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Wednesday, January 12, 2011

सेक्स चेंजः

चंडीगढ़. अपर्णा मफतलाल जब सेक्स चेंज करवाकर अजय मफतलाल बनीं, तो इनकी बिजनेस फैमिली को दो विवादों ने घेर लिया। पहला अपर्णा का जेंडर रिअसाइनमेंट और दूसरा उससे पैदा हुई प्रॉपर्टी की लड़ाई। अजय (पहले अपर्णा) प्रॉपर्टी की वजहों से इंकार करते रहे। उनके मुताबिक छह साल की उम्र से ही उनमें सारे लक्षण लड़कों के थे, इसलिए उन्होंने अपना सेक्स चेंज करवाया। चंडीगढ़ में पूरे देश से तमाम अपर्णा और अजय आ रहे हैं सेक्स चेंज करवाने के लिए। क्या हैं उनकी जरूरतें और मुश्किलें। जेंडर रिअसाइनमेंट के ट्रेंड पर एकता सिन्हा की रिपोर्ट:
रंजीत कुछ दिन पहले तक रंजीता के नाम से जाने जाते थे। हाल ही में उन्होंने चंडीगढ़ के एक प्राइवेट क्लिनिक में अपनी जेंडर रिअसाइनमेंट सर्जरी करवाई है। अब रंजीत पुणो के एक कॉलसेंटर में काम कर रहे हैं। नई लाइफ से खुश तो हैं, पर पूरे समाज ने उन्हें स्वीकार नहीं किया है। रंजीत बताते हैं, ‘सेक्स चंेज कराने की बात सुनकर पेरंट्स काफी अपसेट हो गए और मुझसे बात करना बंद कर दिया।
पापा ने समाज में इज्जत बचाने के लिए इंडिया से बाहर सेटल होने को कहा। पर मैं नहीं जाना चाहता था।’ उठने, बैठने से लेकर रंजीत (तब रंजीता) की सारी हरकतें लड़कों जैसी ही थीं। घर के बाहर लोग मजाक बनाते थे। वह कहते हैं, ‘लड़कियों जैसे कोई लक्षण नहीं है ..इस बात का ताना मुझे रोजाना आसापास के लोग से सुनना पड़ता था। स्कूल में भी बच्चे मुझसे फ्रेंडशिप नहीं करते थे, इसलिए प्लस टू के बाद मैंने आगे की पढ़ाई प्राइवेट कॉलेज से की।’
तेरी वजह से बहनों की शादी न होगी
कुछ ऐसी ही कहानी चंडीगढ़ के रोहित की है, जो एक साल पहले रीना तो बन गए, पर घरवालों ने एक्सेप्ट नहीं किया। रीना अपने बीते दिनों के बारे में बताती हैं, ‘बचपन से मुझे मम्मी की लिपस्टिक चुराकर लगाना अच्छा लगता था। इसके लिए मुझे मार भी पड़ती थी। फैमिली मेंबर्स यह कहकर मारते थे कि मेरी वजह से मेरी बहनों की शादी अच्छे घरों में नहीं हो पाएगी।’
ऑपरेशन के लिए पैसा नहीं है
उनके फ्रेंड्स और फैमिली ने सर्जरी में हेल्प करने से बिल्कुल मना कर दिया। वह कहती हैं, ‘मेरी वजह से बड़ी बहन को भी ससुराल वाले ताना देते है। हमें सरकार भी मदद नहीं देती। ऐसे में सोसाइटी मजाक बनाती है, दूसरा कोई उपाय नहीं है।’ सरोज बताती हैं कि इंडिया से उलट थाईलैंड की सरकार अपने मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए ऐसे ऑपरेशन स्पॉन्सर करती है।
पार्टनर को लेकर कन्फ्यूजन
