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Tuesday, February 15, 2011

दिल्ली में भी स्टिंगर्स की मनमानी और चैनलों की उन पर बढ़ती निर्भरता

नई दिल्ली, योगराज शर्मा। टीवी चैनलों की बाढ के साथ ही खबरों की मांग भी बढ़ी है। ज्यादातर चैनलों में स्टाफ रिपोर्टरों के पास ज्यादा खबरें निकालने के लिए दिल्ली में संपर्कों की कमी है। लिहाजा आज ज्यादातर चैनल दिल्ली की खबरों के लिए स्टिंगर्स पर ही ज्यादा निर्भर हो गए हैं। चाहे वो स्टार न्यूज हो, आज तक, आईबीएन7, सहारा समय या फिर जी नेटवर्क। दिल्ली में अगर सही स्टिंगर्स की संख्या की बात करें तो आंकड़ा दर्जन भर आ कर ही अटक जाता है। फिर शुरु हो जाता है मजबूरी का खेल... एक स्टिंगर दो से तीन चैनलों के लिए काम करता है। एसाइन्मेंट डेस्क की भी मजबूरी है कि वो दूसरे चैनलों पर चलने वाली खबरों को ही अपने स्टिंगर से मंगवाना पड़ता है। और कोई चारा जो नहीं है।
चूंकि ज्यादातर चैनल नोएडा में है तो दक्षिणी और पूर्वी दिल्ली में उनके रिपोर्टरों की पहुंच आसान है। जब बारी आती है उत्तरी और पश्चिमी दिल्ली और खास तौर पर बाहरी दिल्ली की तो लगभग सभी चैनल स्टिंगर्स पर निर्भर है। विजुअल्स् जो चाहिएं। स्टिंगर ने गुटबाजी कर ली है। तीन चार स्टिंगर्स का गुट ज्यादातर बड़े न्यूज चैनलों के लिए काम कर रहा है। जो खबर आजतक पर चलेगी, वही विजुअल आपको इंडिया टीवी पर भी दिखेंगे। वही हूबहू विजुअल्स आपको स्टार टीवी, सहारा समय और जी न्यूज पर भी देखने को मिल जाएगे। कारण ये कि स्टिंगर्स गुट का एक सदस्य मौके पर पहुंच गया तो वो अपने विजुअल्स दूसरों को भी बांट देगा। एक स्क्रिप्ट सभी चैनलों को केवल रिपोर्टर का नाम बदल कर भेजी जा रही है। चैनलों को अपनी इस मजबूरी का पता नहीं हो, ऐसा नहीं है। केवल नीतियां नहीं बना सकने वाले चैनलों के एसाइन्मेंट इस व्यवस्था को झेलने को मजबूर हैं। जबकि लोकल खबरों की मांग बढने और चैनलों में फास्ट न्यूज जैसे बुलेटिन शुरु करने पर खबरें ज्यादा चाहिए तो चैनलों को बाहरी, पश्चिमी और उत्तरी दिल्ली के बीच अपने ब्यूरो ओफिस बनाने चाहिए। वहां हर वक्त् दो स्टाफ रिपोर्टर, एक ओबी वैन खड़ी कर दें, तो खबरें और बेहतर और स्पेशल भी हाथ आ सकेंगी। खर्च भी कुछ खास नहीं होगा।
खबरों के इस घोटालों की एक खास वजह ये भी है कि ज्यादातर चैनलों के एसाइन्मेंट डेस्क पर बैठे लोगों में दिल्ली के लोग हैं ही नहीं। यूपी और बिहार से संबंधित लोग हैं, जो दिल्ली के इलाकों के नाम तक नहीं जानते, तो स्टिंगर्स पर निर्भर रहना तो उनकी मजबूरी होगी ही। कई चैनलों में उनके स्टाफ रिपोर्टर की तन्खवाह तो 25 हजार है, लेकिन इलाके के स्टिंगर का मासिक बिल 70 हजार तक पहुंच जाता है। एक दो चैनलों ने तो इस खर्च में कटौती करने के लिए अपने स्टिंगर को रिटेनर बना दिया है। महीने में 20 हजार देकर उसी का कैमरा, उसी की गाड़ी, उसी का कैमरामैन सब जिम्मेदारिया उसी पर सौंप दी है। इस राशि में वो क्या खर्च करेगा, क्या बचा कर घर चलाएगा, इसका अंदाजा भी चैनलों को है। लेकिन करें तो क्या ?
बाहरी, उत्तरी और पश्चिमी दिल्ली में स्टिगंर्स के गुटों के हावी होने का नुक्सान स्थानीय अधिकारियों व नेताओं को भी भुगतना पड़ता है। जिसके पीछे एक स्टिंगर पड़ गया, उसे सब मिलकर बर्बाद करने तक में कसर नहीं छो़डते। जिस खबर को उठाना हो या जिस खबर में उनका हित सध रहा हो, उसे सभी एक साथ उठा देते हैं। एक चैनल पर खबर चली नहीं, कि दूसरे चैनल को उस खबर को चलाना मजबूरी हो जाता है। चैनलों के इनपुट हेड, आउटपुट हेड या मोनिटरिंग डिपार्टमेंट क्या इन मुद्दों को बैठकों में उठाते नहीं होंगे। ये संभव नहीं। लेकिन हल निकालने की चिंता किसी को नहीं

