक्टेयर उत्पादन को और बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने भारतीय कृषि प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन पर जोर दिया। खाद के संतुलित प्रयोग, जीरो टिलेज व सीधी बिजाई की विधियां अपनाने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जिस तरह खाद्यान्न की मांग बढ़ना, जमीन का बंटवारे के बाद घटना, पानी व लेबर की समस्या और वातावरण की अनियमितताओं को लेकर यहां के किसानों के सामने जरूरत के अनुसार पैदावार करना चुनौती बन सकता है। दोनों वैज्ञानिकों ने सीरियल सिस्टम्स इनिशिएटिव फॉर साउथ एशिया परियोजना के तहत चल रही गतिविधियों का किसानों के खेत पर जाकर जायजा लिया। तरावड़ी में सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचुरल रिसोर्सिज एंड एंपावरिंग रूरल यूथ के सदस्यों से वैज्ञानिक रूबरू हुए। इस मौके पर सीसा परियोजना के हरियाणा हब समन्वयक डॉ. बीआर कांबोज, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राज गुप्ता, डॉ. एमएल जाट, डॉ. पीसी शर्मा व सीएसएसआरआइ के निदेशक डॉ. डीके शर्मा मौजूद रहे

-- विजय काम्बोज
इन्द्री (करनाल)
मोब.: 09416281168

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