अब बात आती है ऑपरेशन के बाद पार्टनर के साथ अपने रिश्तों की। इस मामले में रंजीत कन्फ्यूज हैं। वह कहते हैं कि उनकी लाइफ में अभी एक लड़की है। मगर उन्होंने उसे पूरी फ्रीडम दे रखी है कि जब भी वह चाहे उन्हें छोड़कर जा सकती हैं। रंजीत के मुताबिक, ‘ऑपरेशन के बाद भी मैं सिर्फ लड़कियों को देखकर अट्रैक्ट नहीं होता। कई बार मुझे लड़के भी अच्छे लगते है। जहां तक शादी की बात है मुझे लड़के या लड़की दोनों से ही एतराज नहीं है, बस इतना है कि वो मुझे समझे।’
गलतफहमी से बच सकते हैं
जेंडर चेंज कराने आने वाले यूथ कई बार अपनी आइडेंटिटी को लेकर कन्फ्यूज होते हैं। ऑपरेशन से पहले साइकैट्रिस्ट की राय जरूरी नहीं है, पर इससे गलतफहमी से बचा जा सकता है। कई केस आए जहां लड़की लड़का बनना चाहती थी। चैकअप किया तो पता चला कि उसका पूरा शरीर ही लड़की का है। मगर उसने अंजाने में सोचना शुरू कर दिया कि वह लड़का है। कई बार लड़कियों को लगता है कि फैमिली में लड़कों को ज्यादा प्यार मिलता है इसलिए वह लड़का बनना चाहती हैं। साइक्रैट्रिस्ट और एन्ड्रोलॉजिस्ट से मंजूरी लेने के बाद ही ये ऑपरेशन किया जाता है।
डॉ. बीएस चवन, जीएमसीएच-32 के डिपार्टमेंट हेड-साइकैट्रिस्ट
सोशल एक्टिविस्ट अश्विनी कुमार पिछले दस साल से ट्राईसिटी में ऐसे लोगों के लिए काम कर रहे है। उन्हें 50 से ज्यादा ऐसे लोग मिले हैं जो सेक्स-रिअसाइनमेंट सर्जरी कराना चाहते हैं। वह कहते हैं, ‘इंडिया में सेक्स चेंज ऑपरेशन को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता। सोसायटी के डर से भी कई लोग सेक्स चेंज नहीं करवाते। समाज का डर न भी हो तो कुछ के पास पैसे नहीं होते। नतीजतन ये होता है कि इन लोगों को किन्नरों के ग्रुप में शामिल होना पड़ता है।’
अब तक छह ट्रांससेक्सुअल लोगों की सर्जरी कर चुके प्लास्टिक सर्जन डॉ. तजिंदर भट्टी पेरंट्स की मंजूरी लाए बिना किसी को सर्जरी की सलाह नहीं देते। 26 की उम्र के आसपास आने वाले ऐसे ज्यादातर मामलों के लक्षण बचपन से ही नजर आ जाते हैं। कम पढ़े-लिखे लोग अपनी फीलिंग नहीं समझा पाते, मजबूरी में अपनी लाइफ फैमिली प्रेशर में जीनी पड़ती है। डॉ. भट्टी बताते हैं, ‘ये इम्बैलेंस हार्मोन की कमी से आता है। इसके लिए सेक्स चेंज सर्जरी, हार्मोन थैरेपी के साथ लोकल रिहैबिलिटेशन की जरूरत पड़ती है।’
क्या कहता है कानून
इंडिया में यह सर्जरी लीगल नहीं मानी जाती। ब्रिटेन, अमेरिका में जेंडर चेंज के लिए अलग से लॉ बना हुआ है। कई बार लोग लीगल झंझटों से बचने के लिए विदेश जाकर ऑपरेशन कराते हैं। इस ग्राउंड पर तलाक केस फाइल किया जा सकता है। धर्म की बात करें तो किसी भी धर्म में सेक्स चेंज को ठीक नहीं मानते। हालांकि मुस्लिम लॉ और हिंदू लॉ में इस संबंध में कोई प्रोविजन नहीं हैं। ये लोगों की व्यक्तिगत सोच पर है। सर्जरी के बाद भी उन्हें वो सारे अधिकार मिलते हैं जो बाकियों के लिए हैं। रिजर्वेशन में ऐसे लोगों को परेशानी आती है। इन्हें मेल और फीमेल किस आधार पर सीट मिले? यह साफ नहीं है। पासपोर्ट, वोटर आईडी और दूसरे डॉक्यूमेंट्स में भी ये दिक्कत आती है।
नीतेश रंजन, एडवोकेट

