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Saturday, January 15, 2011

"विलेज व्हीस्की" के दीवाने हुए हाथी

रांची. झारखण्ड के गांवों में गर्म पानी और महुआ से मिलकर देसी दारू तैयार किया जाता है. यह सूबे के लगभग हर गांव मे होता है. स्थानीय लोगों के लिए यही विस्की और यही वाईन है. कहते हैं कि महुआ से बने एक ग्लास देसी शराब में एक बोतल विस्की से ज्यादा नशा होता है. अजीब बात तो यह कि अब इस देसी दारू की लत जंगलो में रहने वाले गजराजों को लग चुकी है.
वे इस शराब के इस कदर दीवाने हो गये हैं कि इसे पीने के लिए हर रोज गांव में दाखिल हो जाते हैं. इसके बाद शुरू होता है उनका तांडव. अगर मिला तो नशे में उत्पात करते हैं और अगर नहीं मिला तो गुस्से में. वैसे गांव वालों का मानना है कि महुआ की खुशबू हाथियों को पसंद है आर यही वजह है कि यह खुशबू हाथियों को जंगल की ओर खींच लाती है.स्थानीय लोग कहते हैं कि हाथियों के उत्पात की बड़ी वजह उनमें दारू की तलब है.
एक्साइज डिपार्टमेंट को नहीं पता, लेकिन हाथियों को मालूम हैं दारू के अड्डे
मजे की बात ये है कि झारखण्ड के एक्साइज डिपार्टमेंट को भले ही जंगलों में शराब के अड्डों की जानकारी न हो लेकिन इन मतवाले गजराजों को इन ठिकानों की पूरी जानकारी है. इन जगहों पर आकर गजराज अपने गले को तर जरुर करते हैं. झारखण्ड के ग्रामीण इलाकों में इनदिनों हाथियों ने जमकर कहर मचा रखा है.
लोगों का जीना मुहाल है. आलम ये है कि लोग हाथियों के भय से गांव से पलायन करने को मजबूर हो गए हैं. मालूम हो कि इसी साल यानि 12 जनवरी तक जंगली हाथियों ने 9 लोगों को अब तक अपना शिकार बना लिया है. लोगों का मानना है कि ये उत्पात हाथियों ने नशे में किया है. अगर नशे में नहीं होंगे तो नशे के लिए किया है.
सो, इस कडकड़ाती ठण्ड में हाथों में मशाल लिए ग्रामीण रतजगा करने को मजबूर हैं. लोगों का हुजूम देर रात जंगलो के इर्द -गिर्द पहरा देता रहता है ताकि आग देख हाथी नजदीक न फटकें.
आशियाने हुए बर्बाद, अब पेड़ों पर गुज़ार रहे जिंदगी
राँची और गुमला जिले के सीमावर्ती इलाके मे दो दर्जन जंगली हाथियों का झुण्ड है. इस झुण्ड मे तीन नन्हे हाथी भी हैं. गांव वालों की मानें तो यह झुण्ड जिधर से गुजरता है कहर ढाते हुए जाता है. इस इलाके में अबतक लगभग 70 परिवार ऐसे हैं जिनके आशियानों को हाथियों ने बरबाद कर दिया है. फसलों को भी ये हाथी नहीं छोड़ते. खेत में घुस गए तो बर्बाद करके ही बाहर आते हैं.
हाथियों के डर से ग्रामीण बेघर हो गए हैं. जो नहीं हुए हैं वो भी इन्ही की तरह अपने घर बचने को पेड़ों के ऊपर दिन-रात गुज़र रहे हैं. इस हाड़ कंकपाती ठण्ड में पेड़ों पर रात बिताना किसी सजा से कम नहीं. इसकी कल्पना की जा सकती है. लेकिन, ग्रामीण लाचार हैं. जान बचने के लिए ये उनका अंतिम उपाय है. यह गुमला जिले के विशुनपुर गांव में सबसे अधिक हो रहा है.
भुक्तभोगी ग्रामीणों का कहना है कि वे महीने भर से जयादा दिनों से ऐसे रहने को विवश हैं. अगर जल्द ही सरकार मदद नहीं करती है तो वे आत्महत्या कर लेने की धमकी दे रहे हैं. आंकड़ों की मानें तो बीते एक साल में जंगली हाथियों ने अबतक 50 लोगों की जानें ले ली हैं

