इन्द्री ,करनाल (विजय काम्बोज)
खर्चा रुपैया आमदनी अठन्नी, यह हालात हैं सब्जी उत्पादक किसानों के। गोभी की फसल से मुनाफे की उम्मीद लगाए बैठे सब्जी उत्पादक किसानों के पल्ले धेला नहीं पड़ा। दिहाड़ीदारों को दिन-रात हाड़तोड़ मेहनत करने के बावजूद दिहाड़ी नसीब नहीं हुई।
सब्जी मंडी में सब्जी की आवक तेज होने पर हालात ऐसे ही बन जाते हैं। इस समय सब्जी मंडी में गोभी की आवक जोरों पर है लेकिन खरीदार उसे देखकर मुंह फेर रहे है। हालात यह है कि जानवर भी गोभी को खाने के लिए तैयार नहीं हो रहे। सब्जी उत्पादकों के पास खेत की जुताई करने के सिवा कोई चारा नहीं रहा।
बड़ागांव के मजदूर जयप्रकाश, नरेश व संजीव ने कहा कि उन्होंने किसान नरेंद्र मुंजाल के खेल में बंटाई पर दो एकड़ गोभी की फसल लगाई थी। फसल पर 40 हजार रुपये खर्च हुए। तीन महीने कड़ी मेहनत करने के बाद अब गोभी की 20 किलो की गांठ दस रुपये में बिक रही है। गांव के किसानों ने 50 एकड़ से ज्यादा गोभी की फसल लगा रखी थी। मंदे की वजह से कई किसानों ने खड़ी फसल में ट्रैक्टर चलाकर जुताई कर दी। उन्होंने बताया कि फसल पर लागत करने के बाद आधा खर्च भी पूरा नहीं हो सका और उनकी मेहनत भी साथ में डूब गई।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव रतन मान ने कहा कि मंडियों में सब्जी के फिक्स रेट नहीं हैं। व्यापारी मनमर्जी से फसल की बोली लगाते हैं। वहीं सब्जी किसान के हाथ से जाने के बाद कई गुना दामों पर बिकती है। उन्होंने कहा कि प्रशासन ने शहरवासियों व किसानों की सुविधा के लिए अपनी मंडी योजना शुरू की थी। अपनी मंडी में किसान व ग्राहक दोनों को फायदा होता लेकिन किसानों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।
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