- (भास्कर से )
‘लाइफ अपने हिसाब से जीने की आजादी भी इंडिया में नहीं है। सोसायटी से डर-डरकर जीना पड़ता है। ऊपर से सेक्स-रिअसाइनमेंट सर्जरी करवाना? किसी चैलेंज से कम नहीं है।’.ये फीलिंग्स हैं रमण यानी परी की। सर्जरी के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए अपना नाम उन्होंने परी ही रख लिया है। परी बताती हैं, ‘दो साल चंडीगढ़ से दिल्ली तक कई डॉक्टरों के चक्कर काटे, ऑपरेशन मनी के लिए कई सोशल वर्करों से हेल्प मांगी मगर इंतजाम नहीं हो पाया। इस ऑपरेशन की फीस पांच लाख से ज्यादा है। अब एक अकेला इंसान इतनी बड़ी फीस कहां से जुटाएगा?’ ऐसा ही मामला सरोज का भी है।

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Wednesday, January 12, 2011

सेक्स चेंजः

चंडीगढ़. अपर्णा मफतलाल जब सेक्स चेंज करवाकर अजय मफतलाल बनीं, तो इनकी बिजनेस फैमिली को दो विवादों ने घेर लिया। पहला अपर्णा का जेंडर रिअसाइनमेंट और दूसरा उससे पैदा हुई प्रॉपर्टी की लड़ाई। अजय (पहले अपर्णा) प्रॉपर्टी की वजहों से इंकार करते रहे। उनके मुताबिक छह साल की उम्र से ही उनमें सारे लक्षण लड़कों के थे, इसलिए उन्होंने अपना सेक्स चेंज करवाया। चंडीगढ़ में पूरे देश से तमाम अपर्णा और अजय आ रहे हैं सेक्स चेंज करवाने के लिए। क्या हैं उनकी जरूरतें और मुश्किलें। जेंडर रिअसाइनमेंट के ट्रेंड पर एकता सिन्हा की रिपोर्ट:
रंजीत कुछ दिन पहले तक रंजीता के नाम से जाने जाते थे। हाल ही में उन्होंने चंडीगढ़ के एक प्राइवेट क्लिनिक में अपनी जेंडर रिअसाइनमेंट सर्जरी करवाई है। अब रंजीत पुणो के एक कॉलसेंटर में काम कर रहे हैं। नई लाइफ से खुश तो हैं, पर पूरे समाज ने उन्हें स्वीकार नहीं किया है। रंजीत बताते हैं, ‘सेक्स चंेज कराने की बात सुनकर पेरंट्स काफी अपसेट हो गए और मुझसे बात करना बंद कर दिया।
पापा ने समाज में इज्जत बचाने के लिए इंडिया से बाहर सेटल होने को कहा। पर मैं नहीं जाना चाहता था।’ उठने, बैठने से लेकर रंजीत (तब रंजीता) की सारी हरकतें लड़कों जैसी ही थीं। घर के बाहर लोग मजाक बनाते थे। वह कहते हैं, ‘लड़कियों जैसे कोई लक्षण नहीं है ..इस बात का ताना मुझे रोजाना आसापास के लोग से सुनना पड़ता था। स्कूल में भी बच्चे मुझसे फ्रेंडशिप नहीं करते थे, इसलिए प्लस टू के बाद मैंने आगे की पढ़ाई प्राइवेट कॉलेज से की।’
तेरी वजह से बहनों की शादी न होगी
कुछ ऐसी ही कहानी चंडीगढ़ के रोहित की है, जो एक साल पहले रीना तो बन गए, पर घरवालों ने एक्सेप्ट नहीं किया। रीना अपने बीते दिनों के बारे में बताती हैं, ‘बचपन से मुझे मम्मी की लिपस्टिक चुराकर लगाना अच्छा लगता था। इसके लिए मुझे मार भी पड़ती थी। फैमिली मेंबर्स यह कहकर मारते थे कि मेरी वजह से मेरी बहनों की शादी अच्छे घरों में नहीं हो पाएगी।’
ऑपरेशन के लिए पैसा नहीं है
उनके फ्रेंड्स और फैमिली ने सर्जरी में हेल्प करने से बिल्कुल मना कर दिया। वह कहती हैं, ‘मेरी वजह से बड़ी बहन को भी ससुराल वाले ताना देते है। हमें सरकार भी मदद नहीं देती। ऐसे में सोसाइटी मजाक बनाती है, दूसरा कोई उपाय नहीं है।’ सरोज बताती हैं कि इंडिया से उलट थाईलैंड की सरकार अपने मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए ऐसे ऑपरेशन स्पॉन्सर करती है।
पार्टनर को लेकर कन्फ्यूजन
अब बात आती है ऑपरेशन के बाद पार्टनर के साथ अपने रिश्तों की। इस मामले में रंजीत कन्फ्यूज हैं। वह कहते हैं कि उनकी लाइफ में अभी एक लड़की है। मगर उन्होंने उसे पूरी फ्रीडम दे रखी है कि जब भी वह चाहे उन्हें छोड़कर जा सकती हैं। रंजीत के मुताबिक, ‘ऑपरेशन के बाद भी मैं सिर्फ लड़कियों को देखकर अट्रैक्ट नहीं होता। कई बार मुझे लड़के भी अच्छे लगते है। जहां तक शादी की बात है मुझे लड़के या लड़की दोनों से ही एतराज नहीं है, बस इतना है कि वो मुझे समझे।’