- भास्कर से

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Saturday, January 15, 2011

"विलेज व्हीस्की" के दीवाने हुए हाथी

रांची. झारखण्ड के गांवों में गर्म पानी और महुआ से मिलकर देसी दारू तैयार किया जाता है. यह सूबे के लगभग हर गांव मे होता है. स्थानीय लोगों के लिए यही विस्की और यही वाईन है. कहते हैं कि महुआ से बने एक ग्लास देसी शराब में एक बोतल विस्की से ज्यादा नशा होता है. अजीब बात तो यह कि अब इस देसी दारू की लत जंगलो में रहने वाले गजराजों को लग चुकी है.
वे इस शराब के इस कदर दीवाने हो गये हैं कि इसे पीने के लिए हर रोज गांव में दाखिल हो जाते हैं. इसके बाद शुरू होता है उनका तांडव. अगर मिला तो नशे में उत्पात करते हैं और अगर नहीं मिला तो गुस्से में. वैसे गांव वालों का मानना है कि महुआ की खुशबू हाथियों को पसंद है आर यही वजह है कि यह खुशबू हाथियों को जंगल की ओर खींच लाती है.स्थानीय लोग कहते हैं कि हाथियों के उत्पात की बड़ी वजह उनमें दारू की तलब है.
एक्साइज डिपार्टमेंट को नहीं पता, लेकिन हाथियों को मालूम हैं दारू के अड्डे
मजे की बात ये है कि झारखण्ड के एक्साइज डिपार्टमेंट को भले ही जंगलों में शराब के अड्डों की जानकारी न हो लेकिन इन मतवाले गजराजों को इन ठिकानों की पूरी जानकारी है. इन जगहों पर आकर गजराज अपने गले को तर जरुर करते हैं. झारखण्ड के ग्रामीण इलाकों में इनदिनों हाथियों ने जमकर कहर मचा रखा है.
लोगों का जीना मुहाल है. आलम ये है कि लोग हाथियों के भय से गांव से पलायन करने को मजबूर हो गए हैं. मालूम हो कि इसी साल यानि 12 जनवरी तक जंगली हाथियों ने 9 लोगों को अब तक अपना शिकार बना लिया है. लोगों का मानना है कि ये उत्पात हाथियों ने नशे में किया है. अगर नशे में नहीं होंगे तो नशे के लिए किया है.
सो, इस कडकड़ाती ठण्ड में हाथों में मशाल लिए ग्रामीण रतजगा करने को मजबूर हैं. लोगों का हुजूम देर रात जंगलो के इर्द -गिर्द पहरा देता रहता है ताकि आग देख हाथी नजदीक न फटकें.
आशियाने हुए बर्बाद, अब पेड़ों पर गुज़ार रहे जिंदगी
राँची और गुमला जिले के सीमावर्ती इलाके मे दो दर्जन जंगली हाथियों का झुण्ड है. इस झुण्ड मे तीन नन्हे हाथी भी हैं. गांव वालों की मानें तो यह झुण्ड जिधर से गुजरता है कहर ढाते हुए जाता है. इस इलाके में अबतक लगभग 70 परिवार ऐसे हैं जिनके आशियानों को हाथियों ने बरबाद कर दिया है. फसलों को भी ये हाथी नहीं छोड़ते. खेत में घुस गए तो बर्बाद करके ही बाहर आते हैं.
हाथियों के डर से ग्रामीण बेघर हो गए हैं. जो नहीं हुए हैं वो भी इन्ही की तरह अपने घर बचने को पेड़ों के ऊपर दिन-रात गुज़र रहे हैं. इस हाड़ कंकपाती ठण्ड में पेड़ों पर रात बिताना किसी सजा से कम नहीं. इसकी कल्पना की जा सकती है. लेकिन, ग्रामीण लाचार हैं. जान बचने के लिए ये उनका अंतिम उपाय है. यह गुमला जिले के विशुनपुर गांव में सबसे अधिक हो रहा है.
भुक्तभोगी ग्रामीणों का कहना है कि वे महीने भर से जयादा दिनों से ऐसे रहने को विवश हैं. अगर जल्द ही सरकार मदद नहीं करती है तो वे आत्महत्या कर लेने की धमकी दे रहे हैं. आंकड़ों की मानें तो बीते एक साल में जंगली हाथियों ने अबतक 50 लोगों की जानें ले ली हैं

- भास्कर से

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