-- योगराज शर्मा
+91 9899705042

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Tuesday, February 15, 2011

दिल्ली में भी स्टिंगर्स की मनमानी और चैनलों की उन पर बढ़ती निर्भरता

नई दिल्ली, योगराज शर्मा। टीवी चैनलों की बाढ के साथ ही खबरों की मांग भी बढ़ी है। ज्यादातर चैनलों में स्टाफ रिपोर्टरों के पास ज्यादा खबरें निकालने के लिए दिल्ली में संपर्कों की कमी है। लिहाजा आज ज्यादातर चैनल दिल्ली की खबरों के लिए स्टिंगर्स पर ही ज्यादा निर्भर हो गए हैं। चाहे वो स्टार न्यूज हो, आज तक, आईबीएन7, सहारा समय या फिर जी नेटवर्क। दिल्ली में अगर सही स्टिंगर्स की संख्या की बात करें तो आंकड़ा दर्जन भर आ कर ही अटक जाता है। फिर शुरु हो जाता है मजबूरी का खेल... एक स्टिंगर दो से तीन चैनलों के लिए काम करता है। एसाइन्मेंट डेस्क की भी मजबूरी है कि वो दूसरे चैनलों पर चलने वाली खबरों को ही अपने स्टिंगर से मंगवाना पड़ता है। और कोई चारा जो नहीं है।
चूंकि ज्यादातर चैनल नोएडा में है तो दक्षिणी और पूर्वी दिल्ली में उनके रिपोर्टरों की पहुंच आसान है। जब बारी आती है उत्तरी और पश्चिमी दिल्ली और खास तौर पर बाहरी दिल्ली की तो लगभग सभी चैनल स्टिंगर्स पर निर्भर है। विजुअल्स् जो चाहिएं। स्टिंगर ने गुटबाजी कर ली है। तीन चार स्टिंगर्स का गुट ज्यादातर बड़े न्यूज चैनलों के लिए काम कर रहा है। जो खबर आजतक पर चलेगी, वही विजुअल आपको इंडिया टीवी पर भी दिखेंगे। वही हूबहू विजुअल्स आपको स्टार टीवी, सहारा समय और जी न्यूज पर भी देखने को मिल जाएगे। कारण ये कि स्टिंगर्स गुट का एक सदस्य मौके पर पहुंच गया तो वो अपने विजुअल्स दूसरों को भी बांट देगा। एक स्क्रिप्ट सभी चैनलों को केवल रिपोर्टर का नाम बदल कर भेजी जा रही है। चैनलों को अपनी इस मजबूरी का पता नहीं हो, ऐसा नहीं है। केवल नीतियां नहीं बना सकने वाले चैनलों के एसाइन्मेंट इस व्यवस्था को झेलने को मजबूर हैं। जबकि लोकल खबरों की मांग बढने और चैनलों में फास्ट न्यूज जैसे बुलेटिन शुरु करने पर खबरें ज्यादा चाहिए तो चैनलों को बाहरी, पश्चिमी और उत्तरी दिल्ली के बीच अपने ब्यूरो ओफिस बनाने चाहिए। वहां हर वक्त् दो स्टाफ रिपोर्टर, एक ओबी वैन खड़ी कर दें, तो खबरें और बेहतर और स्पेशल भी हाथ आ सकेंगी। खर्च भी कुछ खास नहीं होगा।
खबरों के इस घोटालों की एक खास वजह ये भी है कि ज्यादातर चैनलों के एसाइन्मेंट डेस्क पर बैठे लोगों में दिल्ली के लोग हैं ही नहीं। यूपी और बिहार से संबंधित लोग हैं, जो दिल्ली के इलाकों के नाम तक नहीं जानते, तो स्टिंगर्स पर निर्भर रहना तो उनकी मजबूरी होगी ही। कई चैनलों में उनके स्टाफ रिपोर्टर की तन्खवाह तो 25 हजार है, लेकिन इलाके के स्टिंगर का मासिक बिल 70 हजार तक पहुंच जाता है। एक दो चैनलों ने तो इस खर्च में कटौती करने के लिए अपने स्टिंगर को रिटेनर बना दिया है। महीने में 20 हजार देकर उसी का कैमरा, उसी की गाड़ी, उसी का कैमरामैन सब जिम्मेदारिया उसी पर सौंप दी है। इस राशि में वो क्या खर्च करेगा, क्या बचा कर घर चलाएगा, इसका अंदाजा भी चैनलों को है। लेकिन करें तो क्या ?
बाहरी, उत्तरी और पश्चिमी दिल्ली में स्टिगंर्स के गुटों के हावी होने का नुक्सान स्थानीय अधिकारियों व नेताओं को भी भुगतना पड़ता है। जिसके पीछे एक स्टिंगर पड़ गया, उसे सब मिलकर बर्बाद करने तक में कसर नहीं छो़डते। जिस खबर को उठाना हो या जिस खबर में उनका हित सध रहा हो, उसे सभी एक साथ उठा देते हैं। एक चैनल पर खबर चली नहीं, कि दूसरे चैनल को उस खबर को चलाना मजबूरी हो जाता है। चैनलों के इनपुट हेड, आउटपुट हेड या मोनिटरिंग डिपार्टमेंट क्या इन मुद्दों को बैठकों में उठाते नहीं होंगे। ये संभव नहीं। लेकिन हल निकालने की चिंता किसी को नहीं

-- योगराज शर्मा
+91 9899705042

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