गलतफहमी से बच सकते हैं
जेंडर चेंज कराने आने वाले यूथ कई बार अपनी आइडेंटिटी को लेकर कन्फ्यूज होते हैं। ऑपरेशन से पहले साइकैट्रिस्ट की राय जरूरी नहीं है, पर इससे गलतफहमी से बचा जा सकता है। कई केस आए जहां लड़की लड़का बनना चाहती थी। चैकअप किया तो पता चला कि उसका पूरा शरीर ही लड़की का है। मगर उसने अंजाने में सोचना शुरू कर दिया कि वह लड़का है। कई बार लड़कियों को लगता है कि फैमिली में लड़कों को ज्यादा प्यार मिलता है इसलिए वह लड़का बनना चाहती हैं। साइक्रैट्रिस्ट और एन्ड्रोलॉजिस्ट से मंजूरी लेने के बाद ही ये ऑपरेशन किया जाता है।
डॉ. बीएस चवन, जीएमसीएच-32 के डिपार्टमेंट हेड-साइकैट्रिस्ट
सोशल एक्टिविस्ट अश्विनी कुमार पिछले दस साल से ट्राईसिटी में ऐसे लोगों के लिए काम कर रहे है। उन्हें 50 से ज्यादा ऐसे लोग मिले हैं जो सेक्स-रिअसाइनमेंट सर्जरी कराना चाहते हैं। वह कहते हैं, ‘इंडिया में सेक्स चेंज ऑपरेशन को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता। सोसायटी के डर से भी कई लोग सेक्स चेंज नहीं करवाते। समाज का डर न भी हो तो कुछ के पास पैसे नहीं होते। नतीजतन ये होता है कि इन लोगों को किन्नरों के ग्रुप में शामिल होना पड़ता है।’
अब तक छह ट्रांससेक्सुअल लोगों की सर्जरी कर चुके प्लास्टिक सर्जन डॉ. तजिंदर भट्टी पेरंट्स की मंजूरी लाए बिना किसी को सर्जरी की सलाह नहीं देते। 26 की उम्र के आसपास आने वाले ऐसे ज्यादातर मामलों के लक्षण बचपन से ही नजर आ जाते हैं। कम पढ़े-लिखे लोग अपनी फीलिंग नहीं समझा पाते, मजबूरी में अपनी लाइफ फैमिली प्रेशर में जीनी पड़ती है। डॉ. भट्टी बताते हैं, ‘ये इम्बैलेंस हार्मोन की कमी से आता है। इसके लिए सेक्स चेंज सर्जरी, हार्मोन थैरेपी के साथ लोकल रिहैबिलिटेशन की जरूरत पड़ती है।’
क्या कहता है कानून
इंडिया में यह सर्जरी लीगल नहीं मानी जाती। ब्रिटेन, अमेरिका में जेंडर चेंज के लिए अलग से लॉ बना हुआ है। कई बार लोग लीगल झंझटों से बचने के लिए विदेश जाकर ऑपरेशन कराते हैं। इस ग्राउंड पर तलाक केस फाइल किया जा सकता है। धर्म की बात करें तो किसी भी धर्म में सेक्स चेंज को ठीक नहीं मानते। हालांकि मुस्लिम लॉ और हिंदू लॉ में इस संबंध में कोई प्रोविजन नहीं हैं। ये लोगों की व्यक्तिगत सोच पर है। सर्जरी के बाद भी उन्हें वो सारे अधिकार मिलते हैं जो बाकियों के लिए हैं। रिजर्वेशन में ऐसे लोगों को परेशानी आती है। इन्हें मेल और फीमेल किस आधार पर सीट मिले? यह साफ नहीं है। पासपोर्ट, वोटर आईडी और दूसरे डॉक्यूमेंट्स में भी ये दिक्कत आती है।
नीतेश रंजन, एडवोकेट

- (भास्कर से )
‘लाइफ अपने हिसाब से जीने की आजादी भी इंडिया में नहीं है। सोसायटी से डर-डरकर जीना पड़ता है। ऊपर से सेक्स-रिअसाइनमेंट सर्जरी करवाना? किसी चैलेंज से कम नहीं है।’.ये फीलिंग्स हैं रमण यानी परी की। सर्जरी के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए अपना नाम उन्होंने परी ही रख लिया है। परी बताती हैं, ‘दो साल चंडीगढ़ से दिल्ली तक कई डॉक्टरों के चक्कर काटे, ऑपरेशन मनी के लिए कई सोशल वर्करों से हेल्प मांगी मगर इंतजाम नहीं हो पाया। इस ऑपरेशन की फीस पांच लाख से ज्यादा है। अब एक अकेला इंसान इतनी बड़ी फीस कहां से जुटाएगा?’ ऐसा ही मामला सरोज का भी